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ब्लू व्हेल गेम: मनोविकार के लक्षणों से सतर्क रहें अभिभावक
सिलीगुड़ी: ब्लू व्हेल गेम के खतरनाक परिणामों के चलते आज पूरा देश भयग्रस्त है. वहीं, अभी तक इस गेम के स्रोत आदि का पता नहीं चल पाने से यह समस्या जटिल और प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गयी है. बीच-बीच में इस खतरनाक सनकवाले कंप्यूटर गेम की भेंट कई किशोर-किशोरी चढ़ चुके हैं. इस वजह […]
सिलीगुड़ी: ब्लू व्हेल गेम के खतरनाक परिणामों के चलते आज पूरा देश भयग्रस्त है. वहीं, अभी तक इस गेम के स्रोत आदि का पता नहीं चल पाने से यह समस्या जटिल और प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गयी है. बीच-बीच में इस खतरनाक सनकवाले कंप्यूटर गेम की भेंट कई किशोर-किशोरी चढ़ चुके हैं. इस वजह से अभिभावकों और शिक्षक समाज में चिंता व्याप्त है.
श के विभिन्न राज्यों में किशोर उम्र के छात्र छात्राओं की आत्महत्या या आत्महत्या के रुझान के मद्देनजर केंद्र सरकार के मातहत राष्ट्रीय शिशु अधिकार सुरक्षा आयोग (एनसीपीसीआर)ने ब्लू व्हेल गेम की समस्या को लेकर राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश भेजे हैं. उसके बाद से सिलीगुड़ी में भी अभिभावक चौकस हो गये हैं और अपने बच्चों पर निगरानी रख रहे हैं.सिर्फ घरों में माता-पिता ही नहीं अपितु सिलीगुड़ी के विभिन्न स्कूलों में भी चौकसी बरती जा रही है. इधर,प्राप्त जानकारी के अनुसार इस दिशा-निर्देश के मुताबिक राज्य के पुलिस विभाग और विभिन्न स्कूलों को इस तरह के गेमों के शिकार बच्चों के प्राथमिक लक्षणों से अवगत कराया है ताकि समय रहते इन पर निगरानी रखते हुए उनकी काउंसिलिंग की जाये. साथ ही ऐसे बच्चों में संबंधित मनोविकार पाये जाने पर उन्हें कंप्यूटर, लैपटॉप और स्मार्ट फोन से दूर रखने की सलाह दी गई है.
निर्देशिका में कहा गया है कि ब्लू व्हेल गेम, ‘ ए सी ऑफ व्हेल्स ‘ और ‘ बैक मी अप ‘ के नाम से भी परिचित है. यह कोई अलग से एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर नहीं है. सोशल मीडिया के नेटवर्क पर केवल खिलाड़ियों को ही गुप्त रुप से इस गेम का लिंक भेजा जाता है. केंद्र सरकार की ओर से गुगल, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल साइटों को इस तरह के किसी लिंक को ब्लॉक करने या उन्हें बंद करने के लिये कहा गया है. हालांकि अभी तक यह पता सही सही नहीं चल पाया है कि इस तरह के गेम का स्रोत कहां है या कौन सी संस्थाएं इस तरह के गेम संचालित करती हैं.
एनसीपीसीआर के कार्यकारी सदस्य यशवंत जैन ने बताया है कि इस तरह के गेम के निर्देश अंग्रेजी में दिये होते हैं. इसलिये इन्हें वही बच्चा खेल सकता है जो अंग्रेजी जानता हो. इस गेम को खेलने वाले बच्चे ज्यादातर समय अकेले समय बिताना पसंद करते हैं. दोस्तों से दूरी बनाकर रहते हैं. यहां तक कि उनके खान-पान, सोने आदि के समय में परिवर्तन दिखाई देता है. ऐसे बच्चे मृत्यु के बारे में बात करने और कल्पना करने में दिलचस्पी लेते हैं. यशवंत जैन ने बताया कि इस गेम के शिकार बच्चों के अभिभावकों और शिक्षकों के द्वारा विशेष निगरानी रखने के अलावा कोई अन्य ठोस विकल्प नहीं है. ज्यादातर यह सनक 12-19 वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों में पाई जाती है. शिक्षकों और अभिभावकों को यह ख्याल रखना होगा कि ये बच्चे कोई धारदार औजार का उपयोग तो नहीं कर रहे, उनके हाथों पर कटने के निशान हैं या नहीं, हर रोज वह हॉरर या डरावनी फिल्में या वीडियो तो नहीं देखते? अपने होठ काटे तो नहीं या सूई से हाथों में कहीं छेद करने का प्रयास तो नहीं किया है? कंप्यूटर द्वारा भेजे गये किसी अज्ञात गीत को सुन तो नहीं रहा है या तड़के 4:20 मिनट पर घर से बाहर निकलकर किसी उंची जगह को तो नहीं जा रहा है?
स्कूल में शिक्षक शिक्षिकाओं को भी सर्तक रहने की है जरूरत
इस संबंध में अभिभावकों को अपने बच्चों पर विशेष निगरानी रखने की जरूरत है. स्कूल में शिक्षक शिक्षिकाओं को भी सतर्क रहने की जरूरत है. साथ ही सहपाठियों को भी ऐसे बच्चों पर नजर रखनी चाहिये और इसके लिये उन्हें सचेत करने की जरूरत है. यशवंत जैन ने बताया, बच्चे में यदि ऐसे लक्षण दिखाई दे तो तत्काल उन्हें कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट फोन से दूर रखना होगा. जरूरत महसूस हो तो उनकी मनोचिकित्सकों से काउंसिलिंग करानी चाहिये. जब तक पीड़ित बच्चा या बच्ची सामान्य मानसिक अवस्था में नहीं पहुंच जाते तब तक उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं है. अभिभावकों को ज्यादा से ज्यादा समय ऐसे बच्चों को देना चाहिये. निर्देशिका के जरिये आयोग ने राज्य सरकारों से यह जानने का अनुरोध किया है कि ऐसे संभावित बच्चों की आत्महत्या की घटनाओं के पीछे वास्तव में कोई गेम का हाथ है या वे अपने लिये अनिश्चयता व असुरक्षा को लेकर इस तरह के कदम उठा रहे हैं. इन बिंदुओं पर आयोग भी अध्ययन कर रहा है ताकि इस समस्या के मूल कारणों तक पहुंचा जा सके. सिलीगुड़ी देशबंधु हाई स्कूल के शिक्षक अरूण कुमार झा ने इस संबंध में बताया कि इनदिनों बच्चों पर निगरानी बेहद जरूरी है. ब्लू व्हेल गेम का हर ओर आतंक है.ऐसी परिस्थिति में बच्चों पर निगरानी रखना बेहद जरूरी है.
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