कोलकाता : देश के हजारों उद्योगपतियों व राजनेताओं के पास बेनामी संपत्ति की भरमार है. इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 1988 में बेनामी ट्रांजैक्शन प्रोहिबिशन एक्ट पारित किया था, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि एक्ट पारित होने के 25 वर्ष बीतने के बाद भी अब तक इसके नियम तैयार नहीं हुआ है तो कार्रवाई कैसे की जाये.
इस प्रकार के मामलों में जांच एजेंसियों के हाथ बंधे हुए हैं, क्योंकि आसानी से बेनामी संपत्ति को विदेशों के बैंकों में जमा किये जा रहे हैं और विदेशी बैंकों से जानकारी प्राप्त करने के लिए वर्षो समय लगता है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वहां से सभी जानकारियां मिले भी.
इसलिए जब तक इस संबंध में कोई ठोस नियम नहीं बनते हैं, तब तक इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता. यह बातें गुरुवार को सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआइ) के अतिरिक्त निदेशक रूपक कुमार दत्ता ने एमसीसी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की ओर से आयोजित सेमिनार के दौरान कहीं.
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार कानून आयोग ने अवैध तरीके से ली गयी संपत्ति को भी जब्त करने की सिफारिश की थी, लेकिन अब यह इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया है. देश में फैले भ्रष्ट्राचार के संबंध में उन्होंने कहा कि आज भ्रष्ट्राचार लोगों के कार्य जीवन में प्रवेश कर गया है.
सबसे अधिक भ्रष्ट्राचार लोक निर्माण विभाग में है, जहां लोग अपना काम कराने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. भ्रष्ट्राचार से निबटने के लिए कई कानून व एजेंसियां बनायी गयी हैं, लेकिन एजेंसियों को जिम्मेदारी नहीं दी गयी है, इसलिए इन नियमों को लागू कर पाना संभव नहीं है.
भ्रष्ट्रचार से निबटने के लिए प्रिवेंटिव विजिलेंस जरूरी है, जैसे अगर किसी विभाग का कोई अधिकारी घूस लेते हुए गिरफ्तार होता है तो उस विभाग के प्रमुख को भी इसका जवाब देना होगा कि क्यों उस अधिकारी ने घूस लिया.
वह इस प्रकार की घटना को क्यों नहीं रोक पाये, लेकिन ऐसा कानून कब तक बनेगा, यह कह पाना संभव नहीं है. इस मौके पर चेंबर के अध्यक्ष दीपक जालान ने स्वागत भाषण रखते हुए अतिथियों का स्वागत किया.