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गोरखालैंड पर एमपी की चुप्पी आश्चर्यजनक : दावा पाखरीन

सिलीगुड़ी. दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र के गोरखाओं से वोट लेकर भाजपा के एसएस अहलुवालिया सांसद ही नहीं, केन्द्रीय मंत्री भी बन गये लेकिन अब जब पहाड़ पर नये राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है, तो चुप्पी साधे हुए हैं. यह चुप्पी सच में आश्चर्यजनक है. गोरखालैंड आंदोलन अब पहाड़ में जनआंदोलन बन […]

सिलीगुड़ी. दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र के गोरखाओं से वोट लेकर भाजपा के एसएस अहलुवालिया सांसद ही नहीं, केन्द्रीय मंत्री भी बन गये लेकिन अब जब पहाड़ पर नये राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है, तो चुप्पी साधे हुए हैं. यह चुप्पी सच में आश्चर्यजनक है. गोरखालैंड आंदोलन अब पहाड़ में जनआंदोलन बन चुका है.

श्री अहलुवालिया को जनभावनाओं की चिंता करनी चाहिए. यह बातें गोरखालैंड राज्य निर्माण मोरचा के अध्यक्ष दावा पाखरीन ने कही. वह सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट क्लब में संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सिर्फ सांसद ही नहीं, केन्द्र की भाजपा सरकार की नीति भी अलग गोरखालैंड राज्य को लेकर स्पष्ट नहीं है. कोई गोरखालैंड का समर्थन करता है, तो कोई साफ-साफ अलग राज्य के विरोध में है.

अगर केन्द्र सरकार चाहे तो अलग गोरखालैंड राज्य का गठन तत्काल हो सकता है. अलग राज्य बनाने के मामले में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती. केन्द्र सरकार जब भी चाहे, दोनों सदनों में विधेयक पास करा कर अलग राज्य का गठन कर सकती है. एक प्रश्न के उत्तर में श्री पाखरीन ने कहा कि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गोरखालैंड को लेकर क्या सोचती हैं, इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है.

अलग राज्य बनाने में राज्य सरकार की कोई भूमिका ही नहीं होती. तेलंगाना का जब गठन हो रहा था, तब आंध्र प्रदेश सरकार ने इसका विरोध किया था. अलग तेलंगाना राज्य बनाने के लिए आंध्र प्रदेश विधानसभा ने कोई प्रस्ताव भी पास नहीं किया. उसके बाद भी अलग राज्य का गठन हो गया. दरअसल केन्द्र सरकार और राजनीतिक पार्टियां चाहे तो अलग राज्य का गठन तत्काल हो सकता है. सबकुछ केन्द्र सरकार के ऊपर निर्भर है. श्री पाखरीन ने कहा कि 29 तारीख को दार्जीलिंग में सर्वदलीय बैठक है. इस बैठक में वह यहां के सांसद एसएस अहलुवालिया तथा केन्द्र सरकार के ढुलमुल रवैये के मुद्दे को उठायेंगे. श्री पाखरीन ने कहा कि दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरखालैंड आंदोलन अब किसी एक पार्टी का नहीं रह गया है. यह अलग बात है कि गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग इसकी अगुवायी कर रहे हैं. वह सभी न तो बिमल गुरूंग के आगे और न ही उनके पीछे रह कर इस आंदोलन में शामिल होना चाहते हैं. वह सभी बिमल गुरूंग के साथ मिलकर गोरखालैंड आंदोलन करेंगे. पहाड़ पर जारी बेमियादी बंद के संदर्भ में श्री पाखरीन ने कहा कि यह गोरखाओं के विकास के लिए नहीं, बल्कि उनकी पहचान का आंदोलन है. लोग अलग राज्य के लिए किसी भी प्रकार का कष्ट झेलने के लिए तैयार हैं. अभी पहाड़ पर खाद्य सामग्रियों की कोई कमी नहीं है. अगर इस तरह की कोई समस्या आती है, तो उस पर विचार करेंगे. इससे पहले पहाड़ पर लगातार 40 दिनों तक बंद हुआ है और उस समय भी खाद्य सामग्रियों की कोई कमी नहीं थी.

बंगालियों का विरोध नहीं
श्री पाखरीन ने कहा कि बंगाल अथवा बंगाली से गोरखाओं का कोई विरोध नहीं है. बंगालियों की अपनी ऐतिहासिक पहचान है. वह बंगाल तथा बंगालियों का सम्मान करते हैं. गोरखा लोग किसी भी तरीके से बंगाल का विरोध नहीं करते. बंगालियों को भी समझना चाहिए कि अलग गोरखालैंड राज्य गोखाओं की पहचान के लिए आवश्यक है. बंगाली भाइयों को स्वयं आगे आकर दार्जीलिंग की छोटी सी जमीन गोरखालैंड के लिए छोड़ देना चाहिए.
पवन चामलिंग की प्रशंसा
गोरखालैंड राज्य के निर्माण का समर्थन करने के लिए श्री पाखरीन ने सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग की प्रशंसा की और उनका आभार प्रकट किया. उन्होंने कहा कि गोरखालैंड राज्य बनाने के लिए श्री चामलिंग ने केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को एक पत्र भी लिखा है. इसके अलावा अलग गोरखालैंड राज्य बनाने के लिए राज्य विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित हो चुका है. आने वाले दिनों में वह लोग अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से भी अलग गोरखालैंड राज्य के पक्ष में प्रस्ताव पारित कराने का अनुरोध करेंगे.

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