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विद्वता व वाग्मिता की प्रतिमूर्ति थे शास्त्रीजी : डॉ गुप्त

कोलकाता : आचार्य विष्णुकांत शास्त्री की सहजता-सरलता मोहित कर देनेवाली थी. उनकी विशाल ह्मदयता और स्नेहशील स्वभाव हर किसी को अपना बना लेता था. शास्त्रीजी विद्वता एवं वाग्मिता की प्रतिमूर्ति थे. यह बात उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. सदानंद प्रसाद गुप्त ने आचार्य विष्णुकांत शास्त्री स्मृति […]

कोलकाता : आचार्य विष्णुकांत शास्त्री की सहजता-सरलता मोहित कर देनेवाली थी. उनकी विशाल ह्मदयता और स्नेहशील स्वभाव हर किसी को अपना बना लेता था. शास्त्रीजी विद्वता एवं वाग्मिता की प्रतिमूर्ति थे. यह बात उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. सदानंद प्रसाद गुप्त ने आचार्य विष्णुकांत शास्त्री स्मृति काव्य-संध्या’ कार्यक्रम के दौरान कहीं. यह कार्यक्रम कलामंदिर प्रेक्षागृह के बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आयोजित किया गया था़
इस मौके पर डॉ. शिवओम अंबर की काव्यकृति सप्तस्रोत का लोकार्पण प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने किया़ संस्था के अध्यक्ष डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ तारा दूगड़ ने किया.
वरिष्ठ आयकर सलाहकार सज्जनकुमार तुलस्यान तथा पुस्तकालय के मंत्री महावीर बजाज भी मंच पर उपस्थित थे. समारोह के प्रारंभ में लोकप्रिय गायक श्री ओमप्रकाश मिश्र ने विनय पत्रिका के पद कबहुंक हौं एहि रहनि रहौंगो’ तथा आचार्य शास्त्री का गीत तुमको क्या जादू आता है’ की प्रभावी प्रस्तुति की.
इस अवसर पर आयोजित काव्यसंध्या ने कोलकाता के उस साहित्यिक अतीत को याद दिला दी जो कभी काव्य प्रस्तुतियों की राष्ट्रीय कसौटी रही है. कवि उत्कर्ष अग्निहोत्री ने अपने दोहों से सबका मन मोहा- रिश्तों में पड़ती नहीं, यूं ही व्यर्थ दरार, कुछ तुम जिम्मेदार हो, कुछ हम जिम्मेदार.
दिल्ली से आयी डॉ. कीर्ति काले द्वारा बिटिया की विदा’ पर प्रस्तुत गीत ने सभी की नयनों को नम कर दिया. गीतकार डॉ कुंवर बेचैन की इस पंक्ति ने साहित्य के मंतव्य को स्पष्ट किया- गमों की आंच में आंसू उबाल कर देखो, बनेंगे रंग किसी पर भी डाल कर देखो.
प्रख्यात मंच संचालक डॉ शिवओम अंबर की इन पंक्तियों ने सभागार में साहित्य की सुगंध घोल दी. स्वप्निल शत-प्रतिशत होते हैं, कवि खुशबू के खत होते हैं, बनते उत्स महाकाव्यों के/ आंसू सारस्वत होते हैं. बरेली से आये डॉ. राहुल अवस्थी ने समकालीन परिवेश के प्रति साहित्यिक कर्तव्य हेतु इंगित किया- क्रान्ति के क्षण रोपने का काल आया, ओ अगस्त्यों, कोपने का काल आया, अंजुरियां ज्वार भरने का समय है, छन्द में अंगार भरने का समय है. काव्य संध्या का समापन राष्ट्रगान से हुआ.
अतिथियों का स्वागत किया सरदारमाल कांकरिया, महावीर प्रसाद मणकसिया, लक्ष्मीकांत तिवारी, नंदलाल शाह, मोहनलाल पारीक, शांतिलाल जैन, अरुणप्रकाश मल्लावत, योगेशराज उपाध्याय ने तथा कवियों का मुक्ताहार से स्वागत किया राजेंद्र खण्डेलवाल, जयप्रकाश सिंह, विनय दुबे, दुर्गा व्यास, डॉ वसुमति डागा, गिरिधर राय, भंवरलाल मूंधड़ा, सत्यप्रकाश राय एवं सत्येन्द्र सिंह अटल ने.
समारोह में विजय गुजरवासिया, रतन अग्रवाल, शार्दूलसिंह जैन, महावीर प्रसाद रावत, कृपाशंकर चौबे, शंकरबक्श सिंह, सुरेंद्र बहादुर सिंह, श्रीकांत शास्त्री, कमलेश मिश्र, मीना पुरोहित, भागीरथ चांडक, सुरेन्द्र बांठिया, भोला सोनकर, राधेश्याम सोनी, अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी, रविप्रताप सिंह, नन्दलाल रोशन, बंशीधर शर्मा, राजकुमार व्यास, सुशील ओझा, अरुण चूड़ीवाल, अशोक अवस्थी, बालकिशन मूंधड़ा, पुष्पा मूंधड़ा, प्रभाकर तिवारी, राजेन्द्र कानूनगो, आनन्द पाण्डेय, सालिगराम पुरोहित, अशोक गुप्ता, चन्द्रिका प्रसाद अनुरागी, श्रीराम सोनी, चम्पालाल पारीक, ओमप्रकाश झा, अनिल ओझा निरद, योगेश अवस्थी, विनोद अवस्थी, ताड़कदत्त सिंह, राजाराम बियानी, गोविन्द जैथलिया, सरिता पोद्दार, कमल त्रिपाठी, संजय त्रिपाठी, संजय बिन्नानी, अशोक शर्मा, चन्द्रकुमार जैन, आशीष चतुर्वेदी, ज्ञानप्रकाश पाण्डेय, मोहन तिवारी, भागीरथ सारस्वत एवं नन्दकुमार लढ़ा प्रभृति हावड़ा एवं कोलकाता महानगर के गणमान्य व्यक्तियों से हॉल खचाखच भरा था.

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