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दाल की खेती का जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव

कोलकाता : राज्य को दाल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्योग परिसंघ बंगाल चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (बीसीसीआइ) ने विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन के साथ मिलकर पल्स 2016 का आयोजन किया, जिसमें दाल के उत्पादन में आनेवाली चुनौतियों व उसके लिए समाधान पर विस्तृत चर्चा की गयी. यूनाइटेड नेशंस की फुड एंड […]

कोलकाता : राज्य को दाल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्योग परिसंघ बंगाल चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (बीसीसीआइ) ने विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन के साथ मिलकर पल्स 2016 का आयोजन किया, जिसमें दाल के उत्पादन में आनेवाली चुनौतियों व उसके लिए समाधान पर विस्तृत चर्चा की गयी.
यूनाइटेड नेशंस की फुड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन ने 2016 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ द पल्स घोषित किया है, जिसका बंगाल की कृषि के लिए खासा महत्व है. दाल की खेती करने से किसानों को कई तरह के लाभ होते हैं. इस कार्यक्रम का नॉलेज पार्टनर विधान चंद्र राय कृषि विश्वविद्यालय है. वैज्ञानिकों ने बताया कि दाल की खेती का जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
साथ ही यह कुपोषण से रक्षा करनेवाला प्रमुख खाद्य पदार्थ है. इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ताओं में विश्व भारती के उपाचार्य प्रो सार्थक चौधरी, सेंटर ऑफ जीनोमिक्स के निदेशक राजीव कुमार वाष्णेय, बंगाल चेंबर के पूर्व अध्यक्ष अंबरीश दासगुप्ता, अध्यक्ष सुतानु घोष, विश्व भारती के कुलपति डॉ डीडी पात्रा, विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो सबुज काली सेन, शिक्षा भवन के शुभेंदु मंडल व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पल्स रिसर्च कानपुर के निदेशक डॉ एनपी सिंह आदि शामिल थे.

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