मात्र उच्च माध्यमिक पास कल्याणी ने उलूबेड़िया के कई गांवों में चुल्लू (अवैध शराब) के ठेके बंद करवा कर कई परिवारों को जीवन दान दिया है. इस महिला की एक कोशिश ने गांव की सूरत ही बदल डाली. उलूबेड़िया के तुलसी बेरिया गांव में आज से 10 साल पहले जगह-जगह चुल्लू के ठेके चलते थे, जिसे पीकर प्रति माह लगभग 50 लोगों की मौत हो जाती थी. जिनकी मौत नहीं होती थी, वे या तो बीमार पड़ जाते थे या कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर लेते थे.
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पहल: ग्रामीण परिवेश से निकली महिला ने दिखायी हिम्मत, शराब की बिक्री रोक कर बदली गांव की तसवीर
कोलकाता: कल्याणी पालुई उन महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं, जो जिंदगी की छोटी-छोटी परेशानियों से हार मान लेती हैं या बीच में ही हथियार डाल देती हैं. ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी एक साधारण महिला ने अपने इलाके में वह काम कर दिखाया, जिसकी हिम्मत कोई आम महिला नहीं कर सकती है. मात्र उच्च माध्यमिक […]
कोलकाता: कल्याणी पालुई उन महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं, जो जिंदगी की छोटी-छोटी परेशानियों से हार मान लेती हैं या बीच में ही हथियार डाल देती हैं. ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी एक साधारण महिला ने अपने इलाके में वह काम कर दिखाया, जिसकी हिम्मत कोई आम महिला नहीं कर सकती है.
ऐसे कई परिवारों को चुल्लू से बचाने के लिए कल्याणी ने मन में एक संकल्प लिया. हालांकि वह अकेली ही अपने दो बच्चों का पालन-पोषण कर रही है. उसके पति की पहले ही एक दुर्घटना में मौत हो चुकी है. एक मजबूत संकल्प के साथ कल्याणी ने गांव में चुल्लू की बिक्री के लिए एक मुहिम शुरू कर दी. इस मुहिम ने आंदोलन के रूप में ऐसा रंग लाया कि अब इस गांव में चुल्लू के सभी ठेके बंद हो गये. स्वभाव से बेहद साहसी इस महिला ने 200 महिलाओं का अपना एक ग्रुप तैयार कर इस अभियान में सफलता हासिल की है.
धंधा करनेवालों ने हत्या के लिए दी एक लाख की सुपारी
1999 से सामाजिक कार्यों में सक्रिय कल्याणी का कहना है कि जब उसने मुहिम शुरू की, तो वह अकेली थी. चुल्लू से परेशान लगभग 200 महिलाओं ने संगठित होकर इलाके में जाकर चुल्लू की भट्ठियां तोड़नी शुरू कर दी. कई बार महिलाओं को दबंग लोगों की पिटाई भी सहनी पड़ी, लेकिन वह पीछे नहीं हटीं. कल्याणी का कहना है कि दिन में चुल्लू की भट्ठियां तोड़ने के बाद रात में फिर भट्ठी बन जाती थी. पता चलने पर सुबह हम महिलाएं फिर से तोड़ने का काम शुरू कर देती थीं. धंधा करनेवाले इलाके के लोग इतना परेशान हो गये कि उन्हें जान से मारने के लिए गांव में एक लाख का इनाम रख दिया. मौत का डर तो रहता था, लेकिन उसने ठान लिया है कि वह पीछे नहीं हटेगी.
कई संस्थाओं ने किया सम्मानित
कल्याणी का कहना है कि जब गांव में उनके आंदोलन की चर्चा मीडिया में आयी, तो कई संस्थाओं ने सम्मानित किया. स्थानीय पुलिस ने भी सहयोग देना शुरू किया. उनके साहसिक काम के लिए हाल ही में महिला दिवस पर पश्चिम बंगाल महिला आयोग की अध्यक्ष सुनंदा मुखर्जी व महिला कल्याण मंत्री शशि पांजा ने उसे पुरस्कार देकर सम्मानित किया. नेहरू युवा केंद्र की ओर से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसे पुरस्कार देकर सम्मानित किया. सामाजिक कार्यों के लिए रोटेरियन क्लब द्वारा भी सम्मानित किया गया. कल्याणी कहती है कि कुछ भी हो जाये, अब यहां चुल्लू का कोई ठेका नहीं चलने दिया जायेगा. अब पुलिस के सहयोग से यहां चुल्लू का धंधा बंद हो चुका है. कल्याणी कहती है बिहार व तमिलनाडु में चुल्लू बंद हो गया है. तो यहां क्यों नहीं हो सकता.
महिलाओं को ट्रेनिंग देकर संवारा जीवन : आज 200 महिलाओं के इस संगठन ने एक एनजीओ के रूप में अपनी पहचान बना ली है. खानपुर गणउन्नयन केंद्र के नाम से चल रही में महिलाओं को ट्रेनिंग देने के साथ बाल मजदूरों का भी जीवन संवारा जा रहा है. उनकी दूसरी संस्था कमीना सोशल वेलफेयर सोसायटी के अंडर में वह जीवन से हताश हो चुके युवाओं की काउंसेलिंग कर उन्हें प्रशिक्षण भी दे रही है. वह युवाओं को वोकेशनल व लीडरशिप ट्रेनिंग भी दे रही है. इसमें 40 वोलेंटियर महिलाएं काम कर रही हैं. व्यस्कों के लिए साक्षरता (एडल्ट लिटरेसी) अभियान भी काफी कामयाब रहा. इस प्रयास में 30 लोगों ने पढ़ाई कर परीक्षा में सफलता हासिल की.
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