पूर्व गोविंदपुर सार्वजनीन दुर्गापूजा कमिटी द्वारा आयोजित दुर्गापूजा का यह 54वां वर्ष है. स्वाधीनता के बाद से ही दो देशों के हिंदी व मुस्लिम एक साथ मिलकर इस दुर्गापूजा का आयोजन करते आ रहे हैं. वर्ष 1953 में यहां पहली बार दुर्गापूजा का आयोजन किया गया था. पहले इस पूजा का आयोजन दोनों देशों की जीरो लाइन पर एक अस्थायी मंदिर में किया जाता था. बाद में बांग्लादेश बोर्डर गार्ड ने इस मंदिर को जीरो लाइन से 20 मीटर पीछे भारतीय जमीन पर खिसका दिया. इलाके के लोग खुद ही चंदा संग्रह कर पूजा आयोजित करते आ रहे हैं. पिछले वर्ष राज्य सरकार की ओर से पूजा आयोजक कमिटी को 25 हजार रुपया इनाम दिया गया था. पूरे वर्ष दोनों देशों की सीमा पर तैनात सेना पैनी निगरानी रखती है.
जबकि पूजा के चार दिन सुरक्षा व्यवस्था को और भी सख्त किया जाता है. पूजा के चार दिन दोनों देशों के नागरिक बिना किसी रुकावट के सीमा पार कर सौहार्द प्रतीक इस दुर्गापूजा में शामिल होते हैं. दोनों देशों के कलाकार एक ही मंच पर भजन कीर्तन का भी आयोजन करते हैं. विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. इस पूजा को केंद्र कर इलाके में एक विशाल मेले का भी आयोजन प्रतिवर्ष होता है.आयोजक कमिटी के सचिव नृपेंद्र मंडल ने बताया कि पहले सीमा के उस पार (बांग्लादेश) 21 दुर्गा पूजा का आयोजन होता था. वर्तमान में 20 पूजा बांग्लादेश में होता है. सिर्फ पूर्व गोविंदपुर का दुर्गापूजा तारघेरा के उसपार भारत की जमीन पर आयोजित किया जाता है.