– मुश्ताक खान –
कोलकाता : शिक्षित बेरोजगारों के लिए हॉकरी का पेशा एक वरदान साबित हुआ है, जिसके कारण देश भर में हॉकरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. छोटे-बड़े सभी शहरों बड़ी संख्या में हॉकर व्यवसाय कर रहे हैं. अब तो कस्बों में भी हॉकर नजर आने लगे हैं.
एक आंकड़े के अनुसार भारत में हॉकरों की संख्या लगभग चार करोड़ तक पहुंच चुकी है. इस धंधे से 20 करोड़ लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. महानगर में कुछ वर्ष पहले तक हॉकरों की संख्या लगभग ढाई लाख थी, जो अब बढ़ कर लगभग तीन लाख तक पहुंच गयी है. हॉकरों के बढ़ने के साथ ही उनसे होने वाले अवैध वसूली की रकम में भी बेतहाशा इजाफा हुआ है.
नेशनल हॉकर फेडरेशन से मिले आंकड़े के अनुसार भारत में हॉकर रोजाना आठ हजार करोड़ रुपये का व्यवसाय करते हैं. यह एक बड़े उद्योग का रूप ले चुका है.
कोलकाता में भी हॉकर रोजाना करोड़ों रुपये का व्यवसाय करते हैं, पर इस व्यवसाय के एवज में उन्हें रोजाना पुलिस व कोलकाता नगर निगम के कर्मियों एवं हॉकर यूनियन वालों को अवैध तौर पर एक तय रकम चुकानी पड़ती है.
नेशनल हॉकर फेडरेशन एवं हॉकर संग्राम कमेटी के महासचिव शक्तिमान घोष का दावा है कि पुलिस, निगम एवं यूनियन का यह रैकेट शहर में हॉकरों से सालाना लगभग 265 करोड़ रुपये की वसूली करता है. शहर के लगभग प्रत्येक इलाके में हॉकरों को रोजाना एक निर्धारित रकम देनी पड़ती है. अगर वह रकम न दें तो फिर उसे परेशाना किया जाता है. उनकी धर-पकड़ भी की जाती है.
पुलिस वाले उसका माल पकड़ कर ले जाते हैं. श्री घोष ने स्वीकार किया कि हॉकरों से होने वाली इस अवैध वसूली में कुछ हॉकर यूनियन के लोग भी शामिल हैं, वही लोग रोजाना हॉकरों से पैसे ले कर पुलिस व निगम वालों के हवाले करते हैं. हर इलाके में अलग-अलग रकम निर्धारित है. शहर के व्यस्त इलाके में व्यवसाय करने वाले हॉकर को अधिक रकम चुकानी पड़ती है.
जहां व्यवसाय थोड़ा ठंडा होता है और अपेक्षाकृत लोगों की भीड़ कम जुटती है, वहां व्यवसाय करने वाले हॉकर को थोड़े कम पैसे देने पड़ते हैं. शहर में हॉकरी करने का दर 80 रुपये से 250 रुपये प्रति दिन के बीच तय है. यह रुपये केवल पुलिस व निगम के आम कर्मियों तक ही नहीं पहुंचता है. बल्कि यह मलाई बड़े अधिकारी भी खाते हैं.
श्री घोष के अनुसार बड़े अधिकारियों की रजामंदी के बगैर वसूली का यह धंधा चलना मुमकिन नहीं है. श्री घोष का दावा है कि अवैध वसूली केवल कोलकाता के हॉकरों से ही नहीं होती है, बल्कि यह धंधा अन्य शहरों में भी धड़ल्ले से चल रहा है. दुख की बात यह है कि जिन लोगों के ऊपर अवैध वसूली रोकने की जिम्मेदारी है, वही इस रैकेट में लिप्त हैं, फलस्वरूप इसे रोकना संभव नहीं हो पा रहा है. जब तक संसद में हॉकर कानून पास नहीं हो जाता है. तब तक हॉकरों को इस रैकेट से रिहाई संभव नहीं है.