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राज्यपाल से मिले जूट श्रमिक
बंगाल जूट मिल्स वर्कर्स यूनियन ने कोलकाता में किया विरोध-प्रदर्शन बंद जूट मिलों को खोलने व अन्य मांगों को लेकर राज्यपाल व श्रम मंत्री को सौंपा ज्ञापन कोलकाता : बंगाल के जूट उद्योग का हाल बेहाल है. दर्जनों जूट मिलें बंद हैं. जो खुली हैं उनकी भी दशा-दिशा ठीक नहीं है. ऐसे में बंद जूट […]
बंगाल जूट मिल्स वर्कर्स यूनियन ने कोलकाता में किया विरोध-प्रदर्शन
बंद जूट मिलों को खोलने व अन्य मांगों को लेकर राज्यपाल व श्रम मंत्री को सौंपा ज्ञापन
कोलकाता : बंगाल के जूट उद्योग का हाल बेहाल है. दर्जनों जूट मिलें बंद हैं. जो खुली हैं उनकी भी दशा-दिशा ठीक नहीं है. ऐसे में बंद जूट मिलों को खोलने, बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने समेत कई मांगों को लेकर श्रमिकों ने शुक्रवार को राजभवन अभियान चलाया. अभियान ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआइयूटीयूसी) समर्थित बंगाल जूट मिल्स वर्कर्स यूनियन के बैनर तले चलाया गया. अभियान के तहत राजभवन के मुख्य द्वार के निकट विरोध प्रदर्शन किया गया.
इस दौरान स्थिति नियंत्रित करने वाले पुलिस कर्मियों के साथ प्रदर्शनरत श्रमिकों की धक्का-मुक्की भी हुई. इधर जूट मिल श्रमिकों की मांगों को लेकर यूनियन की ओर से राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी और राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक को ज्ञापन सौंपने के बाद धर्मतल्ला के वाइ चैनल के निकट सभा भी की गयी. यूनियन के नेताओं ने कहा कि राज्यपाल और श्रम मंत्री ने जूट मिलों के श्रमिकों की समस्याओं के समाधान पर गौर करने का आश्वासन दिया है. श्रम मंत्री मलय घटक ने यूनियन के प्रतिनिधियों को राज्य में जूट मिलों और श्रमिकों की समस्याओं के निबटारे के लिए जल्द त्रिपक्षीय बैठक की बात भी कही है.
केंद्र व राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल
सभा में एआइयूटीयूसी के प्रदेश सचिव व बंगाल जूट मिल्स वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष दिलीप भट्टाचार्य ने बंगाल में जूट मिलों की दुर्दशा के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल उठाये.
उन्होंने कहा कि जूट पैकेजिंग मैटेरियल एक्ट 1987 को दरकिनार करने की कोशिश हो रही है. सिंथेटिक पैकेजिंग पर जोर दिया जा रहा है. इधर पर्याप्त आर्डर नहीं मिलने का कारण बता कर जूट मिलों के मालिक सारा दबाव श्रमिकों के कंधे पर डाल रहे हैं.
राज्य में करीब 20 जूट मिलों के बंद होने के कारण लगभग 80 हजार श्रमिकों की रोजी-रोटी पर संकट है. कई श्रमिक तो आत्महत्या को भी मजबूर हुए. जो मिलें खुली हैं वे भी बदहाल स्थिति से जूझ रही हैं. कहीं प्रति सप्ताह में चार से पांच दिन कार्य हो रहा है तो कहीं पर प्रतिदिन चार से पांच घंटे काम हो रहा है. कार्यो के शिफ्ट में कटौती की जा रही है.
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