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दो सरकारी ब्लड बैंक में नष्ट हो रही है सरकारी संपत्ति

कोलकाता: राज्यभर में डेंगू का कहर बरप रहा हैं. गंभीर रूप से पीड़ित डेंगू के मरीज के लिए प्लेटलेट संजीवनी से कम नहीं. इसके अभाव में मरीज की मौत भी हो सकती है, लेकिन ऐसे समय में राज्य के कई सरकारी ब्लड बैंकों में प्लेटलेट का अभाव है. महानगर में भी यही स्थिति है, क्योंकि […]

कोलकाता: राज्यभर में डेंगू का कहर बरप रहा हैं. गंभीर रूप से पीड़ित डेंगू के मरीज के लिए प्लेटलेट संजीवनी से कम नहीं. इसके अभाव में मरीज की मौत भी हो सकती है, लेकिन ऐसे समय में राज्य के कई सरकारी ब्लड बैंकों में प्लेटलेट का अभाव है. महानगर में भी यही स्थिति है, क्योंकि महानगर के दो ब्लड बैंक में लाखों रुपये की लागत से खरीदी गयी मशीनों को उपयोग में नहीं लाया जा रहा है. अगर इन मशीनों को उपोयग में लाया जाये, तो शायद महानगर में प्लेटलेस की कमी न हो.

यही हालत मानिकतल्ला सेंट्रल ब्लड बैंक और कॉलेज स्क्वायर स्थित मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की है.देश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में शामिल कलकत्ता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में 2012 से सेल सेपरटेर मशीन बेकार पड़ी हुई है. इस मशीन को मानिकतल्ला सेंट्रल ब्लड बैंक से यहां‍ ब्लड बैंक में लाया गया था. इसकी कीमत लगभग 60 लाख रुपये है. इस मशीन को सिंगल डोनर प्लेटलेट (एसडीपी) के नाम से भी जाना जाता है.

क्या है सेल सेपरेटर मशीन : हाइटेक तकनीक से बनी इस मशीन के जरिए डोनर के शरीर से केवल प्लेटलेट अलग कर निकाल लिया जाता है. एक व्यस्क मनुष्य के शरीर में करीब पांच लीटर रक्त होता है, जिसका केवल 10 फीसदी हिस्सा लिया जाता है. इससे 6 यूनिट प्लेटलेट तैयार किया जा सकता है. इस मशीन के उपयोग से महानगर में प्लेटलेट के स्टॉक को रखा जा सकता है. इस मशीन को चालने के लिए हेमाटोलॉजी डिग्री प्राप्त चिकित्सक व एक लैब टेक्नोलॉजिस्ट की आवश्यकता होती है. एनआरएस मेडिकल कॉलेज को छोड़ कर किसी सरकारी अस्पताल में यह मशीन नहीं है, जहां सका उपयोग किया जाता है. सरकारी अस्पताल में इस मशीन से प्लेटलेट लेने के लिए मरीज को आठ से 10 हजार खर्च करना पड़ सकता है, जबकि गैर सरकारी अस्पताल में 18 से 20 हजार रुपये खर्च होते हैं. महानगर के कई गैर सरकारी बड़े अस्पतालों में यह मशीन उपलब्ध है.

मानिकतल्ला सेंट्रल ब्लड बैंक में सेंट्री फ्यूज मशीन नष्ट हो रही : राज्य के सबसे बड़े ब्लड बैंक में सेंट्री फ्यूज मशीन गत चार वर्षों से रखे-रखे नष्ट हो रही है. इस मशीन की मदद से रक्त के विभिन्न घटकों को अलग किया जाता है. यहां इस प्रकार की करीब आठ मशीन है. वर्तमान में यहां छह मशीनों से कार्य लिया जा रहा है, बल्कि दो मशीनें रखी रखी नष्ट हो रही है. जानकारी के अनुसार दोनों मशीन की कीमत लगभग 55 लाख रुपये हैं. अब इन्हें रद्दी के भाव में बेचना पड़ सकता है.
15 सरकारी ब्लड बैंकों में सेंट्री फ्यूज मशीन : महानगर समेत राज्य में करीब 130 सरकारी व निजी ब्लड बैंक हैं. इनमें 80 सरकारी है. वहीं सरकारी ब्लड बैंकों में करीब 15 में ही सेंट्री फ्यूज मशीन रखी गई है. इन मशीन को सेंट्रल ब्लड बैंक में न रखे अन्य सरकारी ब्लड बैंक को दिया जा सकता है, जहां इस प्रकार की मशीन नहीं है. इस विषय में सेंट्रल ब्लड बैंक के निदेशक डॉ कुमारेश हलदार से पूछे जाने पर वह भड़क गये और इस विषय में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण हो रहा नुकसान
पूजा के पहले से ही ब्लड बैंक में प्लेटलेट की अभाव देखी जा रही थी, लेकिन आये दिन इस तरह की खबर मीडिया में आने के बाद अब हालात में काफी सुधार हुआ है. वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण सेंट्रल ब्लड बैंक में पिछले चार से पांच वर्षों से सेंट्री फ्यूज मशीन रखा- रखा नष्ट हो रहा है. मानिकतल्ला राज्य के सबसे बड़ा ब्लड बैंक है. कभी यहां हेमाटोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट कराये जाने की योजना बनायी गई थी. इसलिए स्वास्थ्य विभाग ने बैंक को लगभग 10 वर्ष पहले सेल सेपरेटर मशीन दिया था. लेकिन उक्त यहां चालू नहीं होने पर इसे बाद में मेडिकल कॉलेज को दे दिया गया. जहां वर्तमान स्थिति पड़ा हुआ है. इसके उपयोग से डंगू व कैंसर के मरीज लाभान्वित हो सकते है.
देवाशीष शील, संयोजक, सरकारी कर्मचारी परिषद.

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