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गाय मनुष्य के लिए जीवनदायिनी

कोलकाता: हमारे शास्त्र डंके की चोट पर कहते हैं, रामसेतु का निर्माण भगवान राम ने करवाया. लगभग एक लाख वर्ष के पश्चात नासा इस पर मुहर लगाता है. हमारे शास्त्र सूर्य की दूरी का संकेत युग सहस्त्र योजन पर भानू बताते हैं, पुन: नासा पुष्टि करता है. कण-कण में भगवान की धारणा को वैज्ञनिकों ने […]

कोलकाता: हमारे शास्त्र डंके की चोट पर कहते हैं, रामसेतु का निर्माण भगवान राम ने करवाया. लगभग एक लाख वर्ष के पश्चात नासा इस पर मुहर लगाता है. हमारे शास्त्र सूर्य की दूरी का संकेत युग सहस्त्र योजन पर भानू बताते हैं, पुन: नासा पुष्टि करता है. कण-कण में भगवान की धारणा को वैज्ञनिकों ने गॉड पार्टिकल पर प्रयोग कर के अंगीकार किया तथा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए.

लगभग 5000 वर्ष पहले समुद्र में समाहित द्वारिका के अवशेष आज भी निकल रहे हैं. भोपाल गैस त्रसदी पर अध्य्यनरत वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट दी कि गाय के गोबर से लिपे घरों पर विकिरण का प्रभाव न्यूनतम पड़ा. उपरोक्त कोई भी जानकारी ऐसी नहीं है, जो हमारे लिए नयी हो. हमारे पूर्वजों ने लाखों हजारों साल पहले इन विषयों पर शोध कर रखा है. आधुनिक विज्ञान केवल इस बात की पुष्टि कर रहा है.

हमारे हृदय में शास्त्रों के कारण गाय के प्रति भावना तो है, गो मूत्र, गो दुग्ध, गोबर हमारे तथा हमारे पर्यावरण के लिए कितना कितना उपयोगी है, जानते भी हैं, मगर आधुनिक समस्याओं के कारण, नवीन शोध न होने के कारण, गाय भी विस्मृत होती जा रही है. शायद गाय के प्रति शोधित शास्त्रीय संकेतों को भी आधुनिक विज्ञान के प्रयोगों का इंतजार है. हम आज विलुप्त होते बाघों की संख्या वृद्धि के लिए तो चिंतित हैं, गैंडों के शिकार पर कानून है, कांजीरंगा में अभयारण्य विकसित हो रहे हैं, मगर घटती गायों के संरक्षण के प्रति उदासीन क्यों हैं? गाय पशु नहीं है. गाय को हमने माता का स्थान दिया है. कैसी विडंबना है कि आज गाय ही विलुप्त हो रही है. काऊ और गाय में वही फर्क है, जो इंडिया तथा भारत में है, भारत माता है, इंडिया कंट्री है.

प्राचीनकाल में गाय प्रत्येक घर में रहती थी. उसके गोबर और गो मूत्र के कारण डॉक्टर का प्रवेश कम ही होता था, क्योंकि गोबर और गौमूत्र अपनी रोग प्रतिरोधक तथा औषधीय गुणों से रक्षा करते थे. आज हर घर में गाय, तो नहीं कार अवश्य है. अगर ऐसा चलता रहा, तो गो माता के दर्शन के लिए पशुशाला भ्रमण करना पड़ेगा. गाय की उत्पत्ति सागर मंथन से जुड़ी हुई थी.

गाय के महत्व के कारण नंद बाबा के यहां गाय, तो नौ लाख थी, मगर भैंस एक भी नहीं, क्योंकि नंद बाबा को दूध का उत्पादन नहीं बढ़ाना था, उनका उद्देश्य गो सेवा तथा गो वंश का संरक्षण था. उन्हीं गायों की सेवा कर के नंदलाल ने धर्म की स्थापना की तथा गोपाल नाम धारण किया. भगवान शंकर ने भी सवारी के लिए नंदी की ही चयन किया.असहाय गाय चारे के अभाव में कट रही या प्लास्टिक की थैलियों से पेट भर रही है. बचायी जा रही गाय, गोशाला में रहती है. गाय सूखी घास खाकर अमृत तुल्य दूध से हमें जन्म संस्कार से अंतिम संस्कार तक पोषित करती है, काश गाय भी वोट दे पाती, तो शायद इतने कष्ट नहीं पाती. गाय का किसी जाति या धर्म विशेष से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि माता किसी भी जाति-धर्म की हो, माता सिर्फ माता होती है. आज ईश्वर की कृपा से संपन्नता तो बढ़ी है, मगर मानसिकता में इस बढ़त का असर नदारद है.

रिद्धि मतलब संपन्नता, सिद्धि का मतलब सफलता, क्या हम सफल हैं. पूर्वजों ने एकड़ों में गौ शालाएं बनवा दीं, मगर गोशालाओं में गाय आ जाये, तो माथे पर बल आ जाते हैं. एक संदेश आया था, मैं उसे आपके सामने रख कर आपको सोचने की चुनौती देता हूं कि सोचिये बुजुर्गो से पता कीजिए कि ऐसा था या नहीं, मगर जवाब सकारात्मक हो तो हमें क्या हो गया है? संदेश था : मां बनाती थी रोटी, पहली गाय की, अखरी कुत्ते की. हर सुबह नंदी आ जाता, दरवाजे पर गुड की डली के लिए, कबूतर का चुग्गा, कीड़ियों का आटा, ग्यारस, अमावस, पूनम का सीधा, डाकौत का तेल, काली कुतिया के ब्याने पर तेल गुड़ का हलवा, सब कुछ निकल आता था, उस घर से जहां विलासिता के नाम पर एक रेडियो और केवल पंखा था. आज सामान से भरे घर से कुछ भी नहीं निकलता. क्यों जरा सोचिए.

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