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सकारात्मक हो साहित्य का स्वरूप
कोलकाता : साहित्य का स्वरूप सकारात्मक होना चाहिए. वादों में बंटा हुआ साहित्य राष्ट्रीय एकता का संदेश नहीं दे सकता. मौन पीड़ा तो दो चार लोगों तक सीमित रहती है किंतु मुखर पीड़ा अगर निवारण चाहती है तो डॉ हेडगेवार जैसे राष्ट्रभक्त का जन्म होता है. व्यक्ति के साथ समाज की चिकित्सा का उद्देश्य लेकर […]
कोलकाता : साहित्य का स्वरूप सकारात्मक होना चाहिए. वादों में बंटा हुआ साहित्य राष्ट्रीय एकता का संदेश नहीं दे सकता. मौन पीड़ा तो दो चार लोगों तक सीमित रहती है किंतु मुखर पीड़ा अगर निवारण चाहती है तो डॉ हेडगेवार जैसे राष्ट्रभक्त का जन्म होता है. व्यक्ति के साथ समाज की चिकित्सा का उद्देश्य लेकर चलने वाले डॉ हेडगेवार के योगदान को राष्ट्र सदैव स्मरण रखेगा.’
ये उद्गार हैं राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के, जो श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय के तत्वावधान में आयोजित 29 वें डॉ हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान में ओसवाल भवन सभागार में बोल रहे थे. पुस्तकालय की ओर से डॉ कमलकिशोर गोयनका, नयी दिल्ली को सम्मान स्वरूप श्रीफल, शॉल तथा एक लाख रुपये की राशि एवं मानपत्र प्रदान किया गया.
राज्यपाल ने इस बात पर दु:ख व्यक्त किया कि साहित्य को जाति और वर्गों में बांटा जा रहा है. उसे वादों के घेरे में सीमित किया जा रहा है. आलोचनात्मक विवेचना स्वागत योग्य है लेकिन विभाजित साहित्य घातक है. यह नकारात्मकता और विध्वंसात्मकता की ओर ले जाता है. अंतर्राष्ट्रीयता के नाम पर राष्ट्रीयता को खरोंच लगायी जा रही है, जिसने हमारी राष्ट्रीयता को विकृत किया है. उन्होंने डॉ गोयनका को सम्मान प्राप्ति पर बधाई दी.
समारोह के प्रधान वक्ता तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं संघ विचारक डॉ अवनिजेश अवस्थी ने कहा कि डॉ हेडगेवार के मन में संघ की स्थापना का बीजारोपण कोलकाता में ही हुआ था. किसी देश का वैभव उसके नागरिक का वैभव और सम्मान है अत: प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने स्तर पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का जवाब देना चाहिए. उन्होंने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में डॉ हेडगेवार के चिंतन एवं दर्शन पर बल दिया.
विशिष्ट वक्ता एवं संघ के दक्षिण बंग प्रांत कार्यवाह डॉ जिष्णु बसु कहा कि देश की आंतरिक शक्ति जागे बिना कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता. डॉ हेडगेवार ने भारत की इसी आंतरिक जिजीविषा का मौलिक कार्य किया और बताया कि भारत की राष्ट्रीयता सदैव धर्म आधारित रही है.
प्रधान अतिथि तथा राजा राममोहन राय लाइब्रोरी फाउंडेशन के चेयरमैन प्रो ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र पर खतरा आये तो हर व्यक्ति को योगदान करना चाहिए, यही डॉ हेडगेवार की सीख है. विशिष्ट अतिथि एवं वरिष्ठ आयकर सलाहकार सज्जन कुमार तुलस्यान ने कहा कि डॉ हेडगेवार के मंत्र हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है’ को अपने जीवन में, समाज जीवन में एवं राष्ट्र जीवन में उतारना होगा तभी देश सुरक्षित रहेगा.
प्रेमचंद विशेषज्ञ डॉ कमलकिशोर गोयनका ने प्रज्ञा सम्मान ग्रहण करते हुए कुमारसभा पुस्तकालय का आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि स्वराज की प्राप्ति और भारत की आत्मा की रक्षा करना ही प्रेमचंद के साहित्य का उद्देश्य था. कार्यक्रम का संचालन किया कुमारसभा के अध्यक्ष डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया चयनसमिति के वरिष्ठ सदस्य विमल लाठ ने.
समारोह में पद्मश्री विभूषित साहित्यकार डॉ कृष्णबिहारी मिश्र को कुमारसभा एवं कोलकातावासियों की ओर से राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने शाॅल ओढ़ा कर सम्मानित किया. इस अवसर पर कानपुर की लेखिका डॉ आशा त्रिपाठी की पुस्तक ‘रामायण में राजनीति’ का राज्यपाल ने लोकार्पण भी किया. समारोह में डॉ अरुण चक्रवती, राजेंद्र खंडेलवाल, पार्षद विजय ओझा, पार्षद शिबू घोष, नंदलाल शाह, डॉ तारा दूगड़, सुशीला चेनानी, सत्यप्रकाश तिवारी, तारकदत्त सिंह, आनंद मोहन मिश्र, डॉ अमरनाथ शर्मा, दुर्गा व्यास, डॉ कृपाशंकर चौबे, केशवराव दीक्षित, विद्युत मुखर्जी, गजानन बापट, राजेंद्र कानूनगो, मोहनलाल पारीक, शांतिलाल जैन, रामेश्वर मिश्र, डॉ राजश्री शुक्ला, दिनेश पाण्डेय, किशन झंवर, शंकरलाल अग्रवाल, गिरिधर राय, कमलेश सिंह, अनिल ओझा नीरद, नवीन कुमार सिंह, शंकरबख्श सिंह व अन्य उपस्थित थे.
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