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बाल अधिकार की रक्षक बनीं बहादुर बालाएं

कोलकाता : नाबालिग लड़कियों की तस्करी या बाल-विवाह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है. लड़कियां न चाहते हुए भी इसमें फंस जाती हैं, क्योंकि अलीपुरद्वार के कई आदिवासी इलाकों में न तो शिक्षा है, न ही रोजगार. यहां लड़कियों को नाैकरी के नाम पर बहलाया-फुसलाया जाता है. कुछ अभिभावक खुद ही गरीबी के कारण छोटी […]

कोलकाता : नाबालिग लड़कियों की तस्करी या बाल-विवाह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है. लड़कियां न चाहते हुए भी इसमें फंस जाती हैं, क्योंकि अलीपुरद्वार के कई आदिवासी इलाकों में न तो शिक्षा है, न ही रोजगार. यहां लड़कियों को नाैकरी के नाम पर बहलाया-फुसलाया जाता है. कुछ अभिभावक खुद ही गरीबी के कारण छोटी उम्र में ही बेटियों की शादी करवा देते हैं.

जैसे ही इसकी सूचना मिलती है, हमारी टीम सक्रिय हो जाती है. हम घटनास्थल पर जाकर धावा बोल देते हैं व पुलिस की मदद से उसे रोकने की कोशिश करते हैं. यह अनुभव साझा कर रही हैं, अलीपुरद्वार के भातखावा व आटियावारी चाय बागान की लड़कियां रशीता चिकबराइक व मैनुका. रशीता बताती हैं कि हमारा इलाका सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ा है.

यहां लोग कच्चे घरों में रहते हैं. घर की महिलाएं भी चाय बागान में काम करती हैं. कई का काम बंद हो गया है. जबाला एक्शन रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन द्वारा दी गयी ट्रेनिंग के जरिये वे समुदाय की अन्य लड़कियों को सशक्त करने का काम कर रही हैं. बालिग व नाबालिग लड़कियों का एक ग्रुप बनाया गया है. इस ग्रुप की बैठक में प्रतिदिन शिक्षा व बाल अधिकारों के बारे में जागरुकता फैलाने का काम किया जाता है.

रशीता बताती हैं कि इलाके के सभी बच्चों को चाइल्ड लाइन नंबर (1098) की जानकारी है. बाल अधिकारों का हनन होने या जबरन बाल-विवाह होने की सूचना मिलने पर उनका ग्रुप काफी सक्रिय हो जाता है. वे अपने दल के साथ पुलिस या पंचायत तक पहुंच जाती हैं. सारी घटना की सूचना देती हैं, उसके बाद कार्रवाई शुरू हो जाती है. इस ग्रुप में ड्रॉपआउट बच्चों को भी स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया जाता है.

रशीता व मैनुका दोनों 12वीं की छात्राएं हैं. ये बताती हैं कि उनका घर एक ऐसे इलाके में है, जहां कभी भी जंगल के रास्ते से तेंदुआ या हाथी आकर हमला कर देता है. ये जानवर उनके घरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. इस प्रोजेक्ट से जुड़ने पर शुरुआत में उन्हें काफी डर भी लगता था, लेकिन अब वह निडर हो गयी हैं, क्योंकि पुलिस ने उनके काम को सराहा है.

उन्हें ऐसा प्रशिक्षण दिया गया है. वे दोनों बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्च निकालती हैं. मैनुका बताती है कि गारोपाड़ा, चाैपत्ती इलाके में लाइट भी नहीं है. रात को लोग बाहर निकलने से भी डरते हैं. जैसे ही बाल तस्करी या बाल-विवाह की सूचना उन्हें मिलती है, वे तुरंत घटनास्थल पर पहुंच जाती हैं.

कई बार गांव के लोग खुद उनके परिजन भी उन्हें जाने से रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन अब इस काम को उन्होंने अपना मिशन बना दिया है. वे चाहती हैं कि लड़कियां यहां सुरक्षित रहें व शिक्षित बनें. इस विषय में जबाला एक्शन रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन की डायरेक्टर बैताली गांगुली का कहना है कि अलीपुरद्वार के भातखावा, गारोपाड़ा, डिमडिमा चायबागानों में काफी आदिवासी हैं.

यहां बाल-विवाह व लड़कियों की तस्करी आम बात है. इसे रोकने के लिए संगठन काम कर रहा है. स्थानीय लड़कियों को ट्रेनर के रूप में तैयार किया गया है. ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी, निरक्षर अभिभावकों की ये बेटियां अद्भुत साहसी काम कर रही हैं. इन्हें स्थानीय पुलिस व बीडीओ द्वारा साहसिक कार्यों के लिए सम्मानित भी किया गया है.

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