गुरुवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता बिमल गुरंग के ठिकानों पर छापेमारी के बाद पूरब का पहाड़ यानी दार्जिलिंग सुलग उठा है. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थक सड़कों पर उतर आये हैं, पर्यटकों को बाहर निकलने के लिए कहा जा रहा है. सरकारी कार्यालय के बाद निजी कार्यालय भी बंद कर दिये गये हैं. कई संपत्तियों को नुकसान भी पहुंचाये जाने की सूचना है और मीडिया सहित दूसरे वाहनों को आग के हवाले किया गया है. शनिवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेता बिनय तमांग ने कहा कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई में उनके दो लोग मारे गये हैं और पांच गंभीर रूप से घायल हुए हैं.
आखिर हाल में ऐसा क्या हुआ कि पूरब का पहाड़ दार्जिलिंग ( स्थानीय लोगजिसे पहाड़ों की रानी कहते हैं) सुलग गया?हालमें ममता बनर्जीसरकारने एक अधिसूचना जारीका बंगालकेस्कूलों में बांग्ला भाषा की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया.गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के रोशरगिरी कहते हैं कि उत्तर बंगालकेपहाड़ मेंबांग्ला भाषा को अनिवार्यकियेजाने ने हमें विरोध को मजबूर किया है. हालांकि ममता बनर्जी सरकार यह सफाई दे चुकी है किपहाड़के लोगों के लिए यहफैसलाबाध्यकारी नहीं है.
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इसके अलावा भी ऐसी कई घटनाएं घटीं हैं, जिससे गोरखा जन मुक्ति मोर्चा को लगता है कि ममता बनर्जी उनके इलाके में अपना प्रभाव बढ़ाने की काेशिश में लगी हैं. हाल में हुए नगर निकाय चुनाव में उत्तर बंगाल में ममता की पार्टी के बेहतर प्रदर्शन ने गोरखा जन मुक्ति मोर्चा की बेचैनी को बढ़ाया. इसीमहीनेकेपहले पखवाड़े में ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग के राजभवन में अपनी कैबिनेट की मीटिंग की. इस दौरान मोर्चा समर्थकों ने संपत्तियों को नुकसान पहुंचा कर व बसों को जला कर अपना गुस्सा प्रकट किया.
ममता बनर्जी ने रणनीतिक ढंग से पहाड़ की जनजातियों के लिए बोर्ड का गठन किया और उनके विकास के लिए पैसे उसके माध्यम से जाने लगे. इससे गोरखालैंड की राजनीति करने वालों की प्रासंगिकता का खतरा बढ़ा. बिमल गुरंग ने 2007 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नाम से जो पार्टी बनायी थी उसने अब ममता की चतुराई भरी राजनीति के बीच अपनी प्रासंगिकता बचाये रखने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया है.