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भारत में पांच करोड़ लोग अवसाद के शिकार

कोलकाता: दुनिया भर में अवसाद (डिप्रेशन) के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. विश्व में करीब 300 मिलियन लोग मानसिक अवसाद के चंगुल में हैं. वहीं भारत में लगभग पांच करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं. यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी किया गया है. अवसाद के बढ़ते मामले को देखते हुए सात […]

कोलकाता: दुनिया भर में अवसाद (डिप्रेशन) के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. विश्व में करीब 300 मिलियन लोग मानसिक अवसाद के चंगुल में हैं. वहीं भारत में लगभग पांच करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं. यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी किया गया है. अवसाद के बढ़ते मामले को देखते हुए सात अप्रैल यानी शुक्रवार को पालन किये जानेवाले विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम डब्ल्यूएचओ ने ‘अवसाद’ यानी ‘डिप्रेशन’ रखा है.

डिप्रेशन के विषय में ज्यादा जानने के लिए हमने एसएसकेएम (पीजी) अस्पताल के साइक्राइटिस विभाग के प्रो डॉ इंद्रनील साहा से बात की. उन्होंने बताया कि हाल के दिनों में डिप्रेशन मौत के दूसरे सबसे बड़े कारणों में हमारे सामने उभर कर आया है. एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में अवसाद के कारण 15-30 वर्ष की आयु में लोग अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेते हैं. दुनिया भर में अपनी जान देनेवाले लोगों में करीब 75 फीसदी लोग किसी न किसी कारण से अवसाद से ग्रसित होते हैं जिसके कारण वे आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं.

क्या है अवसाद : ब्रेन में पाये जानेवाले न्यूरो केमिकल के असंतुलित होने के कारण लोग इसकी चपेट में आते हैं, लेकिन इसका पूरी तरह से इलाज संभव है. दवा व काग्नेटिव बिहैवरल थैरेपी (सीबीटी)की मदद से चिकित्सक ऐसे मरीज का इलाज करते हैं.
इन कारणों से होता है डिप्रेशन
बॉयोलॉजिकल इफेक्ट, एनवायरोमेंटल व साइकोलॉजिकल कारणो‍ं से लोग डिप्रेशन की चपेट में आते हैं. मेडिकल साइंस में जेनिटक क्रिया से इस बीमारी की चपेट में आनेवाले लोगों को बॉयोलॉजिकल इफेक्ट की श्रेणी में रखा गया है. वहीं अकेले रहने, कार्य के अत्यधिक दबाव से तनाव ग्रस्त होना तथा किसी सामाजिक कारणों जैसे तलाक से इसकी चपेट में आनेवाले लोगों को एनवायरोमेंटल श्रेणी में रखा गया है. जल्द मानसिक रूप से टूट जाना और चिड़चिड़ापन आदि साइकोलॉजिकल कारणो‍ं से लोग अवसाद की चपेट में आ सकते हैं.
प्रेम में असफल लोग भी करते हैं सुसाइड
डॉ साहा ने बताया कि कई बार प्यार में धोखा तथा प्रेम में असफल लोग आत्महत्या करत‍े हैं. आकड़े बताते हैं कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है. इस तरह के मामलों को एनवायरोमेंटल श्रेणी में रखा गया है.
ऐसे पहचाने डिप्रेशन के मरीज को
डॉ साहा के अनुसार अवसाद की चपेट में आनेवाले लोग हमेशा उदास रहते हैं. नींद नहीं आती है और उनका किसी काम में मन नहीं लगता है. हमेशा अकेला रहने व मरने का नाम लेते रहते हैं. ऐसे किसी व्यक्ति को देखे जाने पर उसके साथ अधिक से अधिक बात करें. उसके मासनिक अवसाद के कारणों को जानने के कोशिश करें. इसके बाद तुरंत किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करें. आम तौर पर प्रथम बार इस बीमारी की चपेट में आनेवाले लोगों को 6-9 महीने तक दवा खाने व डॉक्टर की देख रेख में रहने की जरूर होती है. वहीं जो लोग बार-बार इस बीमारी की चपेट में आते हैं जीवन भर नहीं बल्कि 5-10 साल तक दवा खाने की जरूरत पड़ती है.
क्या कहते हैं चिकित्सक: डॉ साहा ने हमें बताया कि अवसाद का मतलब पागलपन नहीं होता है. किसी भी उम्र के लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं. जिनके माता पिता या परिवार के अन्य किसी सदस्य को यह बीमारी थी उन्हें ज्यादा सर्तक रहना चाहिए. स्वास्थ्यकर भोजन करें, योगा व्यायाम करें और नशे से दूर रहें. इसके अलवा अपने परिवार व आसपास के लोगों को जागरूक रखें क्योंकि कई बार लोग सामाजिक भय के कारण दूसरे किसी को बता नहीं पाते हैं कि वे अवसाद की चपेट में हैं.

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