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मुन्ना को जमानत

कोलकाता: गार्डेनरीच कांड के मुख्य आरोपी तृणमूल कांग्रेस पार्षद मोहम्मद इकबाल उर्फ मुन्ना को घटना के 77 दिनों के बाद अलीपुर कोर्ट से जमानत मिल गयी. जेल में रहने के दौरान मां की तबीयत खराब होने का कारण दिखा कर मुन्ना की तरफ से उनके वकील ने अदालत में जमानत याचिका दायर की थी. इस […]

कोलकाता: गार्डेनरीच कांड के मुख्य आरोपी तृणमूल कांग्रेस पार्षद मोहम्मद इकबाल उर्फ मुन्ना को घटना के 77 दिनों के बाद अलीपुर कोर्ट से जमानत मिल गयी. जेल में रहने के दौरान मां की तबीयत खराब होने का कारण दिखा कर मुन्ना की तरफ से उनके वकील ने अदालत में जमानत याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने उनके आवेदन को स्वीकार करते हुए उसे छह हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया. अदालत में मुन्ना के वकील वी चटर्जी ने बताया कि इकबाल की मां कैंसर से जूझ रही हैं.

अस्पताल में उनकी स्थिति लगातार खराब हो रही है. इस स्थिति में वह लगातार अपने बेटे को देखने की मांग कर रही हैं.

इस स्थिति में उनकी देखभाल के लिए एक बेटे के लिहाज से मुन्ना का उनके पास रहना काफी ज्यादा जरूरी है. इसकी जानकारी देने के साथ बुधवार को अदालत में उनकी मेडिकल रिपोर्ट पेश की गयी थी. इसके बाद अदालत ने सीआइडी के जांच अधिकारी को रिपोर्ट की सत्यता की जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था.

गुरुवार को अदालत में सीआइडी की तरफ से रिपोर्ट सौंपी गयी, जिसमें उनकी मां की काफी गंभीर स्थिति होने की जानकारी दी गयी. इसके बाद न्यायाधीश समर चट्टोपाध्याय ने मानवीय आधार पर मुन्ना को छह हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का निर्देश दे दिया. शर्त के रूप में उसे सप्ताह में एक दिन घटना के जांच अधिकारी के पास हाजिरी लगाने को कहा गया है. उन्होंने बताया कि जमानत की अवधि के दौरान मुन्ना के किसी भी दूसरे इलाके या दूसरे शहर में जाने पर रोक नहीं लगायी गयी है.

सीआइडी की भूमिका पर उठ रहे सवाल
इकबाल की जमानत को लेकर सीआइडी की भूमिका पर पुलिस महकमें में काफी रोष है. कोलकाता पुलिस के कुछ अधिकारियों का कहना है कि गार्डेनरीच कांड में कोलकाता पुलिस के सब इंस्पेक्टर तापस चौधरी की हत्या की गयी थी. इस मामले में मोहम्मद इकबाल सीधे-सीधे जुड़ा था. लिहाजा सीआइडी की तरफ से उसकी जमानत का विरोध नहीं करने का कारण उनकी समझ से परे है. उनका कहना है कि इकबाल की मां की तबीयत खराब होने की मजबूरी दिखाने के बावजूद सीआइडी की तरफ से जमानत का विरोध किया जा सकता था.

जरूरत पड़ने पर सीआइडी के अधिकारी पेरोल पर मुन्ना को रिहा करने की बात अदालत में रख सकते थे. चाहे वह पेरोल एक दिन के लिए रिहा करने का हो या फिर एक सप्ताह के लिए रिहा करने का. लेकिन सीआइडी की तरफ से ऐसा नहीं किया गया. सीआइडी की इसी कमजोर कड़ी का फायदा उठा कर इकबाल जमानत लेने में कामयाब हो गया.

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