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विधवाओं के लिए कानून बनाने की मांग

कोलकाता: भारतीय समाज में विधवाओं की खस्ता हालत किसी से छिपी हुई नहीं है. पति को खोने के बाद इन महिलाओं को और भी बहुत कुछ गंवाना पड़ता है. दुनिया के 21 वीं सदी में पहुंचने के बावजूद आज भी भारत में अधिकतर विधवाओं के साथ समाज अच्छा व्यवहार नहीं करता है. एक तरह से […]

कोलकाता: भारतीय समाज में विधवाओं की खस्ता हालत किसी से छिपी हुई नहीं है. पति को खोने के बाद इन महिलाओं को और भी बहुत कुछ गंवाना पड़ता है. दुनिया के 21 वीं सदी में पहुंचने के बावजूद आज भी भारत में अधिकतर विधवाओं के साथ समाज अच्छा व्यवहार नहीं करता है. एक तरह से उनके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है.

समाज के इसी पक्षपात के कारण वृंदावन, मथुरा, वाराणसी जैसे देश के कई शहरों में हजारों विधवाएं अपना घर-बार छोड़ कर दु:ख भरी जिदंगी गुजारने के लिए मजबूर हैं. पर शायद आने वाले दिनों में ऐसा न हो. स्वयंसेवी संस्था सुलभ होप फाउंडेशन देश की विधवाओं के विकास के लिए एक कानून बनाने की मांग कर रही है. संस्था के संस्थापक डा. बिदंश्वरी पाठक ने बताया कि 2007 में भाजपा के तत्कालीन सांसद महादेवराव शिवानकर ने विधवाओं के विकास से संबंधित एक बिल का ड्राफ्ट तैयार किया था, पर वह उसे संसद में पेश नहीं कर पाये. उस ड्राफ्ट में उन्होंने कुछ संशोधन किया है. जिस पर वह जल्द ही कानूनी विशेषज्ञों की राय लेंगे.

उसके बाद उस ड्राफ्ट को संसद में पेश करने के लिए वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत सत्तारुढ़ दल के आला नेताओं से भेंट करेंगे. उनकी योजना इस संबंध में वरिष्ठ भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज से भी भेंट करने की है. डा. पाठक ने बताया कि कानून बनाने से पहले हम लोग देश भर विधवाओं का सर्वे करायेंगे.

इसके लिए किसी संस्था की मदद ली जायेगी. उन्होंने कहा कि देश में विधवाओं की खस्ता हालत से सभी वाकिफ हैं. सरकार ने विधवा भत्ते की शुरुआत तो की है, पर वह न केवल काफी कम है, बल्कि समय पर मिलता भी नहीं है. इस प्रस्तावित बिल में हम लोगों ने विधवाओं को मासिक 5000 रुपये भत्ता देने की सिफारिश की है. साथ ही उनके लिए रोजगार, शिक्षा एवं व्यवसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करने की बात भी कही गयी है. डा. पाठक ने बताया कि हम लोग चाहते हैं कि सरकार पर अधिक बोझ न डालें, बल्कि कॉरपोरेट घराने विधवाओं की जिंदगी बदलने के लिए आगे आयें. सुलभ होप फाउंडेशन वृंदावन में 900, वाराणसी में 150 एवं उत्तराखंड में 32 विधवाओं की जिम्मेदारी उठा रहा है.

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