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बंगाल के मेलों पर नोटबंदी का असर

कोलकाता: कोलकाता महानगर हो या बंगाल का कोई छोटा कसबा, यहां मेलों का बाजार कभी मंदा नहीं पड़ता है. शीतकाल शुरू होते ही यहां उद्योग मेला, हस्तशिल्प मेला से लेकर तमाम तरह के मेलों का आयोजन होता है. कोलकाता का पुस्तक मेला तो विश्व प्रसिद्ध है. यहां मेलों का आयोजन दिसंबर के अंत से लेकर […]

कोलकाता: कोलकाता महानगर हो या बंगाल का कोई छोटा कसबा, यहां मेलों का बाजार कभी मंदा नहीं पड़ता है. शीतकाल शुरू होते ही यहां उद्योग मेला, हस्तशिल्प मेला से लेकर तमाम तरह के मेलों का आयोजन होता है. कोलकाता का पुस्तक मेला तो विश्व प्रसिद्ध है. यहां मेलों का आयोजन दिसंबर के अंत से लेकर फरवरी की शुरुआत तक होता है, लेकिन इन दिनों पहले से लगे मेलों की हालत ने मेला आयोजकों के माथे पर पसीना ला दिया है.
आयोजन समिति से जुड़े एक सदस्य का कहना है कि नोटबंदी से लोगों की हालत पतली है. लोगों को घर का खर्च चलाना भारी पड़ रहा है. ऐसे में लोग मेलों का रुख करने से कतरा रहे हैं. राज्य लघु, मध्यम और वस्त्र मंत्रालय द्वारा मिलन मेला में आयोजित हस्तशिल्प मेला (सबवा मेला) की शुरुआत 18 नवंबर को हुई थी. मेले की स्थिति काफी खराब है. दुकानें काफी सजी हैं, लेकिन ग्राहकों की कमी है.

मेदिनीपुर के हस्तशिल्प के एक स्टॉल पर बैठी कारोबारी महिला का कहना है कि मेला 11 दिसंबर को समाप्त होने वाला है, लेकिन अभी तक आधा कारोबार भी नहीं हुआ. मेले में आये एक खरीदार ने बताया कि अभी घर खर्च के लिए ही पैसे कम पड़ जा रहे हैं, तो भला हम मनोरंजन व घर की साज-सज्जा के लिए खर्च क्यों करें. मेले में इंट्री चार्ज नहीं था, इसलिए मन बहलाने यहां आ गया. हालांकि मेले का खर्च और आने-जाने का किराया निकालने के लिए स्टॉलवालों ने भी एक तरकीब निकाल ली है. कुछ स्टॉलवाले अपने को घाटे से उबारने के लिए पुराने पांच सौ और हजार के नोट भी लेने लगे हैं.
इसी तरह मेले में पहुंचे चाट-पकौड़ी या भेलपुरी का कारोबार भी मंदा है. सर्दी में भीड़ कुछ बढ़ ही जाती है, लेकिन नोटबंदी के चलते आजकल हालात कुछ वैसे नहीं हैं. हजार-पांच सौ की नोटबंदी के तीन सप्ताह बाद भी देशभर में खाने-पीने का कारोबार झटके से नहीं उबर पाया है. कुछ बड़े दुकानदार पुराने नोट अभी भी ले रहे हैं, लेकिन छोटी दुकानों पर सिर्फ छोटी करेंसी चलन में है.

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