प्रयास l एडीबी ने निगम को दिया हीलियम तकनीक के लिए 260 करोड़ का ऋण
Advertisement
हीलियम गैस तकनीक से डायरिया पर काबू
प्रयास l एडीबी ने निगम को दिया हीलियम तकनीक के लिए 260 करोड़ का ऋण मुंबई व केरल के निगम की पाइप लाइन में हीलियम गैस तकनीक से होती है लिकेज की जांच कोलकाता : कहते हैं जल ही जीवन है. मगर पिछले एक पखवाड़े से नगर निगम का जल लोगों के लिए संक्रामक बीमारी […]
मुंबई व केरल के निगम की पाइप लाइन में हीलियम गैस तकनीक से होती है लिकेज की जांच
कोलकाता : कहते हैं जल ही जीवन है. मगर पिछले एक पखवाड़े से नगर निगम का जल लोगों के लिए संक्रामक बीमारी का कारण बना हुआ है. निगम के गंदे व दूषित पानी के इस्तेमाल से दक्षिण कोलकाता के आठ वार्डों के लगभग चार हजार लोग डायरिया से पीड़ित हैं.
सूत्रों के अनुसार, डायरिया प्रभावित इलाकों में 16 जगहों पर निगम के पानी की पाइप लाइन में लिकेज की बात सामने आयी है. इस बारे में मेयर परिषद सदस्य अतिन घोष का कहना है कि कोलकाता पुराना शहर है. शहर को योजनाबद्ध तरीके से तैयार नहीं किया गया है. जमीन के नीचे पानी व ड्रेनेज पाइप लाइन के अलावा टेलीफोन, बिजली व गैस के तार भी बिछाये गये हैं.
तकनीकी कार्य के लिए विभिन्न कंपनियों के द्वारा समय-समय पर जमीन की खुदाई की जाती है. इससे कई बार पानी के पाइप लाइन में छेद हो जाता है. इससे ना सिर्फ पानी की बर्बादी होती है, बल्कि पानी के दूषित होने की संभावना भी हो सकती है. पर दीगर की बात है यह है कि निगम के पास पानी की पाइप में हुए छेद की जांच करने के लिए हीलियम गैस की तकनीक भी है,
जिसके लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक ने निगम को 260 करोड़ रुपये का ऋण भी दिया है. मगर निगम के द्वारा पानी की पाइप में लिकेज की समस्या को हल्के ढंग से लिया गया. जबकि मुंबई व केरल के नगर निगम में पानी की पाइप लाइन की जांच के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है.
महंगी है हीलियम गैस तकनीक
निगम के आला अधिकारियों का कहना है कि समूचे महानगर में पाइप के लिकेज की जांच के लिए हीलियम गैस तकनीक का प्रयोग नहीं किया जा सकता. यह काफी मंहगा है. हालंकि अभी केवल 1 से 6 नंबर वार्ड में पानी की बर्बादी को रोकने के लिए पानी के मीटर के साथ इस तकनीक का उपयोग हो रहा है. अगर इस तकनीक का प्रयोग सभी जगहों पर किया जाता तो शायद डायरिया जैसी संक्रामक बीमारी का शिकार महानगर के लोगों को नहीं होना पड़ता.
कैसे काम करती है यह तकनीक
हीलियम रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) होती है. इसका प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठंडा करने के लिए भी किया जाता है. यह जल में घुलती नहीं है. इसलिए इसका प्रयोग जमीन के नीचे बिछायी गयी पानी की पाइप लाइन में हुए छेद को ढूंढने लिए भी किया जा रहा है. लिकेज को ढूंढ़ने के लिए जमीन के ऊपर तीन तीन मीटर की दूरी पर 10 एमएम छेद किया जाता है. किसी स्थान से पानी की पाइप लाइन को खोल कर गैस डाल दी जाती है. इसके बाद जमीन के ऊपर एक विशेष छड़ी (यंत्र) को मॉनिटर के सहारे विभिन्न स्थानों पर घुमाया जाता है. लिकेज वाले स्थान पर हिलियम गैस की मात्रा अधिक होती है. इससे पता चल जाता है कि वहीं लिकेज है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement