सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल का एक प्रमुख उद्योग चाय पिछले कई दशकों से संकट के दौर से गुजर रहा है. खास तौर पर चाय का निर्यात अपने न्यूनतम स्तर पर होने से चाय उत्पादकों में चिंता व्याप्त है. इसको लेकर टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्र सरकार और भारतीय चाय बोर्ड से सहायता के लिये गुहार […]
सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल का एक प्रमुख उद्योग चाय पिछले कई दशकों से संकट के दौर से गुजर रहा है. खास तौर पर चाय का निर्यात अपने न्यूनतम स्तर पर होने से चाय उत्पादकों में चिंता व्याप्त है. इसको लेकर टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्र सरकार और भारतीय चाय बोर्ड से सहायता के लिये गुहार लगाई है. उसने अगले तीन साल की अवधि के लिये टी बोर्ड से चाय का निर्यात 300 मिलियन किलो तक पहुंचाने का लक्ष्य रखने का अनुरोध भी संगठन ने प्र्रस्ताव दिया है.
एसोसिएशन के पक्ष से अध्यक्ष आदर्श कनोरिया ने बताया कि वर्ष 2016 में विश्व के कुल चाय के निर्यात बाजार में भारत का हिस्सा मात्र 12 प्रतिशत था. यह देखने में आ रहा है कि चाय के निर्यात में ठहराव की स्थिति है. अर्थात चाय का निर्यात आज भी उसी 12 प्रतिशत पर कायम है. खासतौर पर वर्ष 2010-2016 के बीच चाय के निर्यात में कोई खास वृद्धि दर्ज नहीं हुई है.
सूत्रों के अनुसार पिछले साल पूरी दुनिया में चाय का कुल निर्यात 1,774 मिलियन किलोग्राम था जिसमें भारत का हिस्सा 222 मिलियन किलोग्राम था. 2016 में भारत का चाय निर्यात मुख्य रुप से रूस, इरान, यूईए और मिश्र को किया गया था. आदर्श कनोरिया ने बताया कि चाय के निर्यात में इस ठहराव की मुख्य वजह अंतरराष्ट्रीय चाय के बाजार में तेज हो रही प्रतिस्पर्द्धा है. इस प्रतिस्पर्द्धा में भारत के चाय निर्माताओं के लिये जमे रहना मुश्किल हो रहा है. भारत के चाय निर्माता की लागत अन्य देशों की तुलना में अधिक है जिससे चाय का मूल्य ज्यादा होता है. चाय उद्योग ने वर्ष 2020 तक चाय का निर्यात 275-300 मिलियन किलोग्राम करने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन चाय की बढ़ी लागत के चलते यह लक्ष्य केंद्र सरकार और चाय बोर्ड की मदद के बिना संभव नहीं है.
उन्होंने कहा कि पारंपरिक चाय का उत्पादन और चाय उत्पादन के लिये प्रोत्साहन (इनसेंटिव) की समीक्षा जरूरी है. उल्लेखनीय है कि भारत में चाय उत्पादन का 56 प्रतिशत हिस्सा बड़े चाय बागानों से आता है जबकि इसमें लघु चाय बागानों का योगदान तकरीबन 44 प्रतिशत है. पिछले छह-सात साल के दौरान लघु चाय बागानों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है. वर्ष 2010 में लघु चाय बागानों का हिस्सा मात्र 26 प्रतिशत था. गौरतलब है कि लघु चाय बागानों की बढ़ रही हिस्सेदारी संगठित चाय बागानों के लिये चुनौती बनी हुई है.
इसकी वजह है कि लघु चाय बागानों की तुलना में बड़े चाय बागानों की उत्पादन लागत अधिक है. यह लागत बढ़े हुए वेतन, सुविधाओं के अलावा कारखानों का रख-रखाव है. वहीं, टी ऑक्शन में दोनों तरह की चाय की कीमतों में ज्यादा अंतर भी नहीं है. यही वजह है कि बड़े चाय बागानों के स्थायित्व पर प्रश्न खड़ा हो गया है. एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बड़े चाय बागानों के हित में चाय की खेती के जमीन के साथ अनुपात पर 5 प्रतिशत की सीमा को बढ़ाने की जरूरत है. इससे इन चाय बागानों को अपना उत्पादन बढ़ाने और लागत कम कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में टिके रहने में मदद मिलेगी.