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आर्थिक संकट में साढ़े चार लाख चाय श्रमिक, चाय श्रमिक संगठनों ने शुरु किया आंदोलन

जलपाईगुड़ी : राज्य के चाय उद्योग में कार्यरत साढ़े चार लाख श्रमिकों के सामने आर्थिक संकट है. लेकिन इसके बावजूद अभी तक इनके लिये न्यूनतम मजदूरी पर सहमति नहीं बन पायी है. इस वजह से श्रमिकों में असंतोष है. इसके प्रतिवाद में चाय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मंच ने आंदोलन शुरु कर दिया है. बीते […]

जलपाईगुड़ी : राज्य के चाय उद्योग में कार्यरत साढ़े चार लाख श्रमिकों के सामने आर्थिक संकट है. लेकिन इसके बावजूद अभी तक इनके लिये न्यूनतम मजदूरी पर सहमति नहीं बन पायी है. इस वजह से श्रमिकों में असंतोष है. इसके प्रतिवाद में चाय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मंच ने आंदोलन शुरु कर दिया है. बीते 29 जुलाई को चाय बागानों में विभिन्न मुद्दों को लेकर श्रमिकों ने गेट मीटिंग की थी.

गुरुवार को जलपाईगुड़ी जिले के चाय श्रमिकों ने विभिन्न सरकारी महकमों में ज्ञापन सौंपकर अपनी आवाज उठायी. डेंगाझाड़ और करला वैली चाय बागानों के श्रमिकों ने जुलूस निकालकर श्रम विभाग के कार्यालय तक जाकर वहां ज्ञापन सौंपे.
इस दौरान आयोजित पथसभा को ज्वाइंट फोरम के नेता जियाउल आलम व अन्य ने वक्तव्य रखे. उसके बाद एक प्रतिनिधिदल ने श्रम विभाग को ज्ञापन सौंपा. वहीं, भांडीगुड़ी के बारोपेटिया ग्राम पंचायत अंतर्गत शिकारपुर चाय बागान के श्रमिकों ने ग्राम पंचायत कार्यालय में ज्ञापन सौंपे.
श्रमिक नेताओं का कहना है कि चाय बागानों में समान काम के लिये समान वेतन के नियमों का लगातार उल्लंघन हो रहा है.
डंकन्स और अलकेमिस्ट समूह समेत कई बड़े चाय बागानों के बंद और रुग्ण होने से श्रमिकों का संकट बढ़ा है. पिछले आठ साल से इन श्रमिकों को आवासीय और स्वास्थ्य संबंधी सलाहकार कमेटियां या तो निष्क्रिय हैं या नये सिरे से गठित नहीं हुई हैं.
इस वजह से ये श्रमिक पूरे उत्तरबंगाल में आवासीय, पेयजल, जलनिकासी जैसी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं. ये लोग खाद्य सुरक्षा कानून बागान मालिकों के स्वार्थी नीति के चलते वंचित होकर कुपोषण के शिकार हैं. वे अपने राशन से भी वंचित हो रहे हैं. इनके लिये जमीन का पट्टा की मांग भी लंबे समय से लंबित हैं.
सबसे बड़ी बात है कि केंद्र सरकार के एक करोड़ रुपये या उससे अधिक की नकद निकासी पर दो प्रतिशत टीडीएस के नियम से श्रमिकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र देने के अलावा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से समय मांगते हुए पत्र दिया गया है.

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