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कलश स्थापना के साथ आज से नवरात्र शुरू

आसनसोल : शारदीय नवरात्र गुरुवार से शुरू हो रहा है. दिन के 12.26 बजे तक ही प्रतिपदा है. इसके बाद से द्वितीया लग जायेगी. हालांकि उदया तिथि में प्रतिपदा मिलने के कारण सारा दिन प्रतिपदा मान्य होगा, लेकिन कलश स्थापना इससे पूर्व हो जाये, तो अति उत्तम है. बनारस पंचाग के अनुसार इस वर्ष मां […]

आसनसोल : शारदीय नवरात्र गुरुवार से शुरू हो रहा है. दिन के 12.26 बजे तक ही प्रतिपदा है. इसके बाद से द्वितीया लग जायेगी. हालांकि उदया तिथि में प्रतिपदा मिलने के कारण सारा दिन प्रतिपदा मान्य होगा, लेकिन कलश स्थापना इससे पूर्व हो जाये, तो अति उत्तम है.
बनारस पंचाग के अनुसार इस वर्ष मां का आगमन नाव पर हो रहा है, जो काफी शुभ माना गया है. वहीं मां का गमन डोली पर हो रहा है, जिसे शुभ नहीं माना जा रहा है. इस बार महानवमी व विजया दशमी एक ही दिन तीन अक्तूबर शुक्रवार को है. शुक्रवार को प्रात: 6.24 बजे तक नवमी है, इसके बाद 6.25 से दशमी लग जायेगी, जो अगले दिन रात्रि शेष 4.07 बजे तक रहेगी.
उदया तिथि में दशमी नहीं मिल पाने के कारण एक ही दिन नवमी व दशमी मान्य है. वहीं दो अक्तूबर को महाअष्टमी है. इस दिन प्रात: 8.30 बजे तक ही अष्टमी है, तदोपरांत नवमी लग जायेगी.
क्या है शारदीय नवरात्र व्रत
मां दुर्गा की उपासना के लिए शारदीय नवरात्रि की महिमा सर्वोपरि है. नवरात्र में प्रयुक्त नव शब्द नौ संख्या का प्रतीक है और रात्र शब्द रात का प्रतीक है. यहां तात्पर्य यह है कि नवाना रात्रीणां समाहारं नवरात्र. धार्मिक ग्रंथ नवरात्र का अर्थ नव अहोरात्र के रूप में बताते हैं अर्थात जो शुभ पर्व नौ दिन एवं नौ रातों तक चले वही नवरात्र है.
संसार एवं घर-गृहस्थी के चक्रव्यूह में फंसे लोगों के पास न तो इतना समय ही होता है और न ही इतनी सामर्थ्‍य कि वे नित्य साधना कर सकें. अत: सद्गृहस्थों के जीवन में आनेवाली समस्या एवं संकटों के समाधान के लिए ऋषियों ने नौमित्तिक साधना का प्रतिपादन किया है. इन नौमित्तिक साधना के महापर्व को ‘नवरात्र’ कहते हैं.
नवरात्र एवं दुर्गापूजा का फल
शाक्त तंत्रों में कहा गया है कि मानव जीवन समस्या एवं संकटों में भरा रहता है. अत: सांसारिक कष्टों के दलदल में फंसे मनुष्यों को नवरात्र व्रत एवं श्री दुर्गा की उपासना करनी चाहिए. वह आद्याशक्ति दुर्गा ‘एकमेव’ एवं ‘अद्वितीय’ होते हुए भी अपने भक्तों को दस महाविद्याओं के रूप में वरदायिनी होती है और वही जगन्माता अपने भक्तों के दु:ख को दूर करने के लिए नवदुर्गाओं के रूप में अवतरित होती हैं.
