12.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चायवालों को नये प्रधानमंत्री से उम्मीद

हावड़ा: एक चायवाले का दर्द एक चायवाला अच्छी तरह समझ सकता है. देश के नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारी व्यथा जरूर सुनेंगे, क्योंकि वह भी स्टेशन पर चाय बेच चुके हैं. टीवी पर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण करता देख जवाहर लाल की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. ये आंसू […]

हावड़ा: एक चायवाले का दर्द एक चायवाला अच्छी तरह समझ सकता है. देश के नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारी व्यथा जरूर सुनेंगे, क्योंकि वह भी स्टेशन पर चाय बेच चुके हैं. टीवी पर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण करता देख जवाहर लाल की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. ये आंसू आंखों में उम्मीद के जगने से बहे थे.

जवाहर लाल की पूरी जवानी हावड़ा स्टेशन के चाय स्टॉल पर चाय बेचते निकल गयी. वह भी उस स्टॉल पर जो कभी उसके पिता का हुआ करता था. स्टॉल संख्या टी-4 से उनके पिता ने अपने परिवार का अच्छा भविष्य संजोया था, जो आज टूटता नजर आ रहा है. पिता की मृत्यु के बाद स्टॉल उसके परिवार की जगह एक अन्य वेंडर को आबंटित कर दिया गया. इसके बाद जवाहर उस स्टॉल पर हेल्पर का काम करने लगे, लेकिन बाद में स्टॉल के नये वेंडर ने उन्हें स्टॉल से ही बेदखल कर दिया. इससे उनके परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा. जवाहर कहते हैं : मैंने हर किसी से मिन्नत की, लेकिन अब तो देश के नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही उम्मीद है कि वह हम जैसे स्टेशनों पर चाय बेचनेवालों का कुछ भला करेंगे. लगभग तीन दशक से इसी स्टॉल की कमाई से परिवार पालते रहे. मेरी उम्र आज 40 वर्ष है. इस आफत की घड़ी में पांच बच्चों की परवरिश कर पाना कठिन हो गया. तीन बेटियों की शादी की फिक्र भी सताती है. बच्चों की पढ़ाई छुड़वानी पड़ी. अच्छे भविष्य का सपना देखा था. आज टूटता नजर आ रहा है. लाख कोशिश के बाद भी रेलवे ने मेरे नाम पर स्टॉल स्थानांतरित नहीं किया.

57 परिवार को उम्मीद

हावड़ा और बर्दवान स्टेशनों पर 57 परिवार ऐसे हैं, जिनके पिता या मां कभी रेलवे के पंजीकृत कमीशन वेंडर थे, जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती थी, पर आज ये स्टॉल किसी अन्य के नाम से आवंटित कर दिये गये हैं. मृत वेंडर के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर स्टॉल आबंटित होना चाहिए था, पर सरकार के ढुलमुल रवैये का खामियाजा इन परिवारों को भुगतना पड़ रहा है. वहीं हावड़ा स्टेशन पर कुछ ऐसे वेंडर भी हैं, जो मिलीभगत के कारण एक नहीं, बल्कि तीन-तीन स्टॉल चला रहे हैं. उनके ऊपर अतिरिक्त मेहरबानी है.

ममता को मोदी से आस

ममता कोले के पति शंकर कोले के नाम से हावड़ा स्टेशन के न्यू कांप्लेक्स पर टी-स्टॉल संख्या 24 हुआ करता था. 2009 में शंकर की मौत हो गयी, जिसके बाद से ममता उस स्टॉल पर नौकर के रूप में काम करने को मजबूर है. शंकर कोले की मौत के दो साल से ज्यादा हो गये, लेकिन आज तक ममता के नाम से स्टॉल एलॉट नहीं हुआ. तीन बेटियों और एक बेटे को लेकर ममता दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं.

ममता कहती हैं : 1993 में जब हावड़ा न्यू कॉम्प्लेक्स स्टेशन बना तो यहां पर पहला स्टॉल मरे पति के नाम से ही पंजीकृत हुआ था. आज पैसे कि खातिर मेरे बेटे-बेटियों की पढ़ाई छूट गयी. मैं अपनी गुहार लेकर हर रेलवे अधिकारी से मिली, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अब तो नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही आशा है.

हावड़ा स्टेशन पर हेल्पर का काम कर चुके पंकज सिंह बताते हैं कि 2009 में रेलवे द्वारा हावड़ा और बर्दवान के 57 मृत वेंडरों के आश्रितों का फॉर्म भरवाया था. 2010 में एक आश्रित विमला देवी वर्मा का मेडिकल भी हुआ. दरअसल कैटरिंग विभाग में स्टॉल बंटवारे की कोई स्पष्ट नीति नहीं है, लिहाजा इसका फायदा उन स्टेशनों पर पकड़ रखनेवाले कुछ दबंग टाइप के नेता उठा रहे हैं. खाली स्टॉल अपनों को दिला रहे हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी

2010 के बाद से ही आइआरसीटीसी के तमाम अधिकार भारतीय रेलवे ने ले लिया है. अब स्टेशनों पर स्टॉलों का आबंटन रेलवे करती है. हमारा काम रेलवे स्टेशनों पर स्थित स्टॉलों को खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाना और वेंडरों से कमीशन जमा लेना है. स्टॉलों के लिए नीति निर्धारण का काम भी रेलवे प्रशासन ही करता है.

एके विश्वास, डीजीएम, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड कॉरपोरेशन

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें