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आलिया विश्वविद्यालय फिर विवादों के घेरे में, छात्र संसद पर नकेल कसने का आरोप
कोलकाता : आलिया विश्वविद्यालय परिसर में छात्र राजनीति पर रोक लगाने का फरमान जारी करने को लेकर विवाद हो गया है. बीते दिनों विश्वविद्यालय की ओर से जारी निर्देश के मुताबिक छात्र संसद के किसी भी तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेनेवाले छात्र के खिलाफ अनुशासात्मक कार्रवाई की जायेगी. विश्वविद्यालय की ओर से जारी निर्देशिका […]
कोलकाता : आलिया विश्वविद्यालय परिसर में छात्र राजनीति पर रोक लगाने का फरमान जारी करने को लेकर विवाद हो गया है. बीते दिनों विश्वविद्यालय की ओर से जारी निर्देश के मुताबिक छात्र संसद के किसी भी तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेनेवाले छात्र के खिलाफ अनुशासात्मक कार्रवाई की जायेगी.
विश्वविद्यालय की ओर से जारी निर्देशिका के मुताबिक विश्वविद्यालय की ओर से मान्यता प्राप्त कोई छात्र संसद नहीं हैं. इसलिए छात्र संसद के नाम से किसी भी गतिविधि को अंजाम देना विश्वविद्यालय की नीति और आदर्श के खिलाफ है. इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जायेगा. ऐसे में कोई इस तरह की हरकत कर रहा है, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जायेगी.
उल्लेखनीय है कि लंबे समय से विश्वविद्यालय में छात्र संसद का चुनाव नहीं हुआ है. ऐसे में छात्रों की समस्या को अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए एक छात्र कमेटी बनायी गयी है. अब इस तरह की निर्देशिका को लेकर छात्र सवाल उठा रहे हैं. इसकी वजह बीते दिन टीएमसीपी के उत्तर 24 परगना जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में हुई एक सभा बतायी जा रही है. उसमें तृणमूल छात्र परिषद के अलावा कई अन्य छात्रों ने भी हिस्सा लिया था.
सभा में विश्वविद्यालय प्रबंधन की कार्यशैली के साथ-साथ छात्रों की समस्याओं पर भी चर्चा हुई थी. विश्वविद्यालय के छात्र मीर सिद्दिकी ने मीडिया को बताया कि टीएमसीपी की सभा के बाद ही इस तरह का फरमान सामने आया है. लेकिन जो निर्देशिका जारी हुई है, उस पर किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं. एसा लगता है कि कोई अपनी मर्जी से फर्जी निर्देश जारी किया है, क्योंकि इस तरह के आदेश पर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार का हस्ताक्षर होता है.
उन्होंने कहा कि दरअसल इफ्तार पार्टी का आयोजन होनेवाला है. इसके लिए छात्रों को एक निश्चित धनराशि आवंटित होती है, जो छात्र प्रतिनिधि दल को दिया जाता है. यह रकम आधिकारिक रूप से छात्रों को देना नहीं पड़े, इसीलिए इस तरह का आदेश जारी किया गया है. हालांकि तृणमूल छात्र परिषद की ओर से लगाये जा रहे आरोपों को विश्विद्यालय प्रबंधन ने खारिज करते हुए रजिस्ट्रार नूरशद आलम ने मीडिया से कहा कि इस तरह का आदेश पहले से ही जारी करने की बात चल रही थी. गुरुवार को यह जारी किया गया. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले छात्र संसद के नाम से यूजीसी से रैगिंग की शिकायत की गयी थी. इसमें आरोप लगानेवाले का कोई नाम नहीं था. हकीकत यह है कि विश्वविद्यालय की ओर से किसी भी छात्र संसद को मान्यता नहीं दी गयी है, इसलिए इस तरह का फैसला लिया गया. रहा सवाल इफ्तार पार्टी के लिए पैसा देने का, तो इसके आयोजन करने की जिम्मेदारी कमेटी को दी जायेगी. आदेश पर हस्ताक्षर हार्ड कापी में है. वेबसाइट पर बाइ आॅर्डर लिखा गया है.
इधर, विश्वविद्यालय के इस कदम को छात्र राजनीति का विरोधी करार देते हुए एबीवीपी ने भी नाराजगी जतायी है. संगठन के अध्यक्ष इंद्रनील खान ने कहा कि छात्रों से साजिश के तहत उनका लोकतांत्रिक अधिकार छीना जा रहा है. चुनाव पहले ही बंद कर दिया गया. अब इस तरह का आदेश देकर सत्तापक्ष और विश्वविद्यालय प्रबंधन पूरी तरह से नकेल कसना चाह रहे हैं.
एसएफआइ भी इस फैसले के विरोध में है. संगठन के राज्य सचिव सृजन भट्टाचार्य ने कहा कि छात्र संसद को खत्म करने का साजिश पूरे प्रदेश मेें चल रहर है. यह घटना उसका प्रमाण है.
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