सिलीगुड़ी: दाजिर्लिंग के सुदूर अपर रोलक बस्ती की प्रथम वर्ष की छात्र मेनुका राई (21) उन प्रतिभावान गोरखा युवाओं का नेतृत्व करती है, जिनकी महत्वाकांक्षा अंतरराष्ट्रीय मैराथन में दौड़ने की है. लेकिन मेनुका का सपना बीच रास्ते में ही जैसे बिखर गया है. वह मदद के लिए कई बार गुहार लगा चुकी है, लेकिन उसकी गुहार कोई सुन नहीं रहा है.
पेशे से किसान शांता कुमार राई की सात बेटियों में एक मेनुका ने कक्षा आठ से ही मैराथन में दौड़ना शुरू कर दिया था. वह स्थानीय स्तर से लेकर जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर हिस्सा लेती रही. चार फीट 11 इंच लंबी गोरखा बेटी इन सबके बावजूद पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाहती है.
फिलहाल वह 25 अगस्त को होने जा रहे हैदराबाद मैराथन की तैयारी कर रही है. मुंशी प्रेमचंद कालेज से पढ़ रही मेनुका के परिवार की माली हालत इतनी अच्छी नहीं है कि वह अपना ध्यान अपने इस सपने को पूरा करने में लगायें. उसका सपना अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भारत का नेतृत्व करने का है. पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच मेनुका अब निराश होकर पुलिस कांस्टेबल की नौकरी पाने की कोशिश कर रही है. लेकिन इसमें भी वह सफल नहीं हो पायी है. पहाड़ के बहुत सारे युवाओं को मेनुका ने रास्ता दिखाया है, जो मैराथन में हिस्सा लेने के लिए गंभीर रहे हैं.
मैराथन को उसने तब गंभीरता से लिया, जब उसकी मुलाकात कलिंपोंग की निवासी पेशे से वकील रोशनी राई से हुई. रोशनी मुंबई में वकालत करती है. वह मुंबई मैराथन में नियमित हिस्सा लेती हैं. साथ ही दक्षिण अफ्रीका में हुए मैराथन में भी रोशनी ने हिस्सा लिया था. रोशनी पहाड़ के युवाओं को इस बारे में काफी मदद देती हैं. कई प्रतिभावान खिलाड़ियों में मेनुका में रोशनी ने काफी संभावनाएं देखी.
सबसे पहले मेनुका ने अपने गांव में 2007 में सितोंग ग्राम पंचायत के अंतर्गत पांच किलोमीटर महिलाओं का मैराथन जीता. तब वह कक्षा आठ में पढ़ती थी. 2011 नवंबर महीने में उसने सिलीगुड़ी के सालबाड़ी में आयोजित मैराथन जीता. यह राज्य स्तर का मैराथन था. पहली बार मेनुका ने जनवरी 2012 में पूणो में राष्ट्रीय स्तर के मैराथन में हिस्सा लिया. इसमें वह सातवें स्थान पर रही. फिलहाल वह हैदराबाद मैराथन की तैयारी कर रही है. मेनुका का कहना है कि बिना तकनीकी सलाह व वित्तीय सहयोग से वह आगे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकती है. अब तक जीटीए या राज्य सरकार से उसे कोई सहयोग नहीं मिला है.