आरोप है कि बंगलादेशी तस्कर अपने इस अवैध धंधे को भारतीय तस्करों के अलावा भारतीय सीमा की सुरक्षा में तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) व बंगलादेश सीमा की सुरक्षा कर रहे बोर्डर गार्ड ऑफ बंगलादेश (बीजीबी) के अधिकारियों के मिलीभगत से अंजाम दे रहे हैं. मवेशी तस्करी के लिए सभी गिरोहों की ओर से एक मोटी रकम बीएसएफ व बीजीबी के अधिकारियों के पास हमेशा पहुंच जाती है. इस रकम की बंदरबाट हर स्तर के अधिकारियों व जवानों के बीच होती है.
इतना ही नहीं गिरोह के गुर्गे अपने-आप पहले से निर्धारित रकम की पैकेट एक तय सीमा के भीतर भारतीय एवं बंगलादेश पुलिस तक भी पूरी इमानदारी के साथ पहुंचा देते हैं. आतंकित ग्रामीणों का कहना है कि बंगलादेशी तस्कर केवल गाय-बैैलों की ही चोरी नहीं करते, बल्कि बकरियों तक को भी नहीं बख्शते. इतना ही नहीं कोई भी छोटा-बड़ा समान रात को अगर घरों के बाहर छूट जाये तो सुबह उठने पर वह समान नहीं मिलता. एक ग्रामीण मोहम्मद राकीब ने बताया कि पिछले महीने ही उसकी दो गायें चोरी हुई है, वहीं फजलू अहमद की कई महीने पहले पांच गाय चोरी हो गयी. अब उनके पास मात्र तीन गाय बची है. इन तीन गायों की सुरक्षा फजलू व घर के अन्य सदस्य खुद घरों से बाहर सोकर और हर रात दो लोग जगकर करते हैं. गायों को पूरी रात अपने सोने के कमरे में बंद रखते हैं. मोेहम्मद राकीब व फजलू जैसी यह दर्द भरी दास्तां केवल कुछ ग्रामीणों की नहीं बल्कि इस भारत-बंगलादेश सीमा से सटे फांसीदेवा, रहमूजोत, लियुसीपाखरी, चटहाट व अन्य गांवों के ग्रामीणों की भी एक जैसी है.
रहमूजोत के इदरीश अहमद ने बताया कि हम ग्रामीणों का मुख्य पेशा मवेशी पालन व खेती-बारी है. मवेशियों के चोरी होने से हमारी खेती भी प्रभावित हो रही है. भारतीय मवेशियों की बंगलादेश में भारी मांग है और इनकी उंची कीमत मिलती है. बंगलादेशी तस्कर मुड़ीखावा से धनियामोड़ तक छह किमी खुली सीमा से मवेशी तस्करी करते हैं. इस छह किमी में तार का बेड़ा नहीं है. हम ग्रामीणों ने मवेशी चोरी व तस्करी की शिकायत फांसीदेवा थाना, प्रखंड अधिकारी व बीएसएफ अधिकारियों से की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.