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ऐसे कैसे होगी संस्कृति की रक्षा: लाखों का सामान गायब, रेलवे में मचा हड़कंप

कोलकाता: कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती के अवसर पर शुरू की गयी प्रदर्शनी ट्रेन ‘संस्कृति एक्सप्रेस’ से लाखों के कल-पूज्रे और अन्य कीमती सामान गायब हैं. मामले का खुलासा तब हुआ, जब इस ट्रेन को लिलुआ वर्कशॉप से रेलवे सप्ताह के दौरान प्रदर्शन के लिए हावड़ा स्टेशन स्थित रेलवे म्यूजियम लाया गया. 10 […]

कोलकाता: कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती के अवसर पर शुरू की गयी प्रदर्शनी ट्रेन ‘संस्कृति एक्सप्रेस’ से लाखों के कल-पूज्रे और अन्य कीमती सामान गायब हैं. मामले का खुलासा तब हुआ, जब इस ट्रेन को लिलुआ वर्कशॉप से रेलवे सप्ताह के दौरान प्रदर्शन के लिए हावड़ा स्टेशन स्थित रेलवे म्यूजियम लाया गया. 10 अप्रैल से रेलवे सप्ताह का आयोजन होगा. इसके पहले ‘संस्कृति एक्सप्रेस’ से लाखों का सामान चोरी चले जाने का खुलासा होने से रेलवे में हड़कंप मचा हुआ है. आनन-फानन में मरम्मत का काम चल रहा है.
क्या है मामला: जानकारी के अनुसार, पिछले दिनों ‘संस्कृति एक्सप्रेस’ के कोच से लाखों का सामान चोरी चला गया. ट्रेन की एसी के कल-पूजरे के साथ महंगे उपकरण गायब हो गये हैं. चोरी गये उपकरण का आंकड़ा अब तक नहीं मिला है लेकिन जानकारों की मानें तो 50 लाख से ज्यादा का सामान गायब है. एसी में इस्तेमाल होने वाला अंडर गियर कॉपर केबल और केसी वॉयर ट्रेन के ज्यादातर डब्बों से गायब है. चोर ट्यूब लाइटें भी उखाड़ कर ले गये हैं.
पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने शुरू की थी संस्कृति एक्सप्रेस: गुरु देव के जीवन और दर्शन को चित्रित करने वाली इस ट्रेन को तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने 9 मई, 2010 को हरी झंडी दिखाकर हावड़ा स्टेशन के पास स्थित रेल संग्रहालय से रवाना किया था. पांच डब्बों वाली संस्कृति एक्सप्रेस सालभर देश भर के चुने हुए 100 स्टेशनों का भ्रमण करने के बाद 8 मई, 2011 को हावड़ा लौटी. बाद में उसे लिलुआ वर्कशॉप में रख दिया गया था. तभी से यह ट्रेन वर्कशाप में पड़ी थी. पिछले दिनों रेल मुख्यालय से आदेश हुआ कि 10 अप्रैल से शुरू हो रहे रेल सप्ताह के दौरान इस ट्रेन को रेलवे म्यूजियम ला कर आम लोगों के लिए खोला जाये.
जब ट्रेन पर अधिकारियों की नजर पड़ी तो पाया गया कि संस्कृति की धरोहर इस ट्रेन के कई सामान गायब हैं. घटना का खुलासा होते ही रेल अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गये. मामले को निचले स्तर पर ही दबाने के लिए विभागीय स्तर पर जांच कमेटी बना दी गयी. हालांकि जब ट्रेन हावड़ा स्टेशन पहुंची, तो मामला मंडल प्रबंधक तक पहुंचा. सूत्रों के अनुसार, इस घटना को लेकर हावड़ा रेल मंडल प्रबंधक ने कुछ अधिकारियों की क्लास ली और रिपोर्ट देने को कहा.
संस्कृति एक्सप्रेस हमारी देख-रेख में नहीं थी. लिहाजा मैं नहीं बता सकता कि इसमें कौन-कौन से उपकरण पहले लगे थे और अब गायब हो गये हैं. इस संबंध में तो सही जानकारी लिलुआ वर्कशॉप के मैनेजर ही दे पायेंगे. संस्कृति एक्सप्रेस महीनों से लिलुआ वर्कशॉप में पड़ी थी. हावड़ा मंडल अपने कोचों को वहां मरम्मत के लिए भेजता है, लेकिन लगता है कि कुछ गलत हुआ है.
-डॉ आर बद्री नारायण, मंडल रेल प्रबंधक, हावड़ा
कविगुरु के जीवन पर आधारित है संस्कृति एक्सप्रेस
तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती के अवसर पर इस खास प्रदर्शनी ट्रेन को बनाने का जिम्मा लिलुआ वर्कशॉप को सौंपा. पांच वातानुकूलित डब्बों वाली इस ट्रेन में कविगुरु की उपलब्धियों और दर्शन को चित्रित करने के लिए हावड़ा स्थित लिलुआ रेल वर्कशॉप के इंजीनियरों ने कड़ी मेहनत से ट्रेन को कविगुरु के रंग में रंग दिया. ट्रेन के हर डब्बे को एक खास नाम दिया गया. पहले डब्बे का नाम जीवन स्मृति दिया गया. इसमें तसवीरों के माध्यम से टैगाोर के जीवन, शांतिनिकेतन और श्रीनिकेतन को प्रदर्शित किया गया है. ट्रेन के दूसरे डब्बे का नाम गीतांजलि है, जो उनकी कविताओं और गीतों के प्रदर्शन के साथ ही विभिन्न कलाकारों द्वारा गुरुदेव के गीतों के गायन का प्रदर्शन करता है.

तीसरे डब्बे का नाम मुक्तोधारा है. इसमें रवींद्र साहित्य, काव्य, निबंध, उपन्यास, नाटक, नृत्य नाटक और अन्य विधाओं तथा गुरु देव द्वारा गाये गये गानों को प्रदर्शित किया गया है. चौथे डब्बे का नाम चित्र रेखा है. इसमें टैगोर के बचपन और किशोरावस्था के दौरान बनायी गयी तसवीरें, छायाचित्र, प्राकृतिक छटाएं, स्केच आदि हैं. इस डब्बे में श्री नंदलाल बोस, अवींद्रनाथ टैगोर, गगेंद्रनाथ टैगोर, बिनोद बिहारी और जाने-माने चित्रकारों के चित्र प्रदर्शित हैं. पांचवें डब्बे का नाम शेष कथा दिया गया है. इसमें टैगोर के जीवन की अंतिम यात्र की तसवीरें और उनके करीबियों द्वारा वर्णित उनके जीवन के अंतिम दिन, तथा अंतिम दिनों की कविताएं संग्रहीत हैं. कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर का 07 अगस्त, 1941 को उनके पैतृक घर में निधन हो गया था. इस डब्बे में स्मरणिका नामक एक खंड और है जिसमें शांतिनिकेतन के हस्तशिल्प उत्पादों, फोटो प्रिंट, गुरुदेव की हस्तलिपि की प्रदर्शनी और उनकी बिक्री की व्यवस्था भी है.

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