कोलकाता : संन्यासी, गृहस्थ, विरक्त या कोई भी व्यक्ति जो कथा में खिंच कर आता है, वह भगवान की कृपा की वजह से ही आता है. प्रभु की लीला को देख कर मोह हो सकता है, पर उसकी निवृत्ति तो कथा में ही हो सकती है. सती और परशुराम को भगवान की लीला देख कर ही मोह हुआ था. सती जब पार्वती बनी, तो कथा सुन कर ही उनकी निवृत्ति हुई. परमात्मा की कृपा होने पर ही व्यक्ति उनके नाम में रुचि रखता है और जीवों पर दया करता है. भागवत परंपरा में श्रोता, वक्त को आशीर्वाद दे सकता है. हृदय से निकले आशीर्वाद का सकारात्मक परिणाम होता है. कथा से जीवन में क्रांति आ सकती है, पर इसके लिए आवश्यक है कि वक्ता विश्वास के आसन पर बैठ कर कथा सुनाये और श्रोता श्रद्धा के आसन पर बैठ कर उसे सुने जैसे शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को सुनाया था. अभिप्राय है कि वक्ता को शुकदेव मुनि जैसा और श्रोता को राजा परीक्षित के समान होना चाहिए. जितनी भी पौराणिक कथाएं सुनाई गयी हैं, वे वट वृक्ष के नीचे ही हुई हैं. शंकर व पार्वती, याज्ञवल्क्य व भारद्वाज, काक-भुषुंडि व गरुड़ आदि कथाएं वटवृक्ष के नीचे ही सुनाई गयी हैं. यदि कथा श्रद्धा और विश्वास के साथ सुनी और सुनाई जाये, तो जीवन में क्रांति आ सकती है. ये तात्विक बातें संगीत कला मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में श्रीमदभागवत कथा पर प्रवचन करते हुए डॉ मनोज मोहन शास्त्री ने कलाकुंज सभागार में कहीं. कथा संयोजक दाऊलाल बिन्नानी ने बताया कि रविवार को कथा का विश्राम दिवस है.
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श्रद्धा-विश्वास के साथ कथा सुनें-सुनाएं : डॉ शास्त्री (फो)
कोलकाता : संन्यासी, गृहस्थ, विरक्त या कोई भी व्यक्ति जो कथा में खिंच कर आता है, वह भगवान की कृपा की वजह से ही आता है. प्रभु की लीला को देख कर मोह हो सकता है, पर उसकी निवृत्ति तो कथा में ही हो सकती है. सती और परशुराम को भगवान की लीला देख कर […]
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