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छठ के लिए मिट्टी का चूल्हा व बांस का सूप बनानेवाले कारीगरों की हालत दयनीय

सिलीगुड़ी : लोक आस्था का महापर्व छठ में महज कुछ ही दिन शेष बचे हैं. इस पर्व की लोकप्रियता देश-विदेश में भी है. छठ महापर्व की खासियत यह है कि तमाम आधुनिक सुख-सुविधाओं के बावजूद परंपरागत तरीकों से यह मनाया जाता है. छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस के सूप का […]

सिलीगुड़ी : लोक आस्था का महापर्व छठ में महज कुछ ही दिन शेष बचे हैं. इस पर्व की लोकप्रियता देश-विदेश में भी है. छठ महापर्व की खासियत यह है कि तमाम आधुनिक सुख-सुविधाओं के बावजूद परंपरागत तरीकों से यह मनाया जाता है. छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस के सूप का ही प्रयोग किया जाता है, जबकि खरना का प्रसाद पारंपरिक तरीके से मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाया जाता है. लेकिन इन सामानों को बनाने वाले कारीगरों की अवस्था दयनीय होती जा रही है. दो वक्त की रोटी के लिए इन लोगों को काफी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती है.

शहर से 42 किलोमीटर दूर खोरीबारी के चक्करमारी भजनपुर में कई परिवार सालों भर बांस का सूप व दउड़ा बनाने में लगे रहते हैं. छठ के समय इनकी मांग बढ़ जाती है. केवल सिलीगुड़ी ही नहीं, बल्कि आसपास के इलाके सहित पड़ोसी देश नेपाल में भी भजनपुर के सूप व दउड़ा की काफी मांग है. इस पेश से जुड़े रूपन महतो ने बताया कि पहले उनके बाप-दादा इस काम को करते थे. अब वे इस पेशे से जुड़ गये हैं. उन्होंने बताया कि वह अपने बच्चों को इस पेशे में नहीं लाना चाहते है.
क्योंकि इस पेशे में मेहनत के हिसाब से आमदनी नहीं हो पाती है. उन्होंने बताया कि साल में दो बार ही छठ पूजा के समय बांस के सूप व दउड़ा की मांग बढ़ती है. जबकि अन्य दिनों में उनका कारोबार काफी मंदा रहता है. वहीं छठ पूजा के खरना में मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद बनाने का रिवाज है. जिस वजह से वर्धमान रोड पर मिट्टी के चुल्हे की दुकानें सजने लगी है.
इसी के साथ गोइठा भी बिकने लगा है. एक दर्जन गोइठा 20 से 25 रूपये के दर से बिक रहा है. इस संबंध में चूल्हा बेचने वाली मोहनी सहनी ने बताया कि वह पूरे साल मिट्टी का चूल्हा बनाकर बेचती है. गैस व इंडक्शन के जमाने में भी छठ व्रती मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाती है. उन्होंने बताया कि मिट्टी का एक चुल्हा 400 से 500 रुपये में बिकता है.

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