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चुनाव में नेताओं की नहीं, नीतियों की हो रही लड़ाई

अमित शर्मा कोलकाता : दलबदल, बगावत व सांगठनिक समस्याओं से परेशान वाम मोरचा को उम्मीद है कि ‘बुरा समय’ बीत चुका है. पश्चिम बंगाल में अपनी प्रासंगिकता साबित करने व लोकसभा चुनाव में सफलता के प्रति मोरचे के नेता पूरी तरह से आश्वस्त हैं. उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा व सत्तारुढ़ दल तृणमूल कांग्रेस […]

अमित शर्मा

कोलकाता : दलबदल, बगावत व सांगठनिक समस्याओं से परेशान वाम मोरचा को उम्मीद है कि ‘बुरा समय’ बीत चुका है. पश्चिम बंगाल में अपनी प्रासंगिकता साबित करने व लोकसभा चुनाव में सफलता के प्रति मोरचे के नेता पूरी तरह से आश्वस्त हैं. उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा व सत्तारुढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के बीच मतों का विभाजन होने से उसे फायदा मिलेगा.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तत्कालीन परिवर्तन की लहर ही वह कारण है, जिस वजह से तृणमूल ने सत्ता की बागडोर संभाली और वाम दुर्ग ढह गया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार के करीब तीन वर्ष पूरे होनेवाले हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई में स्थिति बदली है? चुनाव समेत ऐसे कई मुद्दों को लेकर वामो के नेता व माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी से प्रभात खबर ने विशेष बातचीत की. उनसे बातचीत के प्रमुख अंश

सवाल : केंद्र में वमो की भूमिका क्या होगी?

जवाब : देखिये, माकपा समेत अन्य वाम मोरचा दल पहले ही कह चुके हैं कि इस बार चुनाव में किसी नेता नहीं, बल्कि नीतियों की लड़ाई है. विगत 10 वर्षो की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार को जनता देख चुकी है. संप्रग सरकार के कारण महंगाई बढ़ी. रोजगार के अवसर सुलभ नहीं हुए, खाद्य सुरक्षा पर संकट है. किसान आत्महत्या को मजबूर हुए. दूसरी ओर, जनता भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार को भी देख चुकी है. सांप्रदायिक शक्तियों को समर्थन करनेवाले दल का पक्ष नहीं लिया जा सकता है. ऐसे में वामो ही एकमात्र विकल्प है.

सवाल : तृणमूल का दावा है कि केंद्र में उसकी भूमिका अहम होगी, आपकी क्या राय है?

जवाब : नीतियों की लड़ाई अहम है. रही तृणमूल कांग्रेस की बात तो कभी उसने भाजपा का दामन थामा,तो कभी कांग्रेस का. निजी फायदे की राजनीति को समर्थन नहीं किया जा सकता है. एक समय था जब वामो भी केंद्र सरकार की कैबिनेट में शामिल थी, लेकिन उनकी नीति नहीं बदली. यही वजह है कि देशवासियों के हित के लिए वामो ने परमाणु समझौते का कड़ा विरोध किया गया था और केंद्र से नाता भी तोड़ लिया.

सवाल : ममता की तृणमूल सरकार के कार्यो के बारे में क्या कहेंगे?

जवाब : राज्य में तृणमूल सरकार के शासनकाल में अराजक की स्थिति है. महिलाओं की सुरक्षा व कानून-व्यवस्था पर संशय की स्थिति बनी हुई है. किसानों, मजदूरों, निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों की रोजी रोटी पर संकट है. विकास के कई दावे किये गये, लेकिन यह बताना होगा कि क्या विकास कार्य हुए हैं. जॉबलेस ग्रोथ हुआ है. बेरोजगारी बढ़ी है. अमीर और अमीर व गरीब और गरीब हो रहे हैं. इस मानसिकता को खत्म करनी होगी. हिंसा की राजनीति हो रही है. सत्तारूढ़ दल द्वारा लगातार विपक्षी दलों पर हमले हो रहे हैं. लोकतंत्र पर तो खतरा बना ही हुआ है. साथ ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है. करोड़ों रुपये के चिटफंड घोटाले इसके उदाहरण हैं.

सवाल : देश में नरेंद्र मोदी की लहर है, इस बारे में आपकी क्या राय है?

जवाब : मुङो नहीं लगता है कि देश में मोदी की लहर है. भाजपा व कांग्रेस की नीतियों में खासा फर्क नहीं है. जनता समझदार है और उन्हें भी पता है कि देश में किसकी लहर चल रही है.

सवाल : चुनाव से पहले तृणमूल सरकार व आयोग के बीच खींचतान पर क्या कहेंगे?

जवाब : राज्य में जब वाम मोरचा की सरकार थी, तब भी कई मुद्दों को लेकर चुनाव आयोग का विरोध किया गया था, लेकिन उनके किसी निर्देश को नहीं मानने की घटना कभी नहीं हुई. लेकिन राज्य में तृणमूल के सत्ता में रहने के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले का विरोध किया गया था, जो हैरान करनेवाली है. राज्य में लोकतंत्र पर खतरा है.

सवाल : सीएम ममता बनर्जी ने हिंदीभाषियों को मेहमान बताते हुए उन्हें मेहमान की तरह रहने की हिदायत दी है. आपकी क्या राय है?

जवाब : अगर ऐसा कहा गया है, तो बहुत गलत है. देश के निवासी किसी भी राज्य में रह सकते हैं. मैं नहीं मानता हिंदीभाषी या गैर-बांग्लाभाषी बंगाल के मेहमान हैं. उन्हें मेहमान कतई नहीं कहा जा सकता है.

सवाल : बंगाल में लोकसभा चुनाव का क्या परिणाम होगा?

जवाब : यह नीतियों की लड़ाई है. वामो ने आयोग से निष्पक्ष व शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव करने की मांग की है. यदि ऐसा हुआ, तो यहां मोरचा का परिणाम बेहतर होगा.

सवाल : ममता के जनसमर्थन बढ़ने की क्या वजह है?

जवाब : मुङो नहीं लगता है कि ममता बनर्जी का जनसमर्थन बढ़ गया है. यदि ऐसा होता तो पंचायत व नगर निकाय चुनाव में विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं व नेताओं पर हमले नहीं होते. जो ऐसा कहते हैं, उन्हीं के पास शायद जवाब होगा. चुनाव के बाद ही इसका खुलासा हो पायेगा.

सवाल : कुछ वर्षो से वामो के कमजोर होने की क्या वजह हैं?

जवाब : बीते विधानसभा चुनाव का परिणाम से साफ है कि कुछ खामियां तो हुई हैं. जनता व कैडर दूर हो गये. जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में शायद कोई कमी रह गयी थी. इन खामियों को दूर करने का प्रयास जारी है. अब लोग समझ गये हैं कि वामपंथ ही एकमात्र विकल्प है. दूर हुए कैडर वापस लौट रहे हैं.

सवाल : तृणमूल सरकार के कार्यो को 10 में से कितने अंक देंगे?

जवाब : सरकार के रूप में कार्य करने की क्षमता तृणमूल कांग्रेस के पास नहीं है. जनता को धोखा दिया जा रहा है. यहां कोई विकास कार्य नहीं हुए. ऐसे में इस सरकार को 10 में से एक भी अंक देना उचित नहीं है.

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