65 साल में देश में जो मध्य वर्ग उभरा हैं, वो अपनी मातृभाषा बोलना नहीं जानता. जेएनयू के सहायक प्रोफेसर डॉ गंगासहाय मीणा ने आदिवासी भाषा के अनसुने पक्षों पर गंभीरता से प्रकाश डाला. उन्होंने हिंदी अकादमियों पर आदिवासी बोलियों के विकास पर उदासीन होने का आरोप लगाया. आदिवासी हितों के लिए काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता बंदना टेटे और अरुण पंकज ने आदिवासी समाज के सपनों और आंदोलनों पर विचार रखे.
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प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए : मैनेजर पांडेय
कोलकाता: वरिष्ठ साहित्य समालोचक प्रोफेसर मैनेजर पांडेय ने कहा है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए, क्योंकि मनुष्य और भाषा का संबंध अविभाज्य है. बोलियों के उत्थान का स्वर्णकाल भक्तिकाल है. श्री पांडेय, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय और भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘बोली और पहचान का संकट’ विषयक दो दिवसीय […]
कोलकाता: वरिष्ठ साहित्य समालोचक प्रोफेसर मैनेजर पांडेय ने कहा है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए, क्योंकि मनुष्य और भाषा का संबंध अविभाज्य है. बोलियों के उत्थान का स्वर्णकाल भक्तिकाल है. श्री पांडेय, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय और भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘बोली और पहचान का संकट’ विषयक दो दिवसीय सेमिनार के उदघाटन सत्र में बोल रहे थे. जिसका आयोजन प्रेसिडेंसी कालेज में किया गया था. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि बोलियां सांस्कृतिक पहचान की वाहक हैं. बोलियां संस्कृति से संघर्ष करती आ रही हैं.
यह एक मिथक चली आ रही है कि बोलियों का संबंध दासों और गुलामों से हैं, हांलाकि भू-मंडलीकरण के इस दौर में भूमि दखल करने की जैसे होड़ मची है, वैसे ही भाषा को भी दखल करने की होड़ मची है. उन्होंने कहा कि भाषा के नाम पर हो रहे आयोजन खाओ पियो दिवस हो गया हैं. विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के पूर्व निदेशक और भाषाविद् प्रोफेसर उदयनारायण सिंह ने बोलियों के अस्तित्व के खतरों के कारणों और उपायों पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा की बोलियों का खत्म होना सामूहिक पहचान और पारंपरिक ज्ञान संपदा का खत्म होना हैं. अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और समाज भाषा विज्ञानी एस इम्तियाज हसनैन ने कहा की भारत बहुभाषाई देश है. यह दुर्भाग्य है की इसका ख्याल रख कर समाज का विकास नहीं हो रहा हैं. प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा कि भाषा आज सियासत का विषय बन गयी हैं. भाषा बोलने से नहीं अध्ययन अध्यापन से बचती है.
नार्थ हिल यूनिविर्सटी के सहायक प्रोफेसर डॉ अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी ने भाषा के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला. तीन सत्रों में आयोजित इस कार्यक्र म की संयोजक प्रोफेसर तनुजा मजूमदार और समन्वयक असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ ऋ षि चौबे ने अतिथियों का परिचय कराया. सेमिनार का संचालन सहायक प्रोफेसर अनिंद्य गांगुली और मैरी हांसदा ने किया.
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