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दार्जिलिंग : आंदोलन करने के लिए बाध्य कर रहे चाय बागान मालिक

दार्जिलिंग : आज श्रमिकों के दुख-दर्द को समझकर चाय बागान मालिकों ने श्रमिकों की दैनिक मजदूरी बढ़ायी होती तो आज गेट मीटिंग करने की नौबत नहीं आती. चाय बागानों और श्रमिकों के बीच मजदूरी वृद्धि के मुद्दे को लेकर चल रही तना-तनी के बीच गेट मीटिंग के दौरान ज्वाइंट फोरम के वरिष्ठ नेता वाइ लामा […]

दार्जिलिंग : आज श्रमिकों के दुख-दर्द को समझकर चाय बागान मालिकों ने श्रमिकों की दैनिक मजदूरी बढ़ायी होती तो आज गेट मीटिंग करने की नौबत नहीं आती. चाय बागानों और श्रमिकों के बीच मजदूरी वृद्धि के मुद्दे को लेकर चल रही तना-तनी के बीच गेट मीटिंग के दौरान ज्वाइंट फोरम के वरिष्ठ नेता वाइ लामा ने गुरुवार को उक्त बात कही.
उल्लेखनीय है कि चाय श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी की मांग को लेकर ज्वाइंट फोरम की तरफ से हैप्पी वैली चाय बागान में गेट मीटिंग की गई थी. इस मौके पर ज्वाइंट फोरम के हिल कॉन्वेनर जेबी तमांग, प्रवक्ता सुनील राई, अमर लामा, किशोर गुरुंग, एसके लामा, धीरज राई और रवीन गुरुंग की मुख्य रूप से उपस्थिति रही.
गेट मीटिंग को संबोधित करते हुए ज्वाइंट फोरम के नेता वाइ लामा ने कहा कि चाय बागानों के मालिकों ने श्रमिकों की तकलीफ को समझते हुए वर्तमान में महंगाई का ख्याल रखते हुए दैनिक मजदूरी में वृद्धि की होती, तो श्रमिक संगठनों को इस तरह गेट मीटिंग और सभा करने की जरूरत ही नहीं होती.
उन्होंने चाय बागान मालिकों पर तंज कसते हुए कहा कि मालिक वर्ग हमेशा से श्रमिकों का शोषण और दमन ही करते रहे हैं. इसलिए मालिक वर्ग की शोषण और दमनकारी नीतियों के खिलाफ श्रमिकों को एकजुट होना होगा. उन्होंने आरोप लगाया कि आज श्रमिकों के शोषण के चलते वे लोग चाय बागानों को छोड़कर अन्य राज्यों में काम की तलाश में जा रहे हैं.
चाय बागानों में श्रमिकों की कमी होती जा रही है. अगर यही रूझान लंबे समय तक कायम रहा, तो भविष्य में चाय उद्योग पर ही संकट आ सकता है. उधर, ज्वाइंट फोरम के प्रवक्ता सुनील राई ने अपने संबोधन में श्रमिकों को संगठित होने का आह्वान करते हुए कहा कि हमारे अंदर एकता के अभाव के चलते मालिक वर्ग और सरकार हमारी मांगों और जायज हक की अनदेखी कर रहे हैं.
अगर हम संगठित होकर आंदोलन चलायें तो मालिक वर्ग हमारी मांग मानने पर मजबूर हो जायेगा. इसी तरह अमर लामा ने भी कहा कि पहाड़ और तराई-डुवार्स के चाय श्रमिक एक ही तरह का काम करते हैं. लेकिन जब पगार की बात होती है, तो पहाड़ के श्रमिकों के साथ सौतेला रवैया अपनाया जाता है, यह ठीक नहीं है.

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