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बंगाल में सबसे कम हुए पिछड़ी जाति पर अत्याचार

कोलकाता : एनडीए सरकार में वर्ष 2014 से 2016 के बीच अनुसूचित जाति यानी दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में इजाफा हुआ है. अनुसूचित जाति के खिलाफ यूपीए सरकार के दौरान साल 2011 से 2013 के बीच एक लाख छह हजार 782 मामले सामने आये, जबकि एनडीए सरकार के दौरान साल 2014 से 2016 […]

कोलकाता : एनडीए सरकार में वर्ष 2014 से 2016 के बीच अनुसूचित जाति यानी दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में इजाफा हुआ है.
अनुसूचित जाति के खिलाफ यूपीए सरकार के दौरान साल 2011 से 2013 के बीच एक लाख छह हजार 782 मामले सामने आये, जबकि एनडीए सरकार के दौरान साल 2014 से 2016 के बीच एक लाख 19 हजार 872 मामले सामने आये.
इसके अलावा अनुसूचित जाति के खिलाफ वर्ष 2011 में दर्ज कुल मामलों में से 32 फीसदी मामलों में आरोपियों को दोषी ठहराया गया. वर्ष 2012 और 2013 में 24 फीसदी मामलों के आरोपियों को दोषी ठहराया गया, जबकि साल 2014 में 24.5 फीसदी, साल 2015 में 25.5 फीसदी और साल 2016 में 25.7 फीसदी आरोपियों को दोषी करार दिया गया.
क्या कहते हैं आंकड़े :
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 से 2015 के बीच अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराधों के खिलाफ में 4.3 फीसदी की कमी आयी, जबकि साल 2015 से 2016 के बीच इसमें 5.5 फीसदी का इजाफा देखने को मिला.
अगर राज्यों की बात करें, साल 2016 में अनुसूचित जाति के खिलाफ 10 हजार 426 मामले यानी 25.6 फीसदी अपराध के मामले उत्तर प्रदेश में सामने आये.
इसके बाद 14 फीसदी मामलों के साथ बिहार दूसरे और 12.6 फीसदी मामलों के साथ राजस्थान तीसरे स्थान पर रहा. बिहार में दलितों के खिलाफ पांच हजार 701 और राजस्थान में पांच हजार 134 अापराधिक मामले सामने आये. जिन राज्यों में अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराधों की संख्या कम रही, उनमें पश्चिम बंगाल (03. फीसदी), झारखंड (1.3 फीसदी) और केरल (दो फीसदी) हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने जारी किये आंकड़े
वहीं, साल 2014 से 2016 के बीच अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराधों में 3.8 फीसदी की कमी देखी गयी. साल 2015 में इस समुदाय के विरुद्ध अपराध में आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी, जबकि साल 2016 में 4.6 फीसदी का इजाफा हुआ. इसके अलावा राजस्थान में अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले सामने आये, जबकि पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध सबसे कम मामले सामने आये. 12.9 फीसदी अपराधों के साथ राजस्थान शीर्ष पर है, जबकि 1.6 फीसदी अपराधों के साथ पश्चिम बंगाल सबसे नीचे पायदान पर है.

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