आसनसोल : स्थानीय म्यूनिसिपल पार्क में रविवार को आयोजित आसनसोल नगर निगम की हिंदी अकादमी के अमरनाथ यात्रियों के सम्मान समारोह में हिंदी की उपेक्षा नजरों में खटकती रही. यदि आयोजकों ने इस दिशा में थोड़ी भी कोशिश की होती तो न सिर्फ इस कमी को दूर किया जा सकता था बल्कि अकादमी गठन के उद्देश्य को भी मजबूती से हासिल किया जा सकता था.
समारोह का संचालन बांग्ला भाषा में किया जा रहा था. हिंदी अकादमी के गठन का मुख्य उद्देश्य गैर हिंदी भाषी निवासियों के बीच हिंदी का उपयोग बढ़ाना है. इस दिशा में यह आयोजन कारगर भूमिका निभा सकता था. लेकिन आयोजकों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.
हिंदी भाषा से जुड़े कई ऐसे शख्सियत हैं जिनकी पक ड़समान रूप से हिंदी और बांग्ला भाषा दोनों पर है. उनसे इसका संचालन कराया जाता तो शायद इसे और सफलता मिलती, या फिर हिंदी और बांग्ला के दो संचालक रखे जा सकते थे.
इस स्थिति में हिंदी थोड़ी और स्पेस के साथ सामने आती. इस समारोह के मंच पर लगा बैनर अंग्रेजी में था. अमरनाथ यात्रा कर लौटने वाले श्रद्धालुओं को जो प्रशस्ति पत्र दिये गये, उनकी भाषा भी अंग्रेजी ही थी. आयोजकों का तर्क हो सकता है कि अमरनाथ यात्रा से लौटनेवालों में अधिसंख्य गैर हिंदीभाषी थे और हिंदी में लिखे प्रशस्ति पत्र उनके लिए बेमायने लगते. लेकिन यह तर्क आधारहीन है. सच तो यह है कि ऐसे मौके पर मिलनेवाले सम्मान को हर कोई संजो कर रखता है.
इस प्रशस्ति पत्र की भाषा यदि हिंदी होती तो शायद इस सम्मान को यादगार बनाये रखने के लिए ही सभी यात्री सामान्य स्तर पर हिंदी पढ़ते. वैसे पचास फीसदी से अधिक यात्री सामान्य रूप से हिंदी पढ़ने-लिखने लायक तो थे ही. यदि ऐसा होता तो शायद हिंदी अकादमी के गठन का औचित्य भी सार्थक होता.
वैसे हिंदी अकादमी के सचिव व निगम चेयरमैन जितेंद्र तिवारी ने अतिथियों का स्वागत व हिंदी अकादमी की उपलब्धियों की चर्चा हिंदी में ही की. लेकिन हिंदी अकादमी के इस आयोजन में वे हिंदी में वक्तब्य रखनेवाले पहले व अंतिम वक्ता थे.
यदि मेयर व हिंदी अकादमी के अध्यक्ष तापस बनर्जी हिंदी में थोड़ी बातें रखते तो इसमें और जान आ जाती. हिंदी पर जोर देने की आवश्यकता इसलिए भी थी कि इसका आयोजन निगम ने सीधे न कर हिंदी अकादमी के बैनर तले किया था और इस स्थिति में हिंदी का इतना हक तो बनता ही है.