जानकारी के मुताबिक, अब तक 250 से भी अधिक चाय श्रमिक भूख एवं बीमारी की वजह से मारे जा चुके हैं. पिछले पांच महीनों में ही करीब 50 चाय श्रमिकों की मौत हो गयी है. चाय श्रमिकों की इस बदहाली एवं मौत को देखने वाला कोई नहीं है. विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ ही चाय श्रमिक यूनियनों के बीच भी आरोपों तथा प्रत्यारोपों का दौर जारी है. चाय श्रमिक संगठन जहां इस मामले को लेकर राज्य सरकार पर उदासीन रहने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार तथा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेता इन आरोपों का खंडन कर रहे हैं.
आलम यह है कि राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित चाय बागानों में भी श्रमिकों की मौत हो रही है. इतनी अधिक तादाद में मौत की घटना के बाद भी न तो किसी प्रकार का हल्ला मच रहा है और न ही राज्य सरकार द्वारा किसी प्रकार की मुआवजे की घोषणा की जाती है. यह तथ्य भी अपने आप में काफी आश्चर्यजनक है. इस बीच, राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित बंद डुवार्स के रेडबैंक चाय बागान में एक और महिला चाय श्रमिक की मौत हो गयी है. मृतका का नाम बिनी उरांव (48) है. बृहस्पतिवार की सुबह वीरपाड़ा स्टेट जनरल अस्पताल में उसकी मौत हो गयी. वह काफी दिनों से बीमार थी. इसके अलावा बुधवार को भी हंटापाड़ा एवं रेडबैंक चाय बागान में दो चाय श्रमिकों की मौत हो गयी थी.
जाहिर तौर पर पिछले दो दिनों में तीन चाय श्रमिकों की मौत की घटना से चाय श्रमिकों के बीच कोहराम मचा हुआ है, लेकिन सिवाय इस मौत जुलूस को देखने के उनके पास कोई चारा नहीं है. इस चाय श्रमिक की मौत के बाद एक बार फिर से राज्य सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया है. राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि बीमारी की वजह से चाय श्रमिक की मौत हुई है. जलपाईगुड़ी जिले के सीएमओएच प्रकाश मृधा का कहना है कि बिनी उरांव नामक महिला चाय श्रमिक की मौत बीमारी की वजह से हुई है. उन्होंने यह भी कहा कि चाय बागानों में स्वास्थ्य विभाग की ओर मेडिकल कैंप आयोजित किये जा रहे हैं. इस बीच, राज्य सरकार का साफ कहना है कि अब तक एक भी चाय श्रमिक की मौत भूख की वजह से नहीं हुई है.
चाय श्रमिक बीमारी की वजह से मारे जा रहे हैं. जलपाईगुड़ी जिला तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष साफ तौर पर कह रहे हैं कि अब तक एक भी चाय श्रमिक की मौत भूख की वजह से नहीं हुई है. राज्य सरकार की ओर से चाय श्रमिकों के बीच राहत सामग्रियों का वितरण जारी है. चाय श्रमिकों को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराये जा रहे हैं. अब सौरभ चक्रवर्ती तथा राज्य सरकार को यह समझाने वाला कोई नहीं है कि चाय श्रमिक खाना नहीं मिलने की वजह से ही बीमार हो रहे हैं. एक बार बीमार होने के बाद पैसे के अभाव में उनकी चिकित्सा नहीं हो पाती और आखिरकार अस्पताल अथवा अपने घर में उनकी मौत हो जाती है. चाय श्रमिकों की इस दयनीय स्थिति को लेकर विभिन्न ट्रेड यूनियन संगठनों में भी एकजुटता नहीं है. ट्रेड यूनियन संगठन के नेता आपस में बंटे हुए हैं. 23 ट्रेड यूनियन संगठनों ने मिलकर एक संयुक्त फोरम का गठन किया और उसके बाद राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा की गयी. आंदोलन का समय आया तो संयुक्त फोरम में ही बिखराव आ गया. बिरसा तिरकी जैसे दमदार आदिवासी नेता फोरम से अलग हो गये. हालांकि फोरम के अन्य घटक दल चाय श्रमिकों के हित में आंदोलन करने के दावे अभी भी कर रहे हैं. चाय श्रमिक नेता जिआउर आलम का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से चाय श्रमिकों की कोई मदद नहीं की जा रही है. अगर राज्य सरकार चाय श्रमिकों की मौत की बात भूख से होने की मान ले, तो केंद्र सरकार से भी मदद मिल सकती है. एक अन्य चाय श्रमिक नेता समन पाठक ने भी चाय श्रमिकों की इस दयनीय स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.