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जूट पैकेजिंग की बाध्यता मुद्दे पर 15 को बैठक
कोलकाता : केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की स्थायी सलाहकार कमेटी (सीएसी) की 24वीं बैठक 15 जुलाई को बुलायी गयी है. इस बैठक में जूट पैकेजिंग की बाध्यता के मुद्दे पर चर्चा की संभावना है. बैठक में केंद्रीय वस्त्र सचिव के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों के प्रतिनिधि व इज्मा के प्रतिनिधियों के उपस्थित रहने की […]
कोलकाता : केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की स्थायी सलाहकार कमेटी (सीएसी) की 24वीं बैठक 15 जुलाई को बुलायी गयी है. इस बैठक में जूट पैकेजिंग की बाध्यता के मुद्दे पर चर्चा की संभावना है. बैठक में केंद्रीय वस्त्र सचिव के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों के प्रतिनिधि व इज्मा के प्रतिनिधियों के उपस्थित रहने की संभावना है. यह बैठक कमीशन ऑन एग्रीकल्चरल कास्ट्स एंड प्राइसेस (सीएसीपी) के सुझावों के बाद हो रही है.
सीएसीपी ने अनाजों के लिए जूट पैकेजिंग की बाध्यता 90 फीसदी से घटा कर 75 फीसदी तथा चीनी के लिए जूट पैकेजिंग की बाध्यता 20 फीसदी से घटाकर शून्य करने की उनकी सिफारिश पर कहा है कि यह बाध्यता जूट उद्योग को उनके उत्पादनों में विविधता लाने में प्रोत्साहित नहीं कर रही है. इस कारण इसे समाप्त किया किया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि जूट बोरो में 90 फीसदी अनाज व 20 फीसदी चीनी की पैकेजिंग का निर्णय कैबिनेट कमेटी ऑफ इकोनॉमिक एफेयर्स (सीसीइए) की 2015-16 की बैक में लिया गया था. इसका उद्देश्य जूट उद्योग व जूट श्रमिकों के राहत व सुविधाएं देना तथा जूट उद्योग को बचाना था.
जूट उद्योग के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सीएसीपी के प्रस्ताव के बाद जूट आयुक्त ने वस्त्र मंत्रालय को अपनी राय भेजी है. इसमें अनाज की जूट पैकेजिंग की 75 फीसदी बाध्यता व चीनी के क्षेत्र में बाध्यता खत्म करने का विरोध किया है. जूट आयोग का कहना है कि इससे जूट के बोरो की मांग के साथ-साथ जूट श्रमिक व किसानों को भारी आघात लगेगा. जूट के बोरो की मांग की कमी के कारण कारखानें उत्पादन कम करने के लिए बाध्य होंगे. इससे जूट मिलें बंद होंगी तथा बड़ी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो जायेंगे. इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ सकती है. कच्चे जूट की मांग कम होने पर जूट के किसानों को भी उनके उत्पाद की कीमत नहीं मिलेगी. इससे किसानों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं में इजाफा हो सकता है. जूट उत्पादन पर बड़ी संख्या में किसान आश्रित हैं. इससे उनके परिवार की जीविका पर भी आघात पहुंचेगा और प्लास्टिक उद्योग को लाभ मिलेगा.
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