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ममता के खिलाफ मोरचा खोलने की तैयारी

सिलीगुड़ी: राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र का दौरा कर वापस कोलकाता लौट गयी हैं, लेकिन उनकी वापसी के बाद पहाड़ की राजनीतिक माहौल में भूचाल मचा हुआ है. पहाड़ की प्रमुख राजनीतिक शक्ति गोजमुमो ने ममता बनर्जी के खिलाफ मोरचा खोलने की तैयारी कर ली है. गोजमुमो नेताओं ने ममता बनर्जी पर […]

सिलीगुड़ी: राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र का दौरा कर वापस कोलकाता लौट गयी हैं, लेकिन उनकी वापसी के बाद पहाड़ की राजनीतिक माहौल में भूचाल मचा हुआ है. पहाड़ की प्रमुख राजनीतिक शक्ति गोजमुमो ने ममता बनर्जी के खिलाफ मोरचा खोलने की तैयारी कर ली है.

गोजमुमो नेताओं ने ममता बनर्जी पर पहाड़ को बांटने का आरोप लगाया है. यहां गौरतबलब है कि मुख्यमंत्री ने अपने पहाड़ दौरे के दौरान शेरपा कल्चरल बोर्ड के गठन की घोषणा की हैं. इससे पहले वह लेप्चा डेवलपमेंट बोर्ड तथा तामांग डेवलपमेंट बोर्ड का गठन कर चुकी है. जाति के आधार पर लगातार डेवलपमेंट बोर्ड के गठन से गोजमुमो नेताओं के होश उड़े हुए है. यही कारण है कि गोजमुमो नेता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. गोजमुमो महासचिव रोशन गिरी ने ममता बनर्जी पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री पहाड़ की जनता को विभन्न जतियों में बांटना चाह रही है. मुख्यमंत्री के दार्जिलिंग दौरे के दौरान जीटीए सभा की बैठक में रोशन गिरी भी उपस्थित थे.

उसी दौरान शेरपा कल्चरल बोर्ड के गठन का निर्णय लिया गया. उस बैठक में रोशन गिरी तथा गोजमुमो के अन्य नेता कुछ नहीं बोल सके, लेकिन अब ममता बनर्जी के वापस लौटने के बाद सभी नेताओं ने तेवर तल्ख कर लिये है. रोशन गिरी ने तल्ख लहजे में कहा है कि ममता बनर्जी जब भी दार्जिलिंग आती हैं, पहाड़ की जनता के बीच मतभेद पैदा कर वापस लौट जाती है. उन्होंने व्यंग करते हुए कहा कि सिर्फ तीन जातियों के लिए ही क्यों, पहाड़ में जितनी भी जातियां हैं मुख्यमंत्री सभी के लिए डेवलपमेंट बोर्ड बना दें. पहाड़ पर विकास कार्यो की जिम्मेदारी भी इन्हीं बोर्ड को सौंप देनी चाहिए. श्री गिरी ने कहा कि यदि एक पर एक डेवलपमेंट बोर्ड का गठन होता है तो फिर जीटीए का क्या काम. गठन के बाद से ही जीटीए को उतनी प्रशासनिक क्षमता नहीं दी गयी, जितनी मिलनी चाहिए थी. जीटीए के गठन हेतु हुए त्रिपक्षीय समझौते में कई विभागों के हस्तांतरण की बात कही गयी है. जीटीए के गठन हुए तीन साल से भी अधिक का समय होने के बाद भी अधिकांश विभागों का हस्तांतरण नहीं हुआ है. तमाम महत्वपूर्ण विभाग राज्य सरकार के अधीन है. इस मामले को लेकर राज्य के मुख्य सचिव के साथ साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी कई बार बातचीत की गयी, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ. कालिंपोंग के विधायक तथा गोजमुमो नेता हर्क बहादुर छेत्री ने भी शेरपा डेवलपमेंट बोर्ड बनाने की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के बार बार के आगमन से पहाड़ का कोई भला नही हो रहा है. वह यहां जातिगत राजनीति के लिए आती हैं और पहाड़ के लोगों के बीच मतभेद पैदा कर वापस लौट जाती है. दूसरी तरफ, गोरखालैंड आंदोलन के दौरान गोजमुमो नेताओं पर दर्ज हुए मुकदमे को खत्म करने का कोई आश्वासन नहीं मिलने से भी इनमें नाराजागी है. कई गोजमुमो नेताओं ने कहा है कि जीटीए सभा की बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से राजनैतिक आंदोलन के दौरान दर्ज हुए मुकदमे खत्म करने का अनुरोध किया गया था. जीटीए ने इस संबंध मं एक प्रस्ताव भी पारित किया है, इसके बावजूद ममता बनर्जी ने गोजमुमो नेताओं को कोई सकारात्मक संदेश नहीं दिया.

वोट बैंक का क्या है हिसाब
इस बीच राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में तृणमूल का वोट बैंक मजबूत करने के लिए ही ममता बनर्जी विभिन्न जातियों के लिए डेवलपमेंट बोर्ड बनाने की रणनीति पर काम कर रही है. सात महीने पहले संपन्न लोकसभा चुनाव के पहले ममता बनर्जी ने लेप्चा डेवलपमेंट बोर्ड के बाद तामांग डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया था. इसका नतीजा यह हुआ कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में तृणमूल उम्मीदवार बाइचुंग भुटिया करीब एक लाख मत लेने में कामयाब रहे. पहाड़ पर अबतक ऐसा कभी नहीं हुआ था. उस चुनाव में लेप्चा तथा तामांग जाति के मतदाताओं ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार का समर्थन किया था. राजनैतिक विश्लेषकों ने आगे बताया है कि इसी तरह यदि कुछ और जातियों के लिए डेवलपमेंट बोर्ड का गठन हो जाता है तो दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोजमुमो को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.
त्रिपक्षीय वार्ता पर जोर
इस बीच विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, ममता बनर्जी के पहाड़ से वापस लौटने के बाद गोजमुमो नेताओं ने एक बैठक की है. इस बैठक में राज्य सरकार से द्विपक्षीय वार्ता नहीं करने का निर्णय लिया गया है. गोरखालैंड अथवा जीटीए के मुद्दे पर किसी भी प्रकार की बातचीत त्रिपक्षीय वैठक में करने पर ही गोजमुमो नेता जोर दे रहे हैं.

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