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मेरी सरकार किसानों के कल्याण और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है : ममता बनर्जी

कोलकाता : सिंगुर के किसानों के बीच पर्चा (जमीन संबंधी दस्तावेजों) के वितरण की तीसरी वर्षगांठ पर शनिवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह राज्य में किसानों के कल्याण और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध है. पिछली वाममोर्चा सरकार ने टाटा नैनो की फैक्ट्री लगाने के लिए […]

कोलकाता : सिंगुर के किसानों के बीच पर्चा (जमीन संबंधी दस्तावेजों) के वितरण की तीसरी वर्षगांठ पर शनिवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह राज्य में किसानों के कल्याण और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध है. पिछली वाममोर्चा सरकार ने टाटा नैनो की फैक्ट्री लगाने के लिए इन किसानों की जमीन अधिग्रहित कर ली थी और तीन साल पहले उन्हें जमीन लौटायी गयी थी.

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ने 2016 में आज के दिन 9,117 किसानों की जमीन के परचे उन्हें वापस दिलवाये थे. इसके अलावा उन्होंने 806 लोगों को चेक भी दिये थे. ममता ने इस अवसर को ‘ऐतिहासिक दिन’ बताया था. तृणमूल सुप्रीमो ने शनिवार को अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘आज उस ऐतिहासिक दिन की तीसरी वर्षगांठ है जब हमारी सरकार ने सिंगुर में जबरन हथिया ली गयी किसानों की जमीन के परचे (कागजात) उन्हें वापस दिलवाये.’

उन्होंने लिखा, ‘हम उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ किसानों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं. मैं इस अवसर पर मां, माटी मानुष को प्रणाम करती हूं.’ ‘मां, माटी और मानुष (मां, मातृभूमि और लोग) 2009 के आम चुनाव से पहले बनर्जी द्वारा दिया गया राजनीतिक नारा था. अंतत: यह उनकी और उनकी पार्टी के लिए पहचान वाला नारा बन गया.

तृणमूल कांग्रेस ने टाटा द्वारा 2006 में सिंगुर में नैनो कार की फैक्ट्री लगाने के लिए किये गये भूमि अधिग्रहण के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया था. प्रसंगवश, शुक्रवार को स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) के करीब 60 कार्यकर्ता घायल हो गये. वे युवाओं के लिए रोजगार की मांग करते हुए मार्च निकालकर राज्य सचिवालय की ओर जा रहे थे और उनकी पुलिस से झड़प हो गयी थी.

उन्होंने सिंगुर से ही बृहस्पतिवार को यह रैली निकाली थी. सिंगुर 2008 में बंगाल की राजनीति के लिए एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया था जब तृणमूल कांग्रेस ने कार फैक्ट्री के वास्ते किये गये कृषि भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन चलाया था. तृणमूल के इस आंदोलन के चलते न केवल प्रस्तावित छोटी कार फैक्ट्री को बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा बल्कि बनर्जी 2011 में सत्ता में पहुंच गयी.

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