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सत्ता पक्ष रहा मजबूत, जगह तलाशता रहा विपक्ष

अलविदा 2015 अजय विद्यार्थी, कोलकाता बहुमत प्राप्त करनेवाली पार्टी सरकार का गठन करती है और सरकार का संचालन करती है, लेकिन विधानसभा को ऐसा फोरम माना जाता है, जहां विरोधी दलों को अपनी आवाज उठाने और मंत्रियों से सवाल-जवाब करने और सरकार को घेरने का मौका मिलता है. 2011 के विधानसभा चुनाव में 184 सीटों […]

अलविदा 2015
अजय विद्यार्थी, कोलकाता
बहुमत प्राप्त करनेवाली पार्टी सरकार का गठन करती है और सरकार का संचालन करती है, लेकिन विधानसभा को ऐसा फोरम माना जाता है, जहां विरोधी दलों को अपनी आवाज उठाने और मंत्रियों से सवाल-जवाब करने और सरकार को घेरने का मौका मिलता है. 2011 के विधानसभा चुनाव में 184 सीटों पर विजय प्राप्त कर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख पार्टी के रूप में उभरी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य में मां, माटी, मानुष सरकार का गठन हुआ.

2015 के गुजरते साल में विधानसभा में 2011 साल से शुरू हुआ तृणमूल कांग्रेस का दबदबा विधानसभा में भी कायम रहा. विरोधी दल चाहे वह वाममोरचा हो या फिर कांग्रेस अपनी भूमिका की छाप छोड़ने के लिए कोशिश करते नजर आये और अपनी भूमिका तलाशते रहे. 294 सीटों वाली विधानसभा में इस वर्ष तृणमूल कांग्रेस ने अपनी पकड़ और भी मजबूत की और कांग्रेस के विधायक जैसे असीत माल, अजय दे, फॉरवर्ड ब्लॉक के विधायक उदयन गुहा जैसे कई कांग्रेस व वाममोरचा के विधायक ने पाला बदला और सत्तारूढ़ दल के खेमे में शामिल हुए.

विरोधी दल चाहे वह कांग्रेस के विधायक हों या फिर वाममोरचा के विधायक स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से अपनी बात कहने की कोशिश करते नजर आये. विधानसभा अध्यक्ष द्वारा स्थगन प्रस्ताव पर सभा की कार्यवाही स्थगित कर बहस कराने से इनकार करने पर विधानसभा का वाकआउट कर अपना विरोध प्रदर्शन किया. वर्ष के मध्य में राज्य की नगरपालिका व नगर निगमों में चुनाव हुए. उन चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस की बढ़त से विधानसभा में विरोधी दल की धार कुंद हुई और विधानसभा में उनका प्रदर्शन प्रभावित हुआ और तृणमूल कांग्रेस के विधायक हावी हुए.

