सिलीगुड़ी. दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में नये सिरे से गोरखालैंड आंदोलन शुरू होने के बाद करीब एक महीने से पहाड़ पर हर ओर अशांति है. वहां बेमियादी बंद जारी है. हिंसा और आगजनी के बीच पहाड़ पर फिर से शांति बहाल करने के लिए राज्य सरकार ने केन्द्र से सीआरपीएफ जवानों की तैनाती की मांग की थी, जिसे केन्द्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया था. उसके बाद राज्य सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चली गयी. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 48 घंटे के अंदर दार्जीलिंग पहाड़ पर सीआरपीएफ की चार कंपनियां भेजने का निर्देश दिया था. इस निर्देश का असर हुआ और 48 घंटे के अंदर ही दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर सीआरपीएफ की चार कंपनियां तैनात कर दी गयी हैं.
सीआरपीएफ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दो कंपनियां रविवार की रात ही दार्जिलिंग पहुंच गयी हैं, जबकि दो अन्य कंपनियों सोमवार सुबह न्यू जलपाईगुड़ी पहुंचीं. उसके बाद दोनों कंपनियों के जवानों को दार्जीलिंग रवाना कर दिया गया. आरपीएफ सूत्रों ने आगे बताया कि इन चारों कंपनियों को झारखंड तथा असम से लाया गया है. इसके साथ ही अब तक पहाड़ पर सीआरपीएफ की 12 कंपनियां तैनात कर दी गयी हैं. इनमें से आठ पुरुष तो चार महिलाओं की कंपनियां हैं.
सूत्रों ने आगे बताया कि कालिम्पोंग के लोबोंग में तैनात महिला कंपनी को वहां से हटा दिया गया है. इस कंपनी को सदर थाना में तैनात किया गया है. अब लोबोंग में आरपीएफ के पुरुष जवानों की तैनाती की गई है. पहाड़ पर कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर सीआरपीएफ के जवानों ने विभिन्न स्थानों पर पेट्रोलिंग शुरू कर दी है. रात को भी सीआरपीएफ के जवान गश्त लगा रहे हैं. गोरखालैंड आंदोलन की अगुवाई कर रहे गोजमुमो के गढ़ सिंहमारी में सीआरपीएफ की एक कंपनी तैनात की गयी है.
इधर, सीआरपीएफ के अधिकारियों ने फायरिंग के किसी भी घटना से इंकार किया है. सीआरपीएफ के अधिकारियों का कहना है कि सीआरपीएफ की गोली से एक युवक की मौत की घटना बेबुनियाद है. सीआरपीएफ के कमांडेंट राजकुमार मजिलिया ने बताया है कि कानून व्यवस्था बनाये रखने के दौरान सीआरपीएफ को फायरिंग का कोई अधिकार नहीं है. सीआरपीएफ ने किसी भी प्रकार की कोई फायरिंग नहीं की है. इस संबंध में सीआरपीएफ के एक अन्य अधिकारी का कहना है कि जहां कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए सीआरपीएफ की ड्यूटी लगती है, वहां स्थानीय पुलिस तथा मजिस्ट्रेट के निर्देशानुसार सीआरपीएफ को काम करना पड़ता है. सीआरपीएफ का पूरा नियंत्रण स्थानीय प्रशासन के अधीन होता है. उनके रहने आदि तक की व्यवस्था स्थानीय प्रशासन को करनी पड़ती है.
बम से हमला नहीं, केवल पथराव
सीआरपीएफ ने मिरिक में अपने कैम्प पर बदमाशों द्वारा पेट्रोल बम के हमले से इनकार किया है. सीआरपीएफ के कमांडेंट राजकुमार मजिलिया का कहना है कि कुछ बदमाशों ने कैम्प पर पत्थर फेंके थे, जिन्हें खदेड़ दिया गया.
वर्दी के रंग के कारण परेशानी
सीआरपीएफ के अधिकारी ने आगे बताया कि वर्दी के रंग कारण भी कभी-कभी भम्र की स्थिति पैदा हो जाती है. फायरिंग पुलिस अथवा किसी अन्य बलों द्वारा की जाती है और लोग सीआरपीएफ के जवानों पर फायरिंग करने का आरोप लगा देते हैं. सीआरपीएफ देश का सबसे पुराना अर्द्धसैनिक बल है. 1932 में असम राइफल्स के गठन के बाद 1939 में सीआरपीएफ का गठन हुआ है. इस बल का गौरवशाली इतिहास है.
जरूरत पड़ने पर ही फायरिंग करती है सीआरपीएफ
सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने बताया है कि उग्रवाद तथा माओवाद प्रभावित इलाकों में यदि सीआरपीएफ की तैनाती होती है, तो उन्हें गोली चलाने का अधिकार भी होता है. आतंकवादियों से निपटने के लिए फायरिंग करनी पड़ती है. उग्रवाद प्रभावित जम्मू-कश्मीर के अलावा पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में जरूरत पड़ने पर सीआरपीएफ के जवान फायरिंग करते हैं. झारखंड तथा छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित इलाकों में भी सीआरपीएफ को यह अधिकार मिला हुआ है.