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इलाज को मोहताज मरीज

10 सालों से पूरी परियोजना फाइल में बंद मात्र एक डॉक्टर के भरोसे चल रहा है पूरा कामकाज कालियागंज : उत्तर दिनाजपुर जिले के मानसिक रूप से बीमार रोगियों को चिकित्सा कराने में काफी परेशानी हो रही है. अलग वार्ड नहीं होने की वजह से रोगियों को भर्ती होने में काफी कठिनाइयों का सामना करना […]

10 सालों से पूरी परियोजना फाइल में बंद
मात्र एक डॉक्टर के भरोसे चल रहा है पूरा कामकाज
कालियागंज : उत्तर दिनाजपुर जिले के मानसिक रूप से बीमार रोगियों को चिकित्सा कराने में काफी परेशानी हो रही है. अलग वार्ड नहीं होने की वजह से रोगियों को भर्ती होने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
डॉक्टर जल्दी रोगियों को भर्ती नहीं करना चाहते और यदि भर्ती करनी भी पड़े तो आम रोगियों के वार्ड में मानसिक रोगी को रख दिया जाता है. इससे उस वार्ड के रोगी भी परेशान रहते हैं. ऐसा नहीं है कि रायगंज जिला अस्पताल में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए अलग से वार्ड बनाने की मंजूरी नहीं मिली है. 10 साल पहले ही इसकी मंजूरी मिल गई थी. लेकिन यह पूरी परियोजना एक तरह से फाइल में दब कर रह गया है, जिसकी वहज से अलग वार्ड का निर्माण नहीं हुआ है.
स्थानीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सिर्फ वार्ड की ही कमी नहीं है, बल्कि मानसिक रोगियों की चिकित्सा के लिए डॉक्टर की भी कमी जिले में है. कोई विशेषज्ञ चिकित्सक की नियुक्ति भी यहां नहीं की गई है.
जिसके परिणामस्वरूप मानसिक रूप से बीमार रोगियों की चिकित्सा के लिए परिजनों को सिलीगुड़ी के उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज अथवा मालदा के मालदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल का चक्कर काटना पड़ता है.
इससे समय एवं पैसे दोनों की बर्बादी होती है. परिजनों का आरोप है कि ऐसे नाम के रायगंज अस्पताल में एक डॉक्टर हैं, जो मानसिक रोगियों की चिकित्सा के लिए हैं. लेकिन वास्तविक स्थिति बिल्कुल अलग है. उनके ऊपर इमरजेंसी विभाग में काम करने के साथ ही पोस्टमार्टम करने की भी जिम्मेदारी है. जिसके परिणाम स्वरूप वह मानसिक रोगियों की चिकित्सा कम, बल्कि दूसरे कार्यों में ज्यादा व्यस्त रहते हैं. मानसिक रूप से बीमार रोगियों के परिजनों ने आगे बताया है कि रायगंज अस्पताल में सप्ताह में सिर्फ दो बार रोगियों की चिकित्सा की जाती है.
यही चिकित्सक सोमवार तथा बृहस्पतिवार को ओपीडी में बैठते हैं. उस दिन उन्हें ना केवल मानसिक रोगियों की बल्कि अन्य रोगियों की चिकित्सा भी करनी पड़ती है. ऐसे ही आउटडोर विभाग में रोगियों की काफी भीड़ होती है. कई बार तो डॉक्टर आ ही नहीं पाते हैं.

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