सिलीगुड़ी: असम में नरसंहार की घटना के करीब एक सप्ताह बाद पश्चिम बंगाल के कुमारग्राम में आदिवासी शरणार्थियों का आना बंद हो गया है. पिछले 24 घंटे में एक भी आदिवासी शरणार्थी कुमारग्राम में चल रहे राहत कैम्प में नहीं आये हैं. कुल पांच राहत कैम्पों में 1385 शरणार्थियों ने शरण ले रखी है. इस बीच, कई ऐसे गैर आदिवासी शरणार्थियों की पहचान हुई है जो अलीपुरद्वार के विभिन्न स्थानों पर अपने रिश्तेदारों के यहां रूके हुए हैं. राभा और बोडो जाति के 47 शरणार्थियों की पहचान जिला प्रशासन ने की है. इन लोगों को भी राहत कैम्पों में भेजने की तैयारी चल रही है.
स्थानीय प्रशासनिक सूत्रों ने बताया है कि असम के कोकराझाड़ तथा सोनीतपुर जिले में बोडो उग्रवादियों द्वारा 80 से अधिक आदिवासियों की हत्या के बाद तनाव की स्थिति बनी हुई है. बोडो तथा आदिवासी जाति के बीच इस हत्याकांड की घटना के बाद दूरी काफी बढ़ गई है. आदिवासी बहुल इलाके में रह रहे बोडो तथा राभा समुदाय के लोग डरे हुए हैं. आदिवासियों द्वारा बदले की आशंका के मद्देनजर बोडो और राभा समुदाय के कई लोग अपना घर-वार छोड़कर अलीपुरद्वार के विभिन्न स्थानों में अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लिये हुए हैं. जिला प्रशासन ने ऐसे लोगों की पहचान कर ली है.
यह लोग खोरडांगा तथा माराकाटा इलाके में अपने रिश्तेदारों के यहां रूके हुए हैं. जिला प्रशासन ने इन लोगों के लिए कुमारग्राम में अलग से राहत कैम्प बनाने की योजना तैयार की है. इनके रिश्तेदारों से बातचीत कर सभी को राहत कैम्पों में भेज दिया जायेगा. इस बीच, कुमारग्राम में चल रहे पांच राहत शिविरों में नेताओं एवं अधिकारियों का दौरा जारी है. मंगलवार को राज्य के वन मंत्री विनय कृष्ण बर्मन, अलीपुरद्वार के सांसद दशरथ तिरकी आदि ने राहत कैम्पों का दौरा किया. इसके अलावा असम से भी कई अधिकारियों के राहत शिविरों का जायजा लेने की खबर है.
प्रशासनिक सूत्रों ने बताया है कि कोकराझाड़ के जिला अधिकारी राहत सामग्री लेकर यहां आये थे और तीन राहत शिविरों में इनका वितरण किया गया. हालांकि असम के अधिकारियों ने राहत शिविरों में रह रहे लोगों से बातचीत नहीं की. इन लोगों का कहना था कि शरणार्थियों के आक्रोश का शिकार न होना पड़े, इसलिए वह लोग राहत शिविर में रह रहे लोगों के साथ बातचीत के लिए नहीं जा रहे हैं.
दूसरी तरफ पांचों राहत शिविरों में शरणार्थियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है. वन मंत्री विनय कृष्ण बर्मन ने कहा है कि राहत शिविर में जितने भी रह रहे हैं उसमें से 40 प्रतिशत बच्चे और नवजात हैं. दो बच्चे ऐसे भी हैं जिनके माता-पिता की कोई खबर नहीं है. मंगल मूूमरू तथा सालिनी मूमरू नामक दोनों बच्चे के माता-पिता का कोई अता-पता नहीं चल सका है. यह दोनों बच्चे कुछ भी नहीं बोल पा रहे हैं. इन्हें बस सिर्फ अपना नाम पता है. तृणमूल के जिला अध्यक्ष मृदुल गोस्वामी ने कहा है कि इन बच्चों के माता-पिता का पता लगाने के लिए असम सरकार के अधिकारियों के साथ बातचीत करने के लिए कहा गया है. यह भी अभी पता नहीं चल सका है कि बोडो उग्रवादियों के हमले में इन बच्चों के माता-पिता जीवित बचे भी हैं या नहीं. गौरतलब है कि पिछले सप्ताह बोडो उग्रवादियों ने कोकराझाड़ तथा सोनीतपुर जिले में बड़े पैमाने पर नरसंहार की घटना को अंजाम दिया था और 80 से अधिक आदिवासियों की हत्या कर दी थी.