सारधा चिटफंड मामले में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव मुकुल राय का नाम अाने के बाद तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने श्री राय से अपनी दूरियां बना लीं. इसका असर विधानसभा पर भी दिखा और कयास लगाये जाने लगे कि यदि मुकुल राय नयी पार्टी बनाते हैं तो तृणमूल कांग्रेस में मुकुल राय के समर्थक कई विधायक पार्टी छोड़ उनके साथ हो जायेंगे. मुकुल का समर्थन करने और पार्टी के खिलाफ मंतव्य करने के कारण विधायक शीलभद्र दत्त और सिउली साहा को पार्टी से निलंबित कर दिया गया, हालांकि बाद में सिउली साहा को पार्टी ने वापस ले लिया. इसी तरह से वीरभूम जिले के सिउड़ी के विधायक स्वपनकांति घोष ने राज्य के शहरी विकास मामलों के मंत्री फिरहाद हकीम पर खुलेआम विकास मूलक कार्यों को नजरदांज करने का आरोप लगाया और विधानसभा परिसर में मंत्री के खिलाफ प्रदर्शन किया. स्वपनकांति घोष की बगावत के पीछे मुकुल समर्थक होने की बात कही गयी, लेकिन वर्ष के अंत में मुकुल राय की फिर से तृणमूल कांग्रेस में सक्रियता बढ़ी और वह फिर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नजदीक आ गये, लेकिन बागी विधायक स्वपनकांति घोष को बगावत की कीमत वर्ष के अंत में राजनीति से सन्यास लेने के रूप में घोषणा कर चुकानी पड़ी.
वर्तमान वर्ष के दौरान विधानसभा के विरोधी दल के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्रा माकपा राज्य सचिव के पद पर बिठाये गये. डॉ मिश्रा विधायक दल के नेता के साथ-साथ पार्टी राज्य सचिव के पद पर कार्य करते दिखे, लेकिन वर्ष के अंतिम सत्र के दौरान विधानसभा में उनकी अनुपस्थिति से वाममोरचा विधायकों का विधानसभा की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी में कमी दिखायी दी. विरोधी दल के विधायकों ने विधानसभा के लगभग प्रत्येक सत्र में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विधानसभा की कार्यवाही के दौरान अनुपस्थित रहने का मुद्दा उठाते रहे. विरोधी दलों द्वारा लगातार आरोप लगाये जाते रहे कि मुख्यमंत्री विधानसभा को समय नहीं देती हैं, लेकिन सत्तारूढ़ दल की ओर से लगातार इसका विरोध किया जाता रहा.
वहीं, तृणमूल कांग्रेस से मुकुल राय की दूरी के कारण विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के संसदीय नेता पार्थ चटर्जी की जिम्मेदारी बढ़ी. उनकी विधानसभा के सत्र के दौरान विधानसभा की कार्यवाही में भागीदारी के साथ-साथ पार्टी के कार्य में भी उनका कद बढ़ा.
रानीगंज के तृणमूल कांग्रेस के विधायक सोहराब अली को जिला अदालत द्वारा रेलवे में चोरी के आरोप में दो वर्ष की सजा सुनाये जाने की घोषणा के बाद विरोधी दल विधानसभा से उनकी सदस्यता को निलंबित करने की मांग करते हुए आवाज उठाते रहे. दिसंबर में विधानसभा के सत्र के दौरान विपक्ष ने राज्य सरकार व विधानसभा अध्यक्ष पर सजाप्राप्त विधायक को प्रश्रय देने का आरोप लगाते हुए विधानसभा में हंगामा किया. विपक्ष लगातार मांग करते रहे कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार दो साल की सजा की घोषणा के साथ ही उनकी सदस्यता खारिज हो जानी चाहिए, लेकिन विधानसभा मुख्यालय सजा की घोषणा की प्रति नहीं मिलने की बात कहता रहा.
इधर, राज्य सरकार से मतभेद होने के कारण गोरखा जनमुक्ति मोरचा के प्रमुख विमल गुरुंग ने अपने तीन विधायकों को विधानसभा की सदस्यता छोड़ने के निर्देश के बाद मोरचा में विवाद पैदा हो गया. मोरचा के तीन विधायकों में से रोहित शर्मा ने गुरुंग के पक्ष में विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. दूसरे विधायक त्रिलोक कुमार देवान ने विधायक पद के साथ-साथ पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया. वहीं, तीसरे विधायक हरका बहादुर छेत्री ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, लेकिन निर्दल विधायक के रूप में विधानसभा में बने रहे, हालांकि पहले उन्होंने तृणमूल में शामिल होने की घोषणा की थी, लेकिन वर्ष के अंत में उन्होंने अलग पार्टी बनाने की घोषणा कर डाली. विधानसभा में कई विधेयक पारित किये गये. इनमें कई सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों का निर्माण शामिल हैं, लेकिन अंतिम सत्र के दौरान विधानसभा में भी सहिष्णुता का मुद्दा उठा. केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस, विरोधी दल वाममोरचा व कांग्रेस ने संयुक्त रूप से असहिष्णुता का प्रस्ताव नियम 185 के तहत लाया और विधानसभा में पारित हुआ, हालांकि विरोधी दल कांग्रेस व वाममोरचा ने तृणमूल कांग्रेस पर राजनीतिक असहिष्णुता का भी आरोप लगाया. भाजपा के एक मात्र विधायक शमिक भट्टाचार्य केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ विधानसभा में उठी आवाज का जवाब देते नजर आये.

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