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अंजान कंधों पर तय होता है अंतिम सफर

वृद्धाश्रम में रहकर भी बेटों के लिए मांगती हैं दुआएं जब अपनों ने ठुकराया तो डॉ पूनम ने अपनाया सिलीगुड़ी : वृद्धाश्रम में रहने वाली वृद्ध महिलाओं के खिलखिलाते चेहरों को देखिये, उनकी मुस्कुराती आंखों को पढ़िये जैसे बेफ्रिक जिंदगी जीने का कोई कोचिंग सेंटर हो. लेकिन झांकिये जरा उनकी झुर्रियों में, उठाइये माथे के […]

वृद्धाश्रम में रहकर भी बेटों के लिए मांगती हैं दुआएं

जब अपनों ने ठुकराया तो डॉ पूनम ने अपनाया
सिलीगुड़ी : वृद्धाश्रम में रहने वाली वृद्ध महिलाओं के खिलखिलाते चेहरों को देखिये, उनकी मुस्कुराती आंखों को पढ़िये जैसे बेफ्रिक जिंदगी जीने का कोई कोचिंग सेंटर हो. लेकिन झांकिये जरा उनकी झुर्रियों में, उठाइये माथे के सिलवटों की परतों को. इसमें दिखेंगे आपको कई जख्म. इन हंसते-खिलखिलाते झुर्रियों में छिपा है बहुत सा दर्द. यह दर्द अपनों के हाथों ठुकरा दिये जाने का है. दर्द बेसहारा हो जाने का है. हममें से हर कोई पूरी जिंदगी मेहनत करता है. अपनी हैसियत से आगे जाकर अपने बच्चों को पढ़ाता-लिखाता है.
अपने हिसाब से बच्चों को अच्छी से अच्छी परवरिश देता है. सिर्फ और सिर्फ इस उम्मीद में कि जब हमारी उम्र ढलेगी, जब हमारा शरीर कमजोर होगा, जब हमें आराम की जरूरत होगी. तब हमारे बच्चे हमारी वैसी ही देखभाल करेंगे, जैसे हमने उनकी की थी जब वो बच्चे थे. बहुत से माताओं की ये उम्मीद भी टूट जाती हैं, जब उनके बच्चे उनका साथ छोड़ देते हैं. ऐसे में बुजुर्ग मां जायें तो कहां जायें. करें तो क्या करें. इन्हीं माताओं के दर्द को कम करने की कोशिश में जुटी हैं डॉ. पूनम सुब्बा.
जिनका कोई नहीं है उनके साथ सत्य साई ऑर्गनाइजेशन के बैनर तले वे अपने पति डॉ. अशोक मुखर्जी के साथ मिलकर बखूबी सेवा कर रही हैं. इस वृद्धाश्रम में माताओं के देहांत होने पर अपनों के कंधे नसीब नहीं होते. यहां अंजान कंधों पर अंतिम सफर तय करती हैं मां. डॉ. पूनम अपने पति डॉ. अशोक मुखर्जी के साथ इन माताओं के दुख को कम करने में जुटी हैं.

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