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कई बैठकों के बाद भी चाय बागान के श्रमिकों की समस्याएं जस की तस, दो संगठन करेंगे बैठक का बहिष्कार

सिलीगुड़ी: न्यूनतम मजदूरी एक्ट-1948 को लागू करने के लिए किसी भी प्रकार की त्रिपक्षीय वार्ता की आवश्यकता नहीं है. इस कानून को लागू करने के लिए संविधान ने सरकार को पूरी शक्ति प्रदान की है. इस बात का दावा करते हुए आदिवासी जनशक्ति मोर्चा व उत्तर बंगाल चाय मजदूर अधिकार मंच ने 22 दिसंबर को […]

सिलीगुड़ी: न्यूनतम मजदूरी एक्ट-1948 को लागू करने के लिए किसी भी प्रकार की त्रिपक्षीय वार्ता की आवश्यकता नहीं है. इस कानून को लागू करने के लिए संविधान ने सरकार को पूरी शक्ति प्रदान की है. इस बात का दावा करते हुए आदिवासी जनशक्ति मोर्चा व उत्तर बंगाल चाय मजदूर अधिकार मंच ने 22 दिसंबर को मिनी सचिवालय उत्तरकन्या में होनेवाली त्रिपक्षीय बैठक का बहिष्कार करने की घोषणा की है. साथ ही इस बैठक के परिणाम का आंकलन करने के बाद न्यूनतम मजदूरी एक्ट लागू करने के लिए जोरदार आंदोलन की भी धमकी दी है. आदिवासी जनशक्ति मोर्चा व मजदूर अधिकार मंच ने चाय श्रमिकों की न्यूनतम दैनिक मजदूरी 500 रुपये करने की मांग भी रखी है.

यहां उल्लेखनीय है कि 22 दिसंबर को सिलीगुड़ी के निकट राज्य मिनी सचिवालय उत्तरकन्या में राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक की अध्यक्षता में एक त्रिपक्षीय बैठक होनी है. इस बैठक में चाय बागानों के मालिक, चाय बागान श्रमिक संगठनों के नेता तथा राज्य सरकार के प्रतिनिधि उपस्थित रहेंगे. इसमें उत्तर बंगाल के सबसे बड़े चाय उद्योग की वर्तमान स्थिति, श्रमिकों के हालात व बंद पड़े चाय बागानों को लेकर चर्चा होगी. इसी बैठक में चाय श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी को लेकर भी चर्चा होने की संभावना है.

इस बैठक में उत्तरर बंगाल के चाय बागानों से जुड़े तमाम श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित रहेंगे. जबकि आदिवासी जनशक्ति मोर्चा व उत्तर बंगाल चाय मजदूर अधिकार मंच ने इस बैठक का बहिष्कार कर दिया है. बुधवार को सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट क्लब में आदिवासी जनशक्ति मोर्चा व उत्तर बंगाल चाय मजदूर अधिकार मंच के प्रतिनिधि संयुक्त रूप से पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे. आदिवासी जनशक्ति मोर्चा के महासचिव जेरोम लाकड़ा ने राजनीतिक पार्टियों से जुड़े श्रमिक संगठनो पर जोरदार हमला किया. उन्होंने कहा कि राजनीतिक श्रमिक संगठन के नेता चाय बागान के मजदूरों के हित में नहीं बल्कि सरकार की दलाली करते हैं. आजादी के एक वर्ष बाद ही न्यूनतम मजदूरी एक्ट 1948 पारित किया गया, लेकिन आजादी के इतने वर्ष बाद भी उत्तर बंगाल के चाय बागानों के श्रमिकों को इस कानून के तहत मजदूरी नहीं मिल रही है. उत्तर बंगाल के चाय बागानों में इस कानून को लागू ही नहीं किया गया.
बागान मालिकों पर निशाना
चाय बागान मालिकों व बागान प्रबंधन को आड़े हाथों लेते हुए श्री लाकड़ा ने कहा कि पहले टी प्लांटर्स और मैनेजर हुआ करते थे, जबकि वर्तमान में प्लांटर्स का स्थान बनियों ने और मैनेजर का स्थान ठेकेदारों ने ले लिया है. त्रिपक्षीय वार्ता के जरिये सरकार बनिये से यह पूछती है कि क्या आप मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी के तहत मजदूरी देगें. एक बनिया कभी भी नहीं चाहेगा कि उसका मुनाफा कम हो और मजदूरों को उसका हक मिले, जबकि सरकार को बिना किसी संकोच के इस कानून को लागू करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि चाय बागानों के मजदूर अपनी न्यूनतम आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान ही पूरा नहीं कर पा रहे हैं. शिक्षा व हर्ष-उल्लास की बातें, तो श्रमिकों के दिमाग में आती ही नहीं.
पहले भी कर चुके हैं बहिष्कार
संगठन के संबंध में जेरोम लाकड़ा ने बताया कि आदिवासी जनशक्ति मोर्चा का गठन वर्ष 2014 में हुआ. इसके बाद न्यूनतम मजदूरी को लेकर 17 और 20 फरवरी 2015 में बैठक आयोजित हुई. इन दो बैठकों को छोड़ कर आदिवासी जनशक्ति मोर्चा अन्य किसी भी बैठक में शामिल नहीं हुआ. क्योंकि इन बैठकों का आज तक कोई परिणाम नहीं निकला है. आगामी 22 दिसंबर को होनेवाली बैठक में भी परिणाम निकलने की संभावना नहीं है. ऐसे बैठकों में चाय, नाश्ता, पार्टी की गतिविधियां और राजनीतिक श्रमिक नेताओं की लॉबीबाजी के अलावा कुछ नहीं होता है.
चाय श्रमिकों की दैनिक मजदूरी मात्र मात्र 132 रुपये
उन्होंने कहा कि 1947 से लेकर आज तक इस राज्य में तीन राजनीतिक पार्टियों ने सरकार बनायी. पिछली दोनों कांग्रेस और वाम मोरचा ने काफी वर्षों तक शासन करने के बाद भी इस कानून को नजर अंदाज किया. बल्कि वर्तमान तृणमूल सरकार भी इस कानून को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. वर्तमान में चाय श्रमिकों की दैनिक मजदूरी 132.50 रुपये है. इतने रुपये में एक आदमी का भोजन मुश्किल है. परिवार चलाना तो असंभव है. उन्होंने आगे कहा कि विदेशी मुद्रा अर्जित करने में चाय उद्योग की भूमिका अहम है, फिर भी राज्य सरकार इस उद्योग की ओर ध्यान नहीं दे रही है.
आगे क्या करेंगे
अपने आगामी आंदोलन के बारे में उन्होंने कहा कि 22 दिसंबर की बैठक से पहले श्रम मंत्री को संयुक्त श्रम आयुक्त के मार्फत एक ज्ञापन सौंपा जायेगा. 22 दिसंबर की बैठक का परिणाम देखने के बाद तराई-डुआर्स के चाय बागानों में हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा. इसके बाद संगठन के करीब दस हजार से भी अधिक सदस्यों को एकत्रित कर आंदोलन की रूपरेखा तय की जायेगी. शुरुआत से ही चाय बागान श्रमिकों का शोषण व संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है. आवश्यकता पड़ने पर सरकार के खिलाफ अदालत का दरवाजा भी खटखटाया जायेगा. आज के पत्रकार सम्मेलन में मोर्चा के लेओस हासापूर्ति व उत्तर बंगाल चाय मजदूर अधिकार मंच के अध्यक्ष जॉन एक्का सहित अन्य भी उपस्थित थे.

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