रुद्रदयामल तंत्र में आद्याशक्ति के दुर्गा नाम निर्वचन करते हुए कहा गया है कि -‘जो दुर्ग के समान सुविधा और सुरक्षा देती है अथवा जो दुर्गति का नाश करती है वही दुर्गा है.’ अत: नवरात्र के अवसर श्रद्धा भक्ति से मां दुर्गा की आराधना करने से मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं – ‘यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्रापोति निश्चितम्।’ अर्थात-मानव अगर तु चाहे, दुनिया को झुका देना। बस मां के चरणों के आगे, सर अपना झुका लेना।।
कन्यापूजन : नवरात्रि के अनुष्ठान में दो वर्ष की आयु से दस वर्ष की आयुवाली नौ कन्याओं का एक बटुक के साथ पूजा किया जाता है.
कन्या पूजन में सर्वप्रथम कन्याओं के पैर धोकर उत्तर आसन पर बैठा कर हलवा, पूड़ी, चना एवं अन्य व्यंजनों से भोजन कराया जाता है. सामर्थ्‍य के अनुसार वस्त्र, आभूषण, अलंकार एवं दक्षिणा देकर उन्हें कृतकृत्य भाव से विदा किया जाता है.
नवदुर्गा : काल देव एवं लीलाभेद से मां दुर्गा के नौ अवतारों को नवदुर्गा कहते हैं – 1. शैलपुत्री, 2. ब्रह्म चारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कूष्मांडा, 5. स्कंदमाता, 6.
कात्यायनी, 7. कालरात्रि, 8. महागौरी, 9. सिद्धिदात्री.
दस महाविद्या : नवरात्र के अवसर पर लोग दस महाविद्याओं की भी आराधना करते हैं. आगमशास्त्र में अविद्या, विद्या एवं महाविद्या – ये तीनों शब्द परिभाषिक हैं. जो सांसारिक कार्यो में हमारी सहायता करती हैं, उसे अविद्या कहते हैं. जो मुक्ति का मार्ग बताती है वह ‘विद्या’ कही जाती है. और जो भोग एवं मोक्ष दोनो देती है, उसको ‘महाविद्या’ कहते हैं. शाक्त तंत्रों के अनुसार 1. काली, 2. तारा, 3. षोड़शी, 4. भुवनेश्वरी, 5. भैरवी, 6. छिन्नमस्ता, 7. धूमावती, 8. बगला, 9. मातंगी, 10. कमला – ये दस महाविद्या कहलाती हैं.
नवरात्र में आहार : नवरात्रि के व्रत एवं अनुष्ठान में निराहार रहना सर्वोत्तम है. यदि ऐसा संभव न हो तो फलाहार किया जा सकता है. फलाहार में दूध, दही, मावा, मेवा, मिश्री, कुटू एवं सिंघाड़े के आटे से बने पदार्थ ग्राह्य होते हैं. यदि फलाहार भी संभव न हो, तो एक समय ‘हविष्यान्न’ भोजन में लिया जा सकता है. शुद्ध सात्विक एवं शाकाहारी भोजन को हविष्यान्न कहते हैं.
कलश स्थापन मुहूर्त
इस वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष संवत 2071 शाक : 1936, शारदीय नवरात्र 25 सितंबर गुरुवार के दिन प्रतिपदा तिथि दोपहर 12 बज कर 36 मिनट तक रहेगी. अत: घट स्थापना मुहूर्त दोपहर तक ही मान्य होगा. प्रात: 6.30 से 8.00 बजे तक शुभ का चौघड़िया, दोपहर 12.05 से 12.29 तक अभिजीत मुहूर्त, इसी समय में ही कलश स्थापना करें
नवरात्र में दुर्गापूजा के अनुष्ठान
(1) नवरात्र में विधिपूर्वक घट स्थापित कर ‘श्री दुर्गासप्तशती’ के संपुट या सादा पाठ करना या कराना चाहिए. संस्कृत में पूर्णरूप से उच्चरण न कर सकें, तो हिंदी में भी पाठ कर सकते हैं.
(2) सामर्थ्‍य के अनुसार नवचंडी, शतचंडी या सहस्त्रचंडी का अनुष्ठान करायें.
(3) नवरात्र में अधिक से अधिक नवाहन मंत्र – ú ऐं हीं चामुण्डाये विच्चे’ का पाठ अवश्य करें.
(4) नवार्ण मंत्र या दशमहाविद्याओं में से किसी के मंत्र का अनुष्ठान करें.
(5) देव्यथर्वशीर्षसूक्त या देवीसूक्त का पाठ करें.
(6) श्री ललिता सहस्त्रनाम या महाकाली, महालक्ष्मी अथवा महासरस्वती के सहस्त्रनाम का पाठ करें.
(7) सप्तश्लोकी दुर्गा, दुर्गा द्वात्रिशत् नामावलि, दुर्गासतनाम् या दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ करें.
(8) अपने घर के पूजा स्थान में भगवती दुर्गा के चित्रों की स्थापना करें तथा इनका पूजन और साज-सज्जा फूलों इत्यादि से करें और नित्य संध्याकाल में परिवार
सहित आरती अवश्य करें.
(9) घर में जौ बो कर व्रत रखें और मां दुर्गा की पूजा एवं दुर्गा चालीसा का पाठ करें.
(10) मंदिर जाकर मां दुर्गा के दर्शन एवं पूजा करें तथा अष्टमी/नवमी को कन्या पूजन करें
पूजा के उपचार
पंचोपचार : 1. गंध, 2. पुष्प, 3. धूप, 4. दीप एवं 5. नवैद्य, इनको पंचोपचार कहते हैं.
षोड़श उपचार : 1. आसन, 2. स्वागत, 3. पाद्य 4. अघ्र्य, 5. आचमनीय, 6. मधुपर्क, 7. आचमन, 8. स्नान, 9. वस्त्र, 10. आभूषण, 11. गन्धाक्षत, 12. पुष्प, 13. धूप, 14. दीप, 15. नवैद्य, 16. वंदना – ये नवरात्र व्रत में दुर्गापूजा के षोडश उपचार होते हैं. इन उपचारों से वैदिक, पौराणिक या नाम मंत्र का उच्चरण करते हुए नवरात्र के अवसर पर भगवती दुर्गा की पूजा की जाती है.
मानसोपचार : ध्यान योग से पूजा करनेवाले सिद्धि कोटि के साधक या अत्यंत अभावग्रस्त सांसारिक लोग मानस उपचारों से नवरात्र के अवसर मां दुर्गा की पूजा कर सकते हैं, यथा – 1. ú लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि. 2. ú हं आकाशत्मकं पुष्पं समर्पयामि. 3. ú मं वाय्वात्मकं धूपमाघ्रापयामि. 4. ú रं वद्वयात्मकं दीपं दर्शयामि. 5. ú वं अमृतात्यकं नैवेद्य निवेदयामि.
जौ बोना : पूजा घर या किसी पवित्र कमरे के ईशान कोण में भूमि पर स्वस्तिक बना कर तीर्थो की मिट्टी या शुद्ध मिट्टी में गोबर मिला कर मन में मां दुर्गा का स्मरण करते हुए जौ बोये जाते हैं. नवमी के दिन यदि जौ के ज्वारे सीधे, कोमल एवं सफेद रंग के हो, तो शुभ और टेढ़े-तिरछे या काले हों, तो अशुभ होते हैं.
श्री दुर्गासप्तशती पाठ की विधि : नवरात्रि में श्री दुर्गासप्तशती पाठ की महिमा सर्वोपरि है. इस पाठ में सर्वप्रथम संकल्प, इसके बाद कवच, अर्गलास्तोत्र एवं कीलक के पाठ के पाद नवार्ण मंत्र का जाप, फिर सप्तशती न्यास साथ श्री दुर्गासप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ और बाद में उत्तर न्यास, देवी सूक्त, नवार्ण मंत्र का जाप और तीनों रहस्यों का पाठ कियाजाता है. यदि ये संभव न हो तो नवार्ण मंत्र का एक माला जप तथा श्री दुर्गाशप्तशती के द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ अध्याय का भी पाठ करने से पूरा फल मिलता है.

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