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दार्जिलिंग में ममता की प्रतिष्ठा दावं पर

सिलीगुड़ी: पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. ऐसा इसलिए कि राज्य की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. कभी दार्जिलिंग आकर अपने आपको रफ एंड टफ कहने वाली ममता बनर्जी हर हाल में यहां से अपने उम्मीदवार बाइचुंग भुटिया की जीत […]

सिलीगुड़ी: पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. ऐसा इसलिए कि राज्य की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. कभी दार्जिलिंग आकर अपने आपको रफ एंड टफ कहने वाली ममता बनर्जी हर हाल में यहां से अपने उम्मीदवार बाइचुंग भुटिया की जीत चाहती है, लेकिन यह इतना आसान नहीं दिख रहा. ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी विमल गुरुंग बाइचुंग भुटिया का खेल बिगाड़ने में लगे हैं.

वह हर हाल में भाजपा उम्मीदवार एसएस अहलुवालिया की जीत चाहते हैं. उनकी पार्टी गोरखालैंड मुद्दे पर भाजपा उम्मीदवार का समर्थन कर रही है. दार्जिलिंग लोकसभा सीट का समीकरण बड़ा ही गजब है. यहां किसी भी उम्मीदवार की जीत पहाड़ के मतदाता ही तय करते हैं. पहाड़ के मतदाता जिस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करते हैं, जीत उन्हीं की होती है.

ममता बनर्जी स्वयं बारबार पहाड़ पर आ रही हैं. हाल ही में उन्होंने पहाड़ पर जनसभा की थी और अपने समर्थकों में जोश भरा था. पहले पहाड़ पर तृणमूल कांग्रेस की शक्ति नहीं थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. तृणमूल की शक्ति यहां काफी बढ़ गयी है. इसके अलावा निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र पी लामा भी गोजमुमो का खेल बिगाड़ सकते हैं. उनकी जनसभाओं में भी पहाड़ पर काफी भीड़ हो रही है, लेकिन हो सकता है मोदी की हवा यहां कोई फैक्टर बन जाये और गोजमुमो को इसका लाभ हो.

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ममता बनर्जी ने भले ही इस लोकसभा सीट को अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई बना ली हो, लेकिन वास्तविकता यही है कि बाइचुंग भुटिया की राह आसान नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस बार कांग्रेस मैदान में लगभग नहीं के बराबर है, लेकिन कांग्रेसी ममता बनर्जी की खेल बिगाड़ना चाहते हैं. ऐसे कांग्रेसियों की संख्या कम नहीं है जो जानते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सुजय घटक की जीत की संभावना दूर-दूर तक नहीं है. ऐसे में ये लोग भी कहीं मोदी की लहर में बह जायें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. दार्जिलिंग लोकसभा सीट की महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां एक पर एक हेवीवेट नेता चुनाव प्रचार के लिए आये. ममता बनर्जी स्वयं तो आयीं ही, अपने साथ मिथुन चक्रवर्ती और देव जैसे अभिनेताओं को लेकर आयीं. देव आज चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भी यहां रोड शो कर रहे हैं. भाजपा की ओर से तो नरेंद्र मोदी ही आ गये. माकपा ने भी अपने बड़े नेताओं में सीताराम येचुरी, वृंदा करात आदि को यहां चुनाव प्रचार में झोंका. कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी दार्जिलिंग संसदीय सीट में चुनाव प्रचार के लिए नहीं आये, लेकिन डुवार्स में उन्होंने जनसभा की और वहां दार्जिलिंग संसदीय सीट से कांग्रेसी उम्मीदवार सुजय घटक भी थे.

बदले समीकरण में दिलचस्प होगा चुनाव
इस बार दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र में 14 लाख 15 हजार 168 मतदाता हैं. इनमें छह लाख 11 हजार 665 मतदाता पहाड़ के हैं. गोजमुमो और भाजपा को इन्हीं मतदाताओं पर भरोसा है, लेकिन यहां भी विमल गुरुंग पूरी तरह आश्वस्त नहीं है.

क्योंकि वर्ष 2009 के मुकाबले यहां काफी कुछ बदल गया है. तब पहाड़ के मतदाताओं ने विमल गुरुंग के फरमान पर भाजपा उम्मीदवार जसवंत सिंह के पक्ष में एकतरफा मतदान किया था. उस समय गोरखालैंड आंदोलन चरम पर था. जसवंत सिंह को पहाड़ पर चार लाख 11 हजार 739 वोट मिले थे जबकि समतल में वह मात्र 85196 मतों का ही जुगाड़ कर सके थे. 2009 में पहाड़ पर माकपा उम्मीदवार को मात्र 11421 मतों से ही संतोष करना पड़ा था.

कांग्रेस की स्थिति तो और भी खराब थी और कांग्रेस को मात्र 13132 वोट ही मिले थे. वहीं समतल में स्थिति कुछ अलग ही थी. समतल में माकपा उम्मीदवार जीवेश सरकार दो लाख 32 हजार 345 वोट लेने में कामयाब हुए थे और समतल की विधानसभा सीटों माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी, फांसीदेवा और चोपड़ा में अधिक वोट पाने में कामयाब रहे थे. वर्ष 2009 में समतल में कांग्रेस के दावा नबरूला 135426 वोट पाने में कामयाब रहे थे और माकपा के बाद समतल में दूसरे नंबर पर कांग्रेस रही थी. तब तृणमूल कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं था. तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच गठबंधन था और दार्जिलिंग लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. वर्ष 2009 में जसवंत सिंह को पहाड़ पर सर्वाधिक चार लाख 97 हजार 649 वोट प्राप्त हुआ था, लेकिन इस बार पहाड़ पर भाजपा के लिए भी समीकरण थोड़ा गड़बड़ है. वर्ष 2009 से लेकर अब तक तिस्ता में काफी पानी बह चुका है. इसी तरह से पहाड़ पर समीकरण भी काफी बदला है.

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