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तांत्रिक को फांसी की बजाय आजीवन कारावास की सजा

कोलकाता : कलकत्ता हाइकोर्ट ने शुक्रवार को हत्या के आरोप में जेल में बंद तांत्रिक की फांसी की सजा को रद्द करते हुए, उसे आजीवन कारावास की सजा सुनायी. साथ ही हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि आरोपी को कम से कम 35 वर्ष तक जेल में रहना होगा. ऐसा ही निर्देश शुक्रवार को कलकत्ता […]

कोलकाता : कलकत्ता हाइकोर्ट ने शुक्रवार को हत्या के आरोप में जेल में बंद तांत्रिक की फांसी की सजा को रद्द करते हुए, उसे आजीवन कारावास की सजा सुनायी. साथ ही हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि आरोपी को कम से कम 35 वर्ष तक जेल में रहना होगा. ऐसा ही निर्देश शुक्रवार को कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश असीम कुमार राय व न्यायाधीश ईशान चंद्र दास की डिवीजन बेंच ने दिया. उन्होंने कहा कि तांत्रिक के खिलाफ जो आरोप है, वह अमानवीय है, लेकिन यह कोई रेयर घटना नहीं है.

जबकि फांसी की सजा सिर्फ असामान्य घटना पर ही दी जा सकती है. गौरतलब है कि बांकुड़ा जिले के मधुकुंडा, सालतोड़ा, बांकुड़ा में तांत्रिक लक्ष्मी कांत कर्मकार ने अपनी सिद्धि प्राप्त करने के लिए 29 जनवरी 2012 को दोपहर दो बजे के करीब 15 दिन के शिशु का गला काट कर उसका खून पी रहा था. इस घटना को इलाके के रहनेवाले रामचंद्र महाली ने देख लिया और घटना की जानकारी सालतोड़ा थाना को दी. पुलिस ने इस मामले में तांत्रिक को गिरफ्तार कर लिया, हालांकि पुलिस को शव का पता नहीं चला. इसलिए पुलिस यह पता नहीं कर पायी कि वह शिशु कन्या थी या पुरुष.

वर्ष 2014 में बांकुड़ा के निचली अदालत ने लक्ष्मी कांत को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनायी. निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ तांत्रिक ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट के न्यायाधीश ने इस घटना को अमानवीय करार दिया, लेकिन उन्होंने फांसी की सजा को रद्द करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनायी.

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