कोलकाता : निगम के स्वास्थ्य विभाग द्वारा उठाये गये कदमों के कारण दलालों की गतिविधियों में कमी तो आयी है, पर इस गोरखधंधे पर पूरी तरह लगाम नहीं लगी है. अब भी फरजी बर्थ सर्टिफिकेट बनाने का काम चल रहा है.
निगम प्रशासन को पूरी तरह सफलता नहीं मिलने के पीछे मुख्य कारण इस रैकेट में कुछ निगम कर्मियों का भी शामिल होना बताया जा रहा है. हाल के दिनों में कई निगम कर्मियों की गिरफ्तारी इस बात का जीता–जागता सबूत है. हाल ही में यह मामला तब प्रकाश में आया, जब एक दंपती के बीच चल रहे तलाक के मामले के दौरान पत्नी ने अदालत में अपने बेटे का जो बर्थ सर्टिफिकेट पेश किया, वह जांच में जाली पाया गया.
विधाननगर एसीजेएम कोर्ट ने तो उस जाली बर्थ सर्टिफिकेट के आधार पर पति को उसके बेटे का खर्च उठाने का निर्देश तक दे दिया था. पर प्रदीप दे नामक उस व्यक्ति को उस सर्टिफिकेट पर शक हो गया और उसने कलकत्ता हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ न केवल अपील कर दी, बल्कि आरटीआइ के तहत निगम से उस बर्थ सर्टिफिकेट की हकीकत बयान करने के लिए भी आवेदन किया.
निगम ने स्वयं जांच पड़ताल के बाद उस बर्थ सर्टिफिकेट को जाली बताया. हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि पहले के मुकाबले जाली बर्थ सर्टिफिकेट के मामले कम सामने आ रहे हैं. सख्ती के कारण दलालों ने अपने काम करने का तरीका बदल दिया है.
स्वास्थ्य विभाग जाली बर्थ सर्टिफिकेट का धंधा रोकने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है. कुछ दिन पहले ही निगम मुख्यालय के निकट एक टाइपिस्ट के पास से बड़ी मात्र में जाली स्टैंप पेपर पुलिस ने बरामद किया था, जिसके द्वारा जाली बर्थ सर्टिफिकेट तैयार किया जाता था