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बाल शोषण पर लोगों को जागरूक करेगी सीआइआइ की युवा शाखा

कोलकाता. शहर के स्कूलों में बाल यौन शोषण के हालिया दो मामलों के मद्देनजर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) की युवा शाखा यंग इंडियंस (वाइआइ) के कोलकाता खंड ने अपने प्रोजेक्ट मासूम के जरिये राज्य में बाल यौन शोषण के प्रति जागरकता लाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं. इस देशव्यापी परियोजना और मिशन के जरिये […]

कोलकाता. शहर के स्कूलों में बाल यौन शोषण के हालिया दो मामलों के मद्देनजर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) की युवा शाखा यंग इंडियंस (वाइआइ) के कोलकाता खंड ने अपने प्रोजेक्ट मासूम के जरिये राज्य में बाल यौन शोषण के प्रति जागरकता लाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं. इस देशव्यापी परियोजना और मिशन के जरिये ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है.
आमिर खान के टीवी कार्यक्रम सत्यमेव जयते से प्रेरित होकर वर्ष 2015 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा शुरू सीआइआइ की यह परियोजना बच्चों को अच्छे स्पर्श और बुरे स्पर्श के बारे में संवेदनशील बनाने और सुरक्षा और बचाव के तरीके बताती है. यंग इंडिया-कोलकाता खंड की प्रमुख अलिफिया कलकत्तावाला ने कहा: वाइआइ कोलकाता पहले से ही राज्य भर के स्कूलों में जागरूकता सत्र आयोजित करने में लगा हुआ है. साथ ही लंदन पेरिस मल्टीप्लेक्स के सहयोग से वाईआई मासूम सप्ताह (14 नवंबर से 20 नवंबर) के दौरान हम अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित कर पाये और 78,000 लोगों को संवेदनशील बना सके.
उन्होंने कहा कि इस परियोजना का मकसद अभिभावक, शिक्षकों और बच्चों को अच्छे स्पर्श और एक बुरे स्पर्श में भेद करने की जरुरत पर जागरक बनाने और उस हिसाब से कार्य करने की जानकारी देना है. कोलकाता में इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे रचित मलिक ने बताया कि यंग इंडिया के परामार्शदाता बच्चों के अनुकूल तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जैसे मासूमों को समझाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली एनिमेटेड फिल्म कोमल को प्रदर्शित करने का इंतजाम करना.
छह में से एक लड़का और चार में से एक लड़की 18 वर्ष का होने से पहले होते हैं यौन शोषण के शिकार : सीआइआइ के आंकड़े खुलासा करते हैं कि छह में से एक लड़का और चार में से एक लड़की 18 वर्ष का होने से पहले किसी न किसी तरह के यौन शोषण का शिकार होते हैं. आंकड़ों के मुताबिक 89 प्रतिशत मामलों को परिवार के लोग अंजाम देते हैं. लड़कियों (62 प्रतिशत से ज्यादा) के मुकाबले लड़कों (72 प्रतिशत से ज्यादा) को बाल शोषण का ज्यादा सामना करना पड़ता है. 70 प्रतिशत से अधिक मामलों की कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज करायी जाती और यहां तक कि परिवार के सदस्यों और परिजन के साथ भी नहीं साझा किए जाते.

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