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नामकरण पर निगम व वाम दलों में ठनी

कोलकाता: काफी मुसीबतों के बाद तैयार हुए धापा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से 23 दिसंबर से जलापूर्ति शुरू हो गयी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथों हुए उदघाटन के बाद सीमित स्तर पर यहां से पानी की आपूर्ति शुरू तो हो गयी है, पर इसके नाम को लेकर सत्तापक्ष और वामदलों के बीच छिड़ी तू-तू-मैं-मैं अभी तक […]

कोलकाता: काफी मुसीबतों के बाद तैयार हुए धापा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से 23 दिसंबर से जलापूर्ति शुरू हो गयी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथों हुए उदघाटन के बाद सीमित स्तर पर यहां से पानी की आपूर्ति शुरू तो हो गयी है, पर इसके नाम को लेकर सत्तापक्ष और वामदलों के बीच छिड़ी तू-तू-मैं-मैं अभी तक नहीं थमी है.
वामो बोर्ड के नाम को बदलने पर विवाद
पिछले वाम मोरचा बोर्ड ने इस प्लांट का नाम राज्य के दिवंगत मुख्यमंत्री ज्योति बसु के नाम पर रखा था, पर वर्तमान बोर्ड ने उसे बदल कर इसका नाम जय हिंद वाटर ट्रीटमेंट प्रोजेक्ट कर दिया है. इस फैसले पर बुधवार को निगम के मासिक अधिवेशन में आखिरी मुहर भी लग गयी. लेकिन वामदल इस फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं थे.
इस मुद्दे पर बयान देते हुए मेयर परिषद सदस्य देवाशीष कुमार ने कहा कि पिछले वाम मोरचा बोर्ड के मेयर परिषद ने इस प्लांट का नाम ज्योति बसु के नाम पर रखने का फैसला तो कर लिया था, पर इसे कभी भी सदन में पारित नहीं करवाया. वे केवल चुनाव में ज्योति बसु का नाम इस्तेमाल कर उसका फायदा उठाना चाहते थे. हम लोगों ने किसी नेता अथवा राजनीतिक दल के नाम पर इसका नामकरण नहीं किया है, बल्कि देश के नाम पर धापा प्लांट का नाम रखा गया है.
मेयर ने बयान देने से किया इनकार नाराज विपक्ष ने किया वॉकआउट
निगम के मासिक अधिवेशन में माकपा पार्षद अजय कुमार साहा ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि ज्योति बसु का नाम दुनिया में परिचित है. उन्होंने अपने काम से बंगाल का गौरव बढ़ाया है. परियोजना से उनका नाम हटा कर तृणमूल ने संकीर्ण राजनीति व राजनीतिक भेदभाव का परिचय दिया है. विपक्ष की नेता रूपा बागची ने कहा कि हम जब सत्ता में थे तो इंदिरा भवन का नाम नहीं बदला. वर्तमान मुख्यमंत्री स्वयं ज्योति बसु का काफी सम्मान करती थीं, पर न जाने ऐसा क्या हो गया कि मेयर ने धापा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से उनका नाम हटा दिया. श्रीमती बागची ने कहा कि हम इस मुद्दे पर मेयर का बयान चाहते हैं, इसलिए जब तक मेयर इस बारे में बयान नहीं देते हैं, इस फैसले पर मुहर नहीं लगायी जाये. लेकिन तृणमूल बोर्ड ने उनकी मांग ठुकरा दी, जिससे नाराज होकर वामपंथी पार्षद निगम की कार्यवाही से वाकआउट कर गये.

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