मदन मित्रा के वकील शेखर बसु व मिलन मुखर्जी ने दावा किया कि सीबीआइ की ओर से दायर इस मामले का औचित्य नहीं है, जिन धाराओं में सीबीआइ ने मामला किया है वह केवल किसी ट्रायल या अपील के लिए प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन यह मामला जमानत याचिका पर किया गया है. यह उसके दायरे में नहीं आता. दूसरी ओर सीबीआइ के वकील के राघावचारेलु ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जमानत याचिका इन्क्वायरी के दायरे में आती है.
लिहाजा धारा 407 को इसमें शामिल किया जा सकता है. साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सारधा मामले से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को बताया और कहा कि इसे निचली अदालत सही तरीके से पालन नहीं कर रही है. सीबीआइ ने निचली अदालत में निष्पक्षता पर सवाल उठाया. इसलिए ही मामले के स्थानांतरण को उन्होंने उचित ठहराया. सीबीआइ का कहना था कि निचली अदालत में न्याय प्रक्रिया सही नियमों का पालन करके नहीं हो रही है. उन्होंने देवव्रत सरकार को जमानत दिये जाने का मुद्दा भी उठाया.
कहा गया कि जमानत के लिए जो शर्त दी गयी थी वह नहीं दी जा सकती. केवल मेडिकल मामले में ही ऐसी छूट दी जा सकती है. उन्हें छूट दी गयी थी कि पुलिस की इजाजत लेकर वह बाहर जा सकते हैं. लेकिन ऐसी छूट नहीं दी जा सकती. केवल बीमारी के मामले में ऐसा हो सकता है. लेकिन देवव्रत सरकार केवल एक क्लब के अध्यक्ष ही हैं. सीबीआइ ने यह भी आरोप लगाया कि निचली अदालत में मदन मित्रा के जमानत के मामले की सुनवाई तय तिथि से पहले ही अचानक तय कर दी गयी. गुरुवार को मामले की फिर से सुनवाई होगी. इधर अलीपुर अदालत में जमानत याचिका की सुनवाई को स्थगित कर उसे 15 मई के लिए तय किया गया है. उल्लेखनीय है कि मदन मित्रा ने कलकत्ता हाइकोर्ट में एक बार व अलीपुर सेशन कोर्ट में दो बार जमानत याचिका दायर की है. निचली अदालत में दो बार याचिका को खारिज कर दिया गया था. जबकि हाइकोर्ट की याचिका को मदन मित्रा के वकीलों ने ही वापस ले लिया